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फंसाए गए मारुति सुज़ुकी मज़दूरों के रिहाई के संघर्ष में जुड़ें!

सोशिलिस्ट ईक्वालिटी पार्टी और चौथा अंतरराष्ट्रीया विश्व कमिटी का श्री लंकाई खंड मार्च 18को एक भारतीय अदालत द्वारा मारूति सुज़ुकी के मज़दूरों के खिलाफ दी गयी सज़ा — 13 मज़दूरों को उम्रकैद और 18 को तीन से पाँच साल की क़ैद — का सख़्त विरोध करता है.

सोशियलिस्ट ईक्वालिटी पार्टी भारत, श्री लंका और दुनियाँ भर के श्रमिकों को बुलावा देती है कि वे इन झूठे आरोपों के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाएँ. इन मज़दूरों की रिहाई के लिए चौथा अंतरराष्ट्रिया विश्व कमिटी द्वारा जारी किए गये अभियान का हम पूरी तरह से समर्थन करते हैं. हम सभी श्रमिकों और युवको से आग्रह करते हैं कि वे वर्ल्ड सोशियलिस्ट वेब साईट द्वारा आरंभ किए हुए ऑनलाइन पेटिशन पर हस्ताक्षर करें और इस अभियान को व्यापक संभव समर्थन दिलाने केलिएसंघर्ष करें.

मारुति सुज़ुकी मज़दूरों को दी गयी कढ़ी सज़ा एक महा अन्याय है. इनके खिलाफ कोई भी आरोप साबित नही किया गया है. इनका सिर्फ़ एक "अपराध" यह है कि इन्होने अपनी दिल्ली समेट स्थित ऑटो फॅक्टरी की क्रूर परिस्थितियों के खिलाफ संघर्ष किया.

मनेसर, हरयाणा मे स्थित जापानी स्वामित्व वाली मारुति सुज़ुकी की एक कर्मचारी — ह्यूमन रिसोर्सस मेनेज़र, अवनीश कुमार देव — की हत्या का झूठा आरोप इन मज़दूरों केखिलाफ लगाया गया था। साढ़े चार साल पहले प्लांट प्रबंधन द्वारा उक्साएगये एक आग की दुर्घटना में देव की मौत हो गयी.

अभियोजन पक्ष का केस इतना हास्यजनक था कि गुडगाँव जिला अदालत के न्यायाधीश, र. पी. गोयल, को अपने फ़ैसले मे यह मानना पड़ा कि पुलिस ने कंपनी प्रबंधन के साथ जालसाजी की. मगर, लगातार क़ानून को तोड़ते हुए, न्यायाधीश ने सबूत का बोझ अभियोजन पक्ष से मज़दूरों पर डाला। इन मज़दूरों पर हत्या के आरोप मे लगाया गया क़ानूनी फ़ैसला, अपनी "निर्दोषता" को साबित करने में उनकी असफलतापेआधारित था.

आग की दुर्घटना कंपनी, हरयाणा राज्य सरकार, पुलिस, और उनके किरायेदार गुण्डों की संयुक्त प्रतीक्षा का नतीजा था. यह प्रतीक्षा मनेसर के ज़्यादातर युवा श्रमिकों मे फैल रही कंपनी के खिलाफ विरुद्धि को रोकने के लिए जारी किया गया था. हर 44 सेकेंड मे एक कार उत्पादन करने के लिए कंपनी द्वारा बनाए गये क्रूर गुलाम-मज़दूरी समान परिस्थितियों के खिालफ संघर्ष कनरे मे इन श्रमिकों ने दृढ़ संकल्प दिखाया.

मारुति सुज़ुकी मज़दूरों के अंतरराष्ट्रिया महत्व को समझते हुए, सोशियलिस्ट ईक्वालिटी पार्टी और वर्ल्ड सोशियलिस्ट वेबसाईट ने शुरू से ही (जुलाइ—ऑगस्ट 2012) उनके समर्थन मे अपनी आवाज़ उठाई। हमने सुज़ुकी निगम के उक्सावों और विदेशी निवेश की भीख मागने वाली भारतीय सत्ताधारी एलीट की श्रमिक वर्ग-विरुध नीतियों को बेनकाब करती हुई आर्तिकलें प्रकाशित की और हिन्दी मे अनुवाद किए गये आर्तिकलों को हमने मारुति सुज़ुकी के मज़दूरों के बीच प्रसारित किया. ट्रेड यूनियन के अधिकारी वर्ग और स्टालिनिस्ट कम्युनिस्ट पार्टियों की धोखेबाज़ी के खिलाफ, हमारी सैद्धांतिक कार्रवाई हरयाणा और दुनियाँ भर के श्रमिक हमेशा याद रखेंगे.

पुलिस द्वारा क़ैद किए हुए 148 मज़दूरों में मारुति सुज़ुकी वर्कर्स यूनियन की पूरी नेतृत्व शामिल थी. पाँच साल पहले, 2012 मे मारुति सुज़ुकी वर्कर्स यूनियन की स्थापना एक लंबी संघर्ष के बाद हुई. कंपनी के प्रस्ताव पर यूनियन के नेताओं को ह्यूमन रिसोर्सस मॅनेजर की हत्या मे "संदिग्धों" के रूप मे गिरफ्तार किया गया. और अब, इन मज़दूरों को उम्रकैद की क्रूर सज़ा दी गयी है. इस सज़ा का कारण यह है कि कंपनी और उसके किरायेदार मारुति सुज़ुकी और दुनियाँ भर के मज़दूरों का हौसला तोड़ना चाहते हैं.

इस मामले मे भारतीय पूंजीवादी वर्ग की करीब ब्याज का एक स्पष्ट उदाहरण 25 जुलाइ, 2012 को हिंदू मे प्रकाशित एक रिपोर्ट मे देखा जा सकता है। इस रिपोर्ट ने एक बड़े भारतीय आई टी कंपनी, विप्रो के चैरमन, अज़ीम प्रेमजी को उध्रित किया। श्री प्रेमजी, जिनके पास, फॉर्ब्स मेगज़ीन के मुताबिक, $16.5 बिलियन परिसंपत्ति है, की माग यह थी कि भारतीय सरकार मारुति सुज़ुकी के मज़दूरों के खिलाफ बेरहमी से कार्रवाई करें. उनका यह दावा था कि यह समस्या "संवेदनशील है और ऐसी सामाजिक अशांति का प्रतिनिधित्व है, जो देश भर और ट्रेड यूनियनो के बीच बढ़ रहा है.”

मज़दूरों के विरुद्ध अदालत का फ़ैसला स्पष्ट तरह से प्रदर्शित करता है कि सारी मेजर पार्टियाँ — कांग्रेस, जो उस समय सत्ते पे थी, प्रधान मंत्री नरेन्द्रा मोदी की भारतीय जनता पार्टी — पूंजीवादी वर्ग के हित का प्रतिनिधित्व करते हैं.

जिस न्यायिक प्रक्रिया द्वारा इन भारतीय ऑटो मज़दूरों को ऐसी क्रूर सज़ा दी गयी, उसी प्रक्रिया ने न्यायतंत्र के सही रूप — पूंजीवादी वर्ग का प्रतिनिधी — को बेनकाब किया है. जब अदालत ने मार्च 10 को यह घोषित किया कि बाकी 117 मज़दूर बेगुनाह है, यह सॉफ था कि उनके खिलाफ "सबूत" पुलिस और फॅक्टरी प्रबंधन की जालसाजी का परिणाम था, यानी न के बराबर. मगर, रिहा करते वक्त, अदालत ने कोई चिंता व्यक्त नहीं की कि इन निर्दोष मज़दूरों को साढ़े चार साल क़ैद किया गया. यह हॉल है भारत में "न्यायतंत्र की स्वाधीनता" का — जिसकी तारीफ़ लिबरल प्रचारक, पेटी-बूरजुआ समूह और सियूडो-लेफ्ट करते हैं.

झूठे सबूत के आधार पर भारतीय शासक वर्ग का यह हमला पूरे श्रमिक वर्ग को एक चेतावनी है कि उनका बढ़ता हुआ आक्रामक संघर्ष हर तरीके से रोका जाएगा. यह मामला यह भी प्रदर्शित करता है कि भारत में विदेशी निवेशकों की मदद के लिए सरकार बेरहमी से पुलिस-राज तरीकों का इस्तेमाल और श्रमिक वर्ग का शोषण बिना हिचकिचाहक से करेगी.

यह हमला ऐसे परिस्थिति मे किया जा रहा है, जब अमेरिका में डोनल्ड ट्रंप की फाशीस्टीक प्रशासन प्रतिक्रियावाद संरक्षणवादी नीतियाँ अपना रही हैं, जब ग्रेट ब्रिटन में ब्रेक्सिट वोट के बाद कल्याणकारी और लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमले जारी हैं. विश्व अर्थव्यवस्था की एक दीर्घकालिक संकट के बीच, भारत और एशिया के शासक वर्ग ने विदेशी निवेश पाने के हताश प्रयास मे श्रमिक वर्ग के खिलाफ आक्रमण जारी किया है.

ट्रेड यूनियन अधिकारी वर्ग और राजनीतिक पार्टीयों — जिनमे दो प्रधान पूंजीवादी समर्थित स्टालिनिस्ट कम्यूनिस्ट पार्टियाँ समेत हैं — के सभी अवरोधों और उलझनों के बावजूद, लाखों भारतीय मज़दूरों ने मोदी-सरकार केबाज़ार-समर्थक सुधारों के खिलाफ संघर्ष करने का संकल्प साफ़ दिखाया है. भाजपा नेतृत्व गठबंधन ने नियोक्ताओं की मदद के लिए श्रम क़ानून बदलने का प्रयास किया है. इसके अलावा, बड़े व्यापार परियोजनाओं के लिए किसानों की ज़मीन ज़ब्त करने, मौजूदा अल्प अनुदान और सामाजिक व्यव को और कम करने के लिए, भारतीय सरकार ने नये क़ानून पेश किए हैं.

सरकारी हमलों के विरुद्ध, श्रमिकों का संघर्ष जारी है. पिछले सितंबर, भारत भर लाखों, करोंड़ों श्रमिक एक-दिवसीय हड़ताल मे शामिल हुए. इस साल, फ़रवरी 28 को दस लाख से अधिक बेंक वर्कर्स एक और हड़ताल मे शामिल थे. मोदी सरकार को इसी संघर्ष का डर है.

मारुति सुज़ुकी के मज़दूरों पर थोपी गयी सज़ा पर अपनी खुशी जताते हुए, कंपनी के एक वकील, विकास पाहवा ने इंडियन एक्सप्रेस को ये बताया कि "श्रमिकों और यूनियन सदस्यों को अदालत ने एक मजबूत संकेत दिया है कि वे क़ानून को अपनी हाथों मे नही ले सकते हैं.” मगर, वकील साहब ने यह भी कहा की कंपनी "अदालत के फ़ैसले को हाई कोर्ट में चुनौती देगी,” क्यूंकी अदालत ने बाकी 117 मज़दूरों को रिहा किया.

यह टिप्पणी जापानी ऑटो निर्माता की अभिलाषा का सॉफ प्रदर्शन हैं. अदालत, पुलिस, और सरकार के साथ पूंजीवादी वर्ग अपना मुख्य लक्ष्य पूरा करना चाहती है — कठोर कामकाजी परिस्थितियों द्वारा अधिक से अधिक मुनाफ़ा कमाना और श्रमिकों की विरुद्धि को रोकना.

मारुति सुज़ुकी के मज़दूरों के खिलाफ यह हमला भारत विशिष्ठ घटना नहीं है. यह एक ऐसी प्रक्रिया का उदाहरण है जो दिनियाँ भर देखा जा सकता है. हर देश मे बड़ी बहुराष्ट्रिया कंपनियाँ और उनके राजनीतिक किरायेदार श्रमिक वर्ग के खिलाफ युद्ध छेड़ रहे हैं.

जनवरी में बांग्लादेश सरकार और गारमेंट उद्योग नियोक्ताओं ने मिल कर हज़ारों मज़दूरों को बर्खास्त किया और उनके खिलाफ कोर्ट केस दाखिल किया. इसके एक महीने पहले, ढाका के निकट आशुलिया औद्योगिक जिले मे मज़दूर अधिक वेतन और अन्य अलोवेन्स के लिए हड़ताल पे गये.

इसी तरह, जब मई 2011 मे श्री लंका के कटुनायका फ्री ट्रेड ज़ोन — जहाँ ग़ुलाम-मज़दूरी परिस्थितियाँ प्रचलित हैं — मे मज़दूर उस समय के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्से की सरकार द्वारा पेश किए गये पेंशन बिल के खिलाफ प्रदर्शन करने गये, पुलिस की गोलिबारी से 200 घायल हुए, 1 की मौत हुई, और सैकड़ों को गिरफ्तार किया गया.

ऐसे उदाहरणों से सॉफ दिखाई देता है कि दुनियाँ भर बड़ी कंपनियाँ, सरकार और विभिन्न संस्थान जो उनके हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं, मुनाफ़ा के खिलाफ कोई भी सवाल उठने नहीं देंगे.

मारुति सुज़ुकी और दुनियाँ भर के श्रमिकों के खिलाफ छेड़े गये इस जंग मे एक महत्वपूर्ण मुद्दा है — ट्रेड यूनियन और "लेफ्ट" पार्टियों की विश्वासघाती भूमिका. पूंजीवादी वर्ग की ओर से श्रमिकों के खिलाफ दमनकारी क़ानून इस्तेमाल करने मे वे सरकार की मदद करते हैं.

मार्कसिस्त कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया से संबंधित सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन्स (CITU) ने मारुति सुज़ुकी मज़दूरों के पूरे अभियान मे एक अदभुत भूमिका निभाई. मज़दूरों को हतोत्साहित करने के बाद, जब अदालत ने अपनी क्रूर और कठोर सज़ा सुनाई, CITU ने केवल यह कहा कि वे "परेशान और दुखित" हैं. इसके विपरीत, हज़ारों मज़दूरों ने इन झूठे इल्ज़ामों के खिलाफ अपना गुस्सा और अपनी विरुद्धि कई प्रदर्शनों द्वारा दिखाया था। लेकिन स्टालिनिस्ट संसदिया पार्टीयों ने — मार्कसिस्त कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPIM) और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI), जो पूंजीवादी वर्ग के उपकरण के समान हैं — इन फ़ैसलों के खिलाफ एक शब्द भी नहीं कहा.

मारुति सुज़ुकी मज़दूरों को रिहा करने और मोदी सरकार समेत पूंजीवादी वर्ग की अलोकतांत्रिक हमलों और मितव्ययिता नितियों को विरोध करने के लिए, भारत और दुनियाँ भर के श्रमिकों को एक क्रांतिकारी नेतृत्व और परिप्रेक्ष्य की आवश्यकता है. हम मारुति सुज़ुकी के मज़दूर और गुडगाँव में उनके सहयोगियों को बुलावा देते हैं कि वे भारत, दक्षिण एशिया, और दुनिया भर मे अपने श्रमिक-वर्ग के भाई-बहनों के साथ एक जुट हो कर संघर्ष करें. यह एकता केवल चौथा अंतरराष्ट्रिया विश्व कमिटी और उसके सेक्षन्स के निर्माण से हासिल हो सकता है, क्यूंकी सिर्फ़ सोशियलिस्ट ईक्वालिटी पार्टी एक अंतरराष्ट्रिया सोशियलिस्ट कार्यक्रम पर आधारित है.

मारुति सुज़ुकी मज़दूरों के रिहाई के अभियान मे जुड़ें!

श्रमिक वर्ग की क्रांतिकारी पार्टी का निर्माण करें!

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