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सीपीपी पर जोसेफ स्कैलिस के व्याख्यान का संपादित अनुलेख

"ट्रेजेडी से तमाशे तक: मार्कोस, रोड्रिगो ड्यूटर्टे और फिलीपींस की कम्युनिस्ट पार्टियाँ"

26 अगस्त को सिंगापुर की नान्यांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी में डॉक्टर जोसेफ स्कैलिस ने एक भाषण दी, जिसमें उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ फिलीपींस (सीपीपी) और उसकी राजनीतिक विचारधारा से समरूपता रखने वाले अन्य संगठनों एवं दलों द्वारा 2016 के चुनाव में फिलीपींस के राष्ट्रपति रोड्रिगो ड्यूटर्ट का समर्थन किए जाने पर बात की। स्कैलिस सीपीपी की इन नीतियों के राजनीतिक एवं ऐतिहासिक कारणों की पड़ताल करते हुए उसे 1960 के आखिरी और 1970 के शुरुआती दशक में सत्तासीन पार्तिदो कोमुनिस्ता नांग फिलीपीना (पीकेपी) के समांतर रखते हैं, जब फर्दीनांद मार्कोस सैन्य तानाशाही की स्थापना की ओर बढ़ रहा था।

जोसेफ स्कैलिस, जिन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया, बर्कली से दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशियाई स्टडीज में PH. D किया है, नान्यांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी से पोस्ट-डॉक्टोरल रिसर्च कर रहे हैं । वे फिलीपींस के आधुनिक क्रांतिकारी आंदोलनों, पर विशेषज्ञता रखने वाले शोधार्थी हैं। उनकी थीसिस, "क्रांतिकारी नेतृत्व का संकट: मार्शल लॉ और फिलीपींस की कम्युनिस्ट पार्टियाँ, 1957-1974" दो स्टालिनवादी पार्टियों पीकेपी और सीपीपी के बीच राजनीतिक संघर्षों और 1972 में फर्दीनांद मार्कोस द्वारा सैन्य कानून लागू करने में उनकी भूमिकाओं पर अपना विश्लेषण प्रस्तुत करती है।

WSWS अपने पाठकों से अनुरोध करता है कि वे डॉ. स्कैलिस के समर्थन एवं सीपीपी और सीसों के बेबुनियाद आरोपों के विरोध में हमें पत्र भेजें।

नीचे व्याख्यानों की संपादित प्रतिलिपि को प्रकाशित किया गया है। वीडियो भी यहां देखा जा सकता है और स्लाइड्स भी डाउनलोड के लिए उपलब्ध हैं।

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मैं इस पोस्ट-डॉक्टोरल व्याख्यान श्रृंखला का आयोजन कराने और हमारी स्कॉलरशिप को आगे बढ़ाने के लिए नान्यांग तकनीकी विश्वविद्यालय का शुक्रिया अदा करना चाहता हूं। एनटीयू संकाय और कर्मचारीगण मेरे और मेरे काम के प्रति सहयोगी रहे हैं।

मैं पिछले दस सालों से फिलीपींस की कम्युनिस्ट पार्टियों का अध्ययन कर रहा हूं। इस दौरान, मेरा शोध एक विशिष्ट कालक्रम पर केंद्रित रहा. यह अध्ययन ऐसे प्राथमिक स्रोतों पर आधारित है जो गहरी और तुलनात्मक रूप से अप्रयुक्त हैं । जब मैंने ये प्रोजेक्ट शुरू किया, तो मैंने तमाम रिसर्चरों की तरह सोचा था कि मैं सीपीपी का इतिहास, उसकी स्थापना से लेकर वर्तमान तक, लिखूंगा और मेरा काम बड़े पैमाने पर तमाम व्यक्तित्वों के साक्षात्कारों पर आधारित होगा। इस क्रम में, मैंने पाया कि मैं उस राह पर चल रहा था जिस पर मुझसे पहले तमाम शोधार्थी काम कर चुके थे। हालांकि जब मैंने समकालीन लिखित संग्रहों (जो बाद में मेरे शोध का केंद्र बिंदु बने) को खंगाला तो पाया कि वे काफी विस्तृत थे और उनकी मदद से मेरे शोध को नई दिशा मिली, जिस पर पहले काम नहीं हुआ था।

शोध के दौरान मैंने पाया कि शुरूआत सीपीपी की स्थापना के साथ नहीं हो सकती थी लेकिन मुझे इसके लिए उसके पहले के इतिहास की तरफ लौटना पड़ा एवं उसके पीकेपी से विभाजन के कारणों और विभाजन से पहले उसके सदस्यों की भूमिका की गहन पड़ताल करनी पड़ी। ठीक इसी समय, मैंने देखा कि मैं अपना लेख वर्तमान तक जारी नहीं रख सकता। क्योंकि इसके अतिरिक्त बहुत सारे पहलू अभी बाकी थे। इसलिए, आखिर में, मेरा शोध इस बात पर आधारित हो गया कि कैसे दो कम्युनिस्ट पार्टियां थीं, जिनकी विचारधारा एक दूसरे के विपरीत थीं, और कैसे 1972 के सैनिक शासन की स्थापना में उन दोनों पार्टियों का हाथ था।

लिखित रिकॉर्ड काफी विविध हैं: पार्टियों के पत्र, फ्लायर्स, पैंफलेट्स, मैनिफेस्टो और न्यूजलेटर्स। इनमें से ज्यादातर बेहद संक्षिप्त हैं, जिन्हें नेशनल डेमोक्रेटिक मूवमेंट के बैनर तले कई संस्थाओं ने तैयार किया था। विभिन्न संग्रहों से मैंने करीब 10000 पन्नों का डिजिटलीकरण किया, खासकर उन कागजातों के मूल प्रकाशन की तिथियों का पता लगाने और उन्हें विशिष्ट संदर्भ के अनुसार व्यवस्थित करने में सबसे ज्यादा श्रम लगा, जिसे समकालीन अखबारों की सहायता से मैंने तैयार किया था। मैं पिछले 6-7 वर्षों से आठ अलग अलग अखबारों के दैनिक संस्करणों के अतिरिक्त साप्ताहिक अखबारों को भी पढ़ता रहा हूं। इसी कारण मेरे शोध की अवधि इतनी लंबी रही।

मैं बहुत आभारी हूं कि आज मेरे द्वारा पेश किए जा रहे वक्तव्य " ट्रेजेडी  से तमाशे तक: मार्कोज, रोड्रिगो ड्यूटर्टे और फिलीपींस की कम्युनिस्ट पार्टियां" के प्रति लोगों में बहुत उत्साह है। हालांकि इस वक्तव्य के प्रति लोगों में भारी उत्साह का एक कारण पिछले दिनों उठा विवाद भी है, जब सीपीपी के संस्थापक होसे मारिया सिसों (जो होमा सिसों के नाम से जाने जाते हैं) ने सोशल मीडिया द्वारा मुझ पर हमला शुरू कर दिया।

18 अगस्त से 25 अगस्त के बीच उन्होंने मेरी कई नकली तस्वीरें पोस्ट करीं, जिसमें मेरे जोकर जैसे बाल और नाक थे, मेरे सीने पर "मैं ट्रोट्स्की से प्यार करता हूं" का बैज था और मेरे हाथों में इतिहास से छेड़छाड़ करती हुई एक किताब थी। उन्होंने ये भी लिखा कि मैं "एक कम्युनिस्ट विरोधी मानसिक रोगी और ट्रोट्स्कीवाद के शोधार्थी के वेश में सीआईए का एक गुप्तचर" हूं। उन्हें  इन झूठों के लिए अदालत में ले जाया जा सकता है । उनके पास इस दावे -  "मैं सीआईए का एक मनोवैज्ञानिक युद्धकला में प्रशिक्षित एजेंट हूं" - को सिद्ध करने के लिए कोई प्रमाण नहीं है।

उन्होंने यहां तक कहा, "जोसेफ स्कैलिस जैसे विदेशी (और फिलीपींस के भी) ट्रोट्स्कीवादियों  ने संवैधानिक लोकतांत्रिक शक्तियों के साथ साथ क्रांतिकारी बलों को दोषी करार देने की असफल कोशिश की है ताकि वर्तमान की खूनी, लुटेरी, भ्रष्टाचारी और तानाशाही प्रवृत्ति वाली ड्यूटर्टे सरकार की देशद्रोही एवं आपराधिक सत्ता बरकरार रह सके।"

सीपीपी ने अपनी पत्रिका 'आंग बायन' , जो 1969 से प्रकाशित हो रही है, का एक विशिष्ट संस्करण सिर्फ मुझ पर हमला करने के लिए निकाला है। एक लंबे साक्षात्कार में सिसों ने मुझे दुबारा "एक बिकाऊ सीआईए गुप्तचर" के रूप में संबोधित करके मुझ पर फिर से हमला किया है।

उन्होंने कहा, "मैं काफी समय से स्कैलिस के कम्युनिस्ट विरोधी और स्टालिनवाद के विरूद्ध लेखों से परिचित रहा हूं। मैंने उसे नजरअंदाज किया क्योंकि अमेरिकी कॉमरेडों और मित्रों ने मुझे बताया कि उसके ट्रोट्स्कीवादी एवं सीआईए-एजेंट होने की बात जगजाहिर है, जिसे सीपीपी (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ फिलीपींस), ख़ासतौर पर मेरे लेखन पर नज़र रखने का काम दिया गया है और उसने अपना पूरा कैरियर मुझ पर हमला करके और गलतबयानी करके बनाया है।"

उन्होंने आगे कहा (हालांकि मुझे उनकी इन बातों को दोहराने की कोई इच्छा नहीं है लेकिन मैं उनकी कही एक बात पढ़ना चाहता हूँ ), "स्कैलिस झूठा होने के साथ साथ साम्यवाद के विरूद्ध एक पक्का साम्राज्यवादी एजेंट है। यकीनन वो ड्यूटर्टे के पेशेवर हत्यारों का मुखबिर है।"

सिसों ने मुझ पर लगाए गए किसी आरोप के लिए कोई ठोस सबूत नहीं दिया है। उन्होंने मेरे शोध को पढ़ने और समझने की कोई गंभीर कोशिश नहीं की है । ये स्वतः जाहिर है कि उन्हें लगता है कि वे मुझ पर कुतर्क के जरिए बिना सोचे समझे कोई भी लेबल चस्पा करके मेरे काम को खारिज कर सकते हैं।

अब मैं 'आंग बायन' (The People) मैगज़ीन के खास संस्करण में छपे उनके आरोपों की भाषा पर कुछ कहना चाहता हूं, जिसमें धमकी भरे शब्दों की भरमार है। बड़े लंबे समय से इस पार्टी का संबंध अपने विपक्षी नेताओं की राजनीतिक हत्याओं से रहा है, जहां एक स्टालिनवादी का किसी को ट्रॉटस्कीवादी कहना उसे शारीरिक क्षति पहुंचाने की धमकी देने जैसा है। फिलीपींस ही नहीं, पूरे विश्व का इतिहास इस बात की पुष्टि ही करता है।

हालांकि ना तो मैं सिसों की धमकियों से डरने वाला हूं और न ही मैं उनकी स्तरविहीन राजनीति के झांसे में आऊंगा। मेरा इरादा है कि यह ऐतिहासिक वक्तव्य आगे बढ़े ।

उनके हमलों के विरूद्ध कई शोधकर्ताओं एवं पत्रकारों ने सार्वजनिक बयानों के जरिए मेरा समर्थन किया है, मैं अपने पक्ष में खड़े उन सभी लोगों का आभार प्रकट करना चाहता हूं। इसके अलावा वर्ल्ड सोशलिस्ट वेबसाइट ने ऐतिहासिक तथ्यों एवं अकादमिक स्वतंत्रता के पक्ष में वक्तव्य जारी करके मेरे शोध का बचाव किया और मैं उनके इस समर्थन का भी बहुत बहुत आभारी हूं।

इस विवाद से पूर्व, मैंने ड्यूटर्टे सरकार की नेशनल डेमोक्रेटिक मूवमेंट (जो प्रमुख रूप से सीपीपी की विचारधारा से प्रभावित संस्थाएं हैं) से जुड़े कार्यकर्ताओं के विरूद्ध हिंसक कृत्य के जवाब में एक सार्वजनिक पत्र लिखा था। पिछले कुछ हफ्तों के भीतर नेशनल डेमोक्रेटिक मूवमेंट से जुड़े कम से कम दो प्रमुख नेताओं की नृशंस हत्याएं हुईं। इस विषय पर मैं 14 अगस्त को प्रकाशित हुए अपने वक्तव्य को पढ़ना चाहता हूँ ।

" जो  लोग मेरे शोध से परिचय है, वह जानते हैं  कि मेरा ऐतिहासिक लेखन सीपीपी और उसकी राजनीतिक विचारधारा से प्रेरित विभिन्न संगठनों की भूमिका की कटु आलोचना करता है।"

"इसलिए मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूं: मैं राज्य, अर्द्धसैनिक बलों एवं हिंसक गुटों द्वारा की गई हिंसा के विरूद्ध पार्टी एवं उससे जुड़े सदस्यों का पक्ष लेता हूं।"

"रैंडल इचानिस की हत्या फिलीपींस की श्रमिक जनता के विरूद्ध किया गया एक हमला था, जिसे पुलिस-राज्य की स्थापना की दिशा में एक नाटकीय मोड़ के रूप में चिन्हित किया जा सकता है।"

"तानाशाही के खतरे के विरूद्ध श्रमिक वर्ग को अपने स्वतंत्र हितों के लिए एकत्रित होने की आवश्यकता है।"

"सीपीपी और उससे जुड़े समूहों की मेरी आलोचना इस तथ्य पर आधारित है कि उन्होंने श्रमिक वर्ग की राजनीतिक स्वतंत्रता का लगातार विरोध किया है और सत्तासीन अभिजात्य समूहों के साथ गठबंधन करके उनके हितों को दबाने का बार बार प्रयास किया है। इसी स्टालिनवादी दृष्टिकोण के चलते पार्टी-नेतृत्व ने तानाशाही के ख़तरे को अनदेखा करते हुए ड्यूटर्टे को स्वीकृति प्रदान करके उनकी सत्ता तक पहुंच को सुनिश्चित किया।"

"मेरी पार्टी-नेतृत्व और उसकी राजनीतिक गतिविधियों की आलोचना दरअसल श्रमिक वर्ग के हितों का बचाव भर है। ठीक इसी आधार (श्रमिकों के अधिकारों के पक्ष में) पर मैं पार्टी का विरोध करता हूं और इसके साथ ही मैं पार्टी कार्यकर्ताओं के विरुद्ध राज्य एवं अर्धसैन्य बलों द्वारा की गई दमनात्मक कार्रवाईयों की सार्वजनिक निंदा करता हूं।"

अब, न तो सिसों और न ही सीपीपी से जुड़े किसी व्यक्ति ने इस उद्घोषणा को स्वीकार किया है, हालांकि कई अकादमिक चिंतकों और जनता के एक बड़े वर्ग ने इस आलोचना का गर्मजोशी से स्वागत किया है। सिसों ये दावा करते हैं कि मैं सरकारी पेशेवर हत्यारों का मुखबिर हूं।

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि ड्यूटर्टे की ये सेना बहुत ही ख़तरनाक है। ड्यूटर्टे ने पदभार संभालते ही राष्ट्रीय स्तर पर नशीली दवाओं के विरूद्ध युद्ध छेड़ दिया।

इन सरकारी हत्याओं से पीड़ित ज्यादातर लोग निम्न वर्ग से आते हैं। वे गंदी बस्तियों में रहते हैं, ट्राइसाइकिल चालक हैं, फिशबॉल की रेहड़ी लगाते हैं, छोटे मोटे अपराधी हैं और जिनकी हत्याएं हर रोज होती हैं। इनमें से कई हत्याएं पुलिस द्वारा बिना किसी वारंट के की गई हैं, और इससे भी ज्यादा डरावना तथ्य ये है कि ज्यादातर हत्याएं अर्धसैन्य बलों एवं हिंसक गुटों द्वारा की गई हैं।

जो सबसे करीबी आंकड़ा मैं दे सकता हूं वो एक आधिकारिक सरकारी आंकड़ा है, जिसके अनुसार पुलिस द्वारा "नशीली दवाओं के विरूद्ध कार्रवाईयों" के नाम पर तकरीबन 6000 लोगों की हत्या की जा चुकी है। हालांकि हम अखबारों के जरिए ये जानते हैं कि पुलिस द्वारा मारे गए लोगों की तुलना से  कहीं अधिक हत्याएं अर्धसैन्य बलों और हिंसक गुटों द्वारा की जा रही हैं। इन संख्याओं का ठीक ठीक अनुमान लगा पाना बेहद कठिन है। हम फिलीपींस पुलिस के आंकड़ों के जरिए पीड़ितों की संख्या का अनुमान लगा सकते हैं और इस संख्या का गुणा हम उस अनुपात से कर सकते हैं, जिसके बारे में हमें पक्की जानकारी है कि इसी अनुपात में अर्धसैनिक बलों एवं हिंसक गुटों द्वारा हत्याएं की गई हैं। इस गणना के आधार पर हम अनुमान लगा सकते हैं कि करीब 30000 लोगों की हत्याएं की जा चुकी हैं।

मुझे लगता है कि इसे हम नशीली दवाओं के खिलाफ युद्ध के नाम पर गरीबों के विरुद्ध "नरसंहार" की कार्रवाई कह सकते हैं। नि:संदेह आपने इस शब्दावली को अन्तर्राष्ट्रीय अखबारों में प्रयुक्त होते हुए देखा होगा लेकिन फिलीपींस की जनता के बीच "नशीली दवाओं के खिलाफ ये युद्ध" खासा लोकप्रिय है। मुझे लगता है कि भविष्य में जब इतिहासकार एवं समाजशास्त्री इन घटनाओं की गहराई से पड़ताल करेंगे तो यकीनन वे इसकी व्याख्या कहीं अधिक जटिल कथानक के रूप में करेंगे। जिस सर्वे में ये बात सामने आई है कि लगभग 80 फीसदी फिलीपीनी जनता "नशीली दवाओं के खिलाफ युद्ध" का समर्थन करती है, उसी सर्वे से हमें ये भी पता चलता है कि दस में से आठ फिलीपीनो को इस युद्ध में अपनी जान गंवा देने का डर है।

अब जब आपसे सवाल किया जा रहा था और आपने स्वीकारा था कि आप अपने जीवन को लेकर सशंकित हैं, तो आपको क्या लगता है कि ठीक उसी वक़्त आप ये दावा करेंगे कि आप नशीली दवाओं के खिलाफ युद्ध के विरूद्ध खड़े हैं? ऐसे में मुझे लगता है कि इस युद्ध के विरोध में किसी भी तरह का सार्वजनिक बयान देना अपनी जान को गंवाने जैसा है। मुझे नहीं लगता है कि नशीली दवाओं के विरूद्ध छेड़ा गया ये युद्ध ज़रा भी लोकप्रिय है।

सिसों ने मुझ पर सार्वजनिक हमलों के दौरान जितने भी दावे किए, उनमें से एक ये भी था कि सीपीपी द्वारा ड्यूटर्टे के समर्थन किए जाने की बात "झूठी" है। उन्होंने लिखा, "केवल एक ट्रोट्स्कीवादी ही दो धुर विरोधी पार्टियों के बीच हुए शांति समझौते को ड्यूटर्टे के समर्थन और जनता के साथ किए गए धोखे के रूप में देखेगा।" यहां मैं स्पष्ट कर दूं कि ये मेरा तर्क नहीं है। मैं किसी शांति समझौते का विरोध नहीं कर रहा हूं और न ही ये दावा कर रहा हूं कि इस समझौते को ड्यूटर्टे की सत्ता के समर्थन के रूप में देखा जाना चाहिए। बल्कि मैं ये कहना चाहता हूं कि उनका समर्थन इससे कहीं अधिक सूक्ष्म और स्पष्ट रूप में दिखाई पड़ता है।

मैं सिसों के वक्तव्य से एक वाक्य पेश करना चाहता हूं: "ये एक बहुत बड़ा झूठ है कि सीपीपी ड्यूटर्टे सरकार के नेतृत्व में पिछले दो साल से गरीबों के विरूद्ध जारी गैर न्यायिक हत्याओं का समर्थन करती है।" मैं चाहता हूं कि आप इस वाक्य को ध्यान में रखें… अब मैं ऐतिहासिक साक्ष्यों की समीक्षा करूंगा।

मैं इस वार्ता के दौरान पुराने कालखंड (1969 से लेकर 1972 के बीच,जब फर्दिनांद मार्कोज की सत्ता का उभार हुआ था), और वर्तमान के बीच मौजूद कुछ ऐतिहासिक रूप से समांतर पहलुओं पर बात करना चाहता था। पर सिसों के इस दावे के बाद कि सीपीपी के ड्यूटर्टे -समर्थक होने की बात झूठी है, ये आवश्यक हो गया है कि मैं समकालीन साक्ष्यों का विस्तृत ब्यौरा दूं।

दर्शकों में से अधिकांश लोगों को ये याद होगा कि किस तरह से नेशनल डेमोक्रेटिक मूवमेंट और सीपीपी दोनों ही ड्यूटर्टे के सत्तारूढ़ होने पर काफी उत्साहित थे। अब इस उत्साहपूर्ण समर्थन की बात को लगातार नकारा जाता है। हमें बताया गया कि ऐसा कभी हुआ ही नहीं था। मेरे फेसबुक पेज पर एक व्यक्ति ने लिखा, जिसे खासतौर पर मैंने काफी सटीक पाया, "ऐसा महसूस होता है कि हमें भ्रमित (गैसलाइट) किया जा रहा है।" मुझे लगता है कि यह शब्द काफी हद तक सच्चाई को बयान करता है।

इससे पहले कि मैं अपनी समीक्षा प्रस्तुत करूं, मैं एक और बात की ओर इशारा करना चाहता हूं: मैं नहीं जानता, न ही मैं परवाह करता हूं कि कौन पार्टी का सदस्य है और कौन नहीं। ये ऐसी सूचना नहीं है जिसके लिए मैं निजी रूप से उत्तरदायी हूं, अगर होता भी तो मैं कभी इन्हें उजागर नहीं करता। पार्टी के सार्वजनिक चरित्र से परे मेरे पास कोई अन्य जानकारी नहीं है।

हम यह जानते हैं कि फिलीपींस में एक व्यापक जन आंदोलन मौजूद  है, जिसका बड़ा हिस्सा कई समूहों में बंटा हुआ है, जिनमें से अधिकांश समूह एकसमान राजनीतिक विचार एवं झुकाव रखते हैं। मैं ये आरोप नहीं लगा रहा हूं कि ये सभी समूह गुप्त रूप से कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा संचालित हैं। मैं उन्हें चिन्हित नहीं कर रहा हूं। बल्कि, मैं ये दावा कर रहा हूं कि वे और पार्टी दोनों ही साझा राजनीतिक पक्षधरता रखते हैं। मैं इस राजनीतिक पक्षधरता की प्रकृति का विस्तृत विश्लेषण करूंगा, लेकिन, आखिर में ये समीक्षा देश के बुर्जुआ वर्ग और उनके सहयोगियों के बीच मौजूद प्रगतिशील तत्वों की खोज करने पर आधारित है।

नेशनल डेमोक्रेटिक मूवमेंट न केवल पहले से ही सीपीपी के साथ अपना राजनीतिक रुझान साझा करता था, बल्कि इसने हमेशा ही पार्टी के प्रगतिशील माने जाने वाले धड़ों के साथ गुटबंदी भी की।

रोड्रिगो ड्यूटर्टे कौन हैं? ड्यूटर्टे 1960 के दशक में सीपीपी के यूथ विंग के एक सदस्य थे। 1980 के दशक में नेशनल डेमोक्रेटिक मूवमेंट के एक हिस्से के तौर पर वे बायन को नेतृत्व प्रदान कर रहे थेI  हम ये जानते हैं क्योंकि होमा सिसों ने खुद बताया था। ड्यूटर्ट दवाओ के दक्षिणी जिले में सत्ता में आए, जहां उन्होंने तेजी से एक शातिर राजनीतिक शख्सियत के रूप में पहचान मजबूत की: पेशेवर हत्यारों के मुखिया के तौर पर। अपनी पहचान के परिणामस्वरूप राष्ट्रपति ग्लो ग्लोरिया मकपगल अरोयो ने उन्हें अपने अपराध निरोध शाखा में शामिल किया। ड्यूटर्ट ने 2002 में अपराध-निरोध सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा था, "अपहरण और गैर कानूनी दवाओं के व्यापार को रोकने का सबसे बेहतर तरीका सीधी हत्याएं हैं।"

मैं ड्यूटर्टे के कुछ कथनों की ओर ध्यान खींचना चाहता हूं, जिसे मैंने इस मंशा के साथ चुना है ताकि मैं ये आपके सामने स्पष्ट कर सकूं ड्यूटर्टे में ऐसा कोई चमत्कारिक बदलाव नहीं आया था कि वे 2016 में अचानक  फासीवादी बन गए । उनका पुराना इतिहास शुरुआत से ही इसकी पुष्टि करता था।

संयुक्त राष्ट्र के विशेष दस्ते ने दावाओ में ड्यूटर्टे के अधीन काम करने वाले पेशेवर खूनी दलों की जांच के दौरान कहा: "जो लोग भी सतर्कता समूहों द्वारा की गई हत्याओं में शामिल रहे हैं, वे अपना चेहरा नहीं छिपाते हैं।" अन्य शब्दों में कहें तो इन हत्यारों को आधिकारिक समर्थन हासिल है। सभी लोग यह जानते थे। हजारों की संख्या में मौजूद लाशें पिछले एक दशक से जारी ड्यूटर्ट शासन के चरित्र की गवाही देती हैं।

नेशनल डेमोक्रेटिक मूवमेंट का जवाब विरोध दर्ज नहीं कराता था। लूज इलगन, जो नेशनल डेमोक्रेटिक मूवमेंट से जुड़ी पार्टी गैब्रिएला की सांसद हैं, 2009 में प्रकाशित हुए मनीला टाइम्स के एक आलेख में मेयर के तौर पर ड्यूटर्टे शासन की तारीफ करते हुए लिखती हैं: "मेयर को हमारा सहयोग चाहिए। शहरी लोग इस बात को पचा नहीं पा रहे हैं कि मेयर ने उस कानून व्यवस्था को बनाए रखने में बहुत मेहनत की है, जिसका हम सभी आनंद उठा रहे हैं। ड्यूटर्टे जैसे नेतृत्व ने हमें सकुशल एवं सुरक्षित महसूस कराया है।"

इस बयान में कुछ हद तक सच्चाई छुपी हुई है। एक मेयर के रूप में ड्यूटर्टे के शासन काल के दौरान हुई हत्याओं में नेशनल डेमोक्रेटिक मूवमेंट के लोग शामिल नहीं थे। वे राजनीतिक सामाजिक कार्यकर्ता नहीं थे। यहां तक कि सीपीपी और एनपीए से जुड़े लोगों की निशानदेही नहीं की गई थी। मरने वालों में ज्यादातर गरीब श्रमिक वर्ग के लोग थे, जो ड्यूटर्ट के राष्ट्रपति बनने के बाद भी

उसके शिकार हैं ।

अब 2015 की बात करते हैं। ड्यूटर्टे अब राष्ट्रीय मंच पर आ चुके थे। अब उनकी साख ऐसी हो चुकी थी जिसे फिलीपींस में "राष्ट्रपति बनने की योग्यता" के रूप में देखा जाता है। जनवरी 2015 में ड्यूटर्टे ने एक प्रेस वार्ता का आयोजन किया, जहां उनकी ओर से सीपीपी-एनपीए गठबंधन ने कम्युनिस्ट झंडे लहराए , जहां उन्होंने घोषणा की कि अगर वे चुने जाएंगे   तो वे कांग्रेस को निरस्त कर देंगे, सामाजिक सुरक्षा लाभों के साथ सभी सरकारी संपत्तियों का निजीकरण करेंगे और सीपीपी के साथ एक गठबंधन सरकार बनाएँगे। उन्होंने वादा किया कि होमा सीसों  के नेतृत्व में प्राइवेट सोशल वेलफेयर ब्यूरो का गठन करेंगे। सीसों, जो सीपीपी के संस्थापक हैं, ने फेसबुक पर लिखा, "मेयर ड्यूटर्टे को राष्ट्रपति बनना चाहिए।"

भूलिए मत  कि "सीपीपी द्वारा ड्यूटर्टे के समर्थन किए जाने की बात झूठी है।"

25 मई 2015: एक रेडियो साक्षात्कार के दौरान ड्यूटर्टे से ह्यूमन राइट्स वॉच की एक रिपोर्ट के आधार पर 1990s में नागरिक सतर्कता समूहों द्वारा की गई हत्याओं (जिसकी संख्या 1000 से ज्यादा ही थी) के बारे में सवाल किया गया था। इसके जवाब में उन्होंने बड़े ही गर्व से कहा था कि वे इन नागरिक सतर्कता समूहों के मुखिया थे और कहा ( जो बाद में काफी मशहूर भी हुआ), "अगर मैं राष्ट्रपति बन गया तो ये संख्या एक लाख होगी। मैं इन लाशों को मनीला खाड़ी की मछलियों की खुराक के तौर देखूँगा।"

ड्यूटर्टे के जिस कथन को नरसंहार की स्वीकृति और एक स्पष्ट राजनीतिक चेतावनी के रूप में देखा जाना चाहिए था, उसे प्रेस और तमाम राजनीतिक दलों ने एक मज़ाक के तौर पर देखा। मेरे अनुमान के मुताबिक अगर वाकई 30000 लोगों की हत्याएँ हो चुकी हैं तो ड्यूटर्टे अपना वादा निभाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।

जुलाई 2015 में, सीपीपी के सैन्य मोर्चे, न्यू पीपुल्स आर्मी, के मृत नेता लियोनिसाओ पिताओ (जिन्हें कापरागो के नाम से भी जाना जाता था) के सम्मान में एक मंच का आयोजन किया गया। ये दवाओ में आयोजित मंच था। इस समारोह को छुपाने की कोई कोशिश नहीं की गई थी और न ही सुरक्षा को लेकर कोई सावधानी बरती गई थी। सीपीपी ने इस "क्रांतिकारी नेता" के सम्मान में एक बहुत बड़ी भीड़ जुटा ली थी। मंच पर पार्टी के बैनर लगे हुए थे, "संयुक्त मोर्चा अमर रहे! सीपीपी अमर रहे!" मंच के बीचों-बीच पार्टी का झंडा (हथौड़ा, दरांती और रायफल) लगा हुआ था। उन्होंने इंटरनेशनल गाया और मुख्य अतिथि के रूप में रोड्रिगो ड्यूटर्टे को बुलाया। जिस हिंसक गुटों के मुखिया के तौर पर वो तकरीबन एक लाख लोगों की हत्याएँ करवाने की मंशा रखते थे, उन्हें अपने एक नेता के सम्मान में आयोजित समारोह में मंच का हिस्सा बनाया था।

याद करें: "सीपीपी द्वारा ड्यूटर्ट के समर्थन किए जाने की बात झूठी है।"

पार्टी ने पिताओ के सम्मान में दवाओ में हुए सैन्य संघर्ष के रेखाचित्रों का अनावरण किया। पिताओ के बगल में रोड्रिगो ड्यूटर्ट का चेहरा भी उस रेखाचित्र में बना हुआ था।

2016 के चुनावों के दौरान, राष्ट्रपति के लिए उम्मीदवार की घोषणा करने की समयसीमा ख़त्म होने के पहले अपने चिरपरिचित अंदाज़ में ड्यूटर्ट ने  कहा कि वे राष्ट्रपति का चुनाव नहीं लड़ेंगे। मार्टिन दीनो, जो इतने जाने पहचाने नेता नहीं थे ड्यूटर्ट की पार्टी ने उम्मीदवार के तौर पर चुने गए ।

नेशनल डेमोक्रेटिक मूवमेंट ने ग्रेस पो जिसका वे 2013 में सीनेट के उम्मीदवार के तौर पर समर्थन के चुके थे, का एक और बार उम्मीदवार के तौर पर समर्थन किया । मकबायन गठबंधन की ओर से सीनेट की उम्मीदवार के तौर नेरी कोल्मेनारेस अकेली चुनाव लड़ रही थीं।

फिर अपने चिरपरिचित नाटकीय अंदाज़ में ड्यूटर्ट ने घोषणा कि वे चुनावी दौड़ में फिर से शामिल होना चाहते हैं। दीनो को उम्मीदवारी छोड़नी पड़ी और ड्यूटर्ट ने अपने राष्ट्रपति चुनाव का प्रचार शुरू कर दिया। इस घोषणा के कारण नेशनल डेमोक्रेटिक मूवमेंट के सामने एक मुसीबत खड़ी हो गई क्योंकि उन्होंने पो के साथ औपचारिक समझौता कर लिया था। अब वे उनके लिए प्रचार करने और उनके लिए खड़े होने को बाध्य थे।

मिंदानाओ और पूरे दक्षिणी फिलीपींस में एनकबायन, एनकपाविस और उनसे जुड़े संगठनों ने पो का प्रचार करने की बजाय ड्यूटर्ट के पक्ष में चुनावी रैली निकाली। प्रचार अभियान में निकली गाड़ियों पर एनकपाविस, नेरी कोल्मेनारेस और ड्यूटर्ट के पोस्टर लगे हुए थे।

इसके केंद्र में दवाओ से नेशनल डेमोक्रेटिक मूवमेंट से जुड़े हुए लोग थे, जिसमें एनकपाविस के प्रतिनिधि आयिक कैसिलाओ भी थे। उनके फेसबुक पेज से उनकी तस्वीर, जिसमें वे  ड्यूटर्ट के अंदाज़ में बंध मुट्ठी सलाम देते हुए दिखते हैं, यह स्पष्ट करता है कि एनकपाविस ने उस पूरे क्षेत्र में ड्यूटर्ट के समर्थन में रैली निकाली।

मिंदानाओ, कसिलाओ से नेशनल डेमोक्रेटिक मूवमेंट के उम्मीदवारों और बायन मुना के कार्लोस जार्डी ने सार्वजनिक प्रपत्र पर हस्ताक्षर करते हुए "राष्ट्रपति पद के लिए रोड्रिगो ड्यूटर्ट को अपना पूरा समर्थन" दिया।

राजधानी मनीला में बायन मुना के कुछ प्रतिनिधियों ने ऐतराज जताया कि नेशनल डेमोक्रेटिक मूवमेंट पो के चुनावी अभियान के तुरंत बाद ड्यूटर्ट का इतना जल्दी समर्थन कैसे कर सकता है? सीसों  ने उनका मज़ाक उड़ाते हुए मई में एक फेसबुक पोस्ट छपाया : " हम केवल पूँजीपतियों पर हमला नहीं करते.. हम राष्ट्रवादी पूँजीपतियों के साथ मिलकर काम कर सकते हैं, उनके साथ बातचीत के साथ साथ खरीद फरोख्त के लिए भी उन्हें मना सकते हैं। हमारा हनीमून तो बस अभी शुरू है। हम उनसे बात कर रहे हैं। उन्होंने हमें कुछ पदों का प्रस्ताव भी दिया है।"

सीसों ने 10 जून 2016 को विभिन्न संगठनों से आए हुए युवा नेताओं को संबोधित करते हुए काफी ज़हरीला भाषण दिया। उन्होंने दावा किया, "दवाओ का मेयर होते हुए ड्यूटर्ट ने सार्वजनिक जीवन महिलाओं की भूमिका को स्वीकारा है, बेसहारा बच्चों और महिलाओं के लिए नीतियाँ बनाई हैं और महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा के विरूद्ध अपना गुस्सा भी दिखाया है।" ये एक चकरा देने वाला झूठ है।

ड्यूटर्ट बलात्कार का मज़्ज़ाक़ उड़ाने के लिए खासे बदनाम हैं, " "मज़्ज़ाकी " तौर पे वे बलात्कारियों से उनको "पहला मौका" न दाने के कारण "गुस्सा" जताते हैं । वे महिला पत्रकारों पर भद्दी फब्तियां कसते हैं। आखिरकार जब सीपीपी और ड्यूटर्ट के बीच मतभेद के चलते उनके संबंध ख़राब हो गए, तो उन्होंने गुस्से में आकर एक भाषण के दौरान अपनी सेना को पार्टी की महिला नेताओं पर हमला करके उनके वैजाइना में गोली मारने का आदेश दिया।

ये ऐसे  आदमी नहीं है जिसने "महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा के विरूद्ध अपना गुस्सा दिखाया है।"

मैं यहां ये जोड़ना चाहूँगा कि महिलाओं के अधिकारों पर बात करने योग्य विश्वसनीयता सीसों के पास नहीं है। पार्टी ने कई दशकों से शादी से पूर्व यौन संबंध रखने वाली महिला नेताओं को अनुशासित (दण्डित) करने व्यवस्था कर रखी है। ऐसी नीतियाँ कैथोलिक चर्च से जुड़े अपने सहयोगियों को पार्टी के साथ बनाए रखने के लिए लागू की गई थीं। पार्टी के भीतर भी महिलाओं को राजनीतिक रूप महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियों से भी बाहर रखा गया था।

सीसों ने अपने 10 जून के भाषण में युवा नेताओं को संबोधित करते हुए कहा:

"हम एक तरह की गठबंधन सरकार बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें पार्टी और ड्यूटर्ट प्रशासन की साझेदारी के अतिरिक्त अन्य राष्ट्रवादी एवं प्रगतिशील ताक़तों की भागीदारी भी हो। ये सरकार राष्ट्रीय एकता, शांति और विकास सुनिश्चित करती है... इसलिए ये सवाल उठता है कि क्या जनता के युद्ध के बिना कोई भी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक क्रांति पूरी हो सकती है.."

अब उन्होंने इस सवाल का कोई जवाब नहीं दिया था लेकिन इस सवाल के जरिए उन्होंने ये संकेत दे दिया था कि ड्यूटर्ट प्रशासन के साथ भावी गठबंधन सरकार बनने पर न्यू पीपुल्स आर्मी के साथ किया जाएगा।

"क्रांतिकारी सैन्य टुकड़ियां पर्यावरण संरक्षण प्रदान करने के साथ साथ शांति और विकास सुनिश्चित करने में उद्योगों की सुरक्षा भी कर सकती हैं। सैन्य बलों को एकजुट करना जरूरी है।"

न्यू पीपुल्स आर्मी के काडर का एक बहुत बड़ा हिस्सा, जो युवा है, ये सोचता है कि वो एक बेहतर दुनिया के निर्माण के लिए हथियार उठा रहा है। ये युवा मान चुके हैं कि देश की असाधारण गरीबी दूर करने के लिए इसके सिवा कोई दूसरा उपाय नहीं है। इसके लिए ज्यादातर युवाओं ने अपनी जान तक गँवाई है।

सीसों अपनी पार्टी के सैन्य मोर्चे, जो इन आदर्शवादी और आत्मबलिदानी युवाओं से मिलकर बनी है, को उद्योगों की संरक्षा का भार देने की उद्घोषणा कर रहे थे। ये बात ध्यान रखें कि सिसीसों ये सभी घोषणाएँ समाजवाद नहीं, बल्कि राष्ट्रीय लोकताँत्रिक ढांचे के भीतर रहते हुए कर रहे थे। ये सभी निजी पूँजीपतियों के उद्योग हैं, जिनकी संरक्षा का भार एनपीए पर डालने की बात की गई है। उन्होंने तर्क देते हुए आगे कहा कि एनपीए काडर को फिलीपींस की राष्ट्रीय सेना के साथ संयोजित कर दिया जाएगा, जो सेना कई दशकों से पार्टी के विरूद्ध दमनात्मक खूनी कार्रवाइयों के लिए जिम्मेदार रही है।

नई चुनी हुई ड्यूटर्ट सरकार को अपने मूल चरित्र पर लौटने में ज्यादा समय नहीं लगा। फ्रांसीसी न्यूज़ प्लेटफॉर्म 'एग्नेस फ्रांस प्रेसे' ने 12 जून को प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा: "हथियारबंद पुलिस रोते हुए बच्चों को हिरासत में ले रही है, शराबियों और भूखे नंगे व्यक्तियों को परेशान कर रही है, ड्यूटर्ट के अधिनायकवादी राज में देश की राजधानी मनीला का हाल ऐसा है कि रात में सड़कों पर पाए जाने पर बेघर बच्चों और उनके माता-पिताओं को जेल में डाला जा रहा है।" नई सरकार बनने के सिर्फ एक हफ्ते के भीतर ढेर सारी लाशें इकट्ठी हो गई थीं। पीड़ितों की लाशें उनके खून से सने बैनरों के साथ सड़कों पर पड़ी थीं और फिलीपींस के सभी अखबारों के पहले पन्नों पर इस नरसंहार की तस्वीरें छाई थीं।

नेशनल डेमोक्रेटिक मूवमेंट ने सिर्फ ड्यूटर्ट की उम्मीदवारी का समर्थन नहीं किया था। उन्होंने ड्यूटर्ट के ड्रग वॉर का समर्थन किया था। आइंस्टीन रिसिडीज, जो अनकबायन के महासचिव हैं, ने 26 जून को लिखा: "हमें विश्वास है कि ड्यूटर्ट द्वारा ख़तरनाक दवाओं और अपराधों के विरूद्ध छेड़ा गया युद्ध ग़रीबों के लिए एक वरदान है।"

रेनेते रेयेज, बयान के महासचिव 4 जुलाई को लिखते हैं: " में साफ़ कहूँ तो वो हमारा सहयोगी है।" हालांकि उन्होंने यह स्वीकार किया  कि ड्यूटर्ट के साथ बायन के अपने कुछ मतभेद हैं, जिसके लिए उन्होंने तर्क देते हुए कहा: रा”ष्ट्रपति द्वारा पिछले एक महीने के भीतर कही हुई हर एक बात पर, जहां हम असहमति रखते हैं, अगर हम तुरंत आपत्ति जताएंगे तो उससे गठबंधन कमज़ोर पड़ जाएगा।“ उन्होंने अपने पाठकों से अपील करते हुए कहा, "कम से कम हमें उसे एक मौका तो देना ही चाहिए।"

ये नेशनल डेमोक्रेटिक मूवमेंट की सबसे बड़ी चिंता थी। कि यदि वे ड्यूटर्ट के फासीवादी नरसंहार के बारे में जनता को आगाह करेंगे तो इससे उनका गठबंधन कमज़ोर पड़ जाएगा।

बायन ने ड्यूटर्ट के पहले संबोधन के लिए एक वक्तव्य: “द पीपुल्स वन हंड्रेड डे एजेंडा" जारी किया, जिसमें उन्होंने कहा, "फिलीपींस की जनता ड्यूटर्ट की राष्ट्रवादी और जनहितकारी नीतियों की घोषणाओं से बेहद खुश है।"

ड्यूटर्ट के पहले संबोधन के बाद उन्हें राष्ट्रपति भवन (मालाकैनांग) में निमंत्रण मिला, जहां उन्होंने राष्ट्रपति ड्यूटर्ट के सामने अपना बयान जारी किया और बंद मुट्ठी सलाम करते हुए उनके साथ तस्वीरें खिंचवाईं।

सीसों ने अपना वक्तव्य इस उद्घोषणा के साथ खत्म किया: "राष्ट्रपति ड्यूटर्ट अमर रहें!"

याद करिए: "सीपीपी द्वारा ड्यूटर्ट के समर्थन किए जाने की बात झूठी है।"

ड्यूटर्ट ने देश को संबोधित करते हुए भाषण दिया, जो  बिल्कुल बेहूदा था, दुर्भाग्य से हम सभी इस तरह के भाषणों से काफी परिचित हैं। भाषण का कुछ हिस्सा सीधे सीधे पुलिस और सेना को संबोधित करता था। "मुझे उन मूर्खों का खात्मा करना होगा, जो मेरे देश को नष्ट कर रहे हैं," उसने कहा। "मैंने सेना से कहा था कि अगर आप किसी भी अपराधी को देखें तो उसे गोली मार दें, भले ही वो सफ़ेद झंडा लहराते हुए आत्मसमर्पण कर रहा हो, क्योंकि ये युद्ध है " अनकबायन ने कहा कि राष्ट्रपति का राष्ट्र के नाम संबोधन "ताजी हवा की लहर" जैसा था।

 26 जून 2016 को आंग बायन, जो सीपीपी द्वारा प्रकाशित प्रमुख मैगज़ीन है, लिखता है: "जनता ड्यूटर्ट द्वारा ड्रग माफियों को जड़ से मिटाने के लिए उठाए गए सभी क़दमों का सहयोग करेगी।" दो हफ्ते बाद 7 जुलाई को आंग बायन कहता है: "सीपीपी राष्ट्रपति ड्यूटर्ट द्वारा नशीली दवाओं की तस्करी के विरूद्ध क्रांतिकारी ताक़तों का सहयोग किए जाने की मांग का स्वागत करती है।" लुईस जलांदोनी अगस्त में लिखते हैं: "ड्यूटर्ट और क्रांतिकारी आंदोलनों का संबंध बहुत गहरा है।"

 1 जुलाई को ड्यूटर्ट ने फिलीपींस की सेना को संबोधित करते हुए एक भाषण दिया, जिसमें उसने सीपीपी की सेना (न्यू पीपुल्स आर्मी) को लेकर एक अपील जारी की। "अपने कंगारू अदालतों के जरिए सभी ड्रग माफियाओं को मार डालो ताकि हमारी समस्या का जल्दी समाधान हो जाए।" अगले दिन सीपीपी ने एक वक्तव्य "राष्ट्रपति ड्यूटर्ट और एंटी-ड्रग सहयोग की मांग" जारी किया, जिसमें कहा गया था: "पार्टी राष्ट्रपति ड्यूटर्ट द्वारा नशीली दवाओं की तस्करी के विरूद्ध क्रांतिकारी ताक़तों का सहयोग किए जाने की मांग का स्वागत करती है।"

एक महीने के गुजर जाने के बाद मरने वालों की संख्या हजारों में पहुंच गई थी। पुलिस गिरफ्तारी से बचने की कोशिश करने वाले हर व्यक्ति पर गोलियां चला रही थी, जिसका आदेश सीधा राष्ट्रपति द्वारा दिया गया था। सीपीपी ने उनके कदम का अनुसरण किया। उन्होंने कहा, "एनपीए गिरफ्तारी से हथियारबंद बचाव के विरोध में पड़ने को तैयार है।"

अगले दिन सीएनएन को दिए हुए एक इंटरव्यू में  सीसों ने अंतर्राष्ट्रीय दर्शकों के बीच दावा किया कि पार्टी कथित ड्रग डीलरों के विरूद्ध हिंसक कार्रवाई करेगी। ये पूछे जाने पर कि एनपीए की अदालत अभियुक्तों को उचित सुनवाई का उनका अधिकार कैसे सुनिश्चित करेगी, सीसों ने जवाब दिया कि अभियोजन पक्ष "क्रांतिकारी न्याय" से पूर्व गवाहों के दिए गए बयानों को प्रथम दृष्टया सबूत के तौर पर पेश करेगा।

पार्टी का "क्रांतिकारी न्याय" और "लोक अदालत" की अवधारणा को लेकर एक लंबा खूनी इतिहास है। 1980 के दशक में, पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओं पर निशाना साधते हुए पार्टी के भीतर आंतरिक कार्रवाई की शुरुआत की, जहां उन्होंने अपने काडर के भीतर सैन्य गुप्तचरों की घुसपैठ को वजह मानते हुए कार्यकर्ताओं की हत्याएँ की। गवाहों के बयान और यातना के जरिए उगाही गई जानकारियों के आधार पर सीपीपी ने अपने करीब 1000 कार्यकर्ताओं की हत्या करवाई।

सीसों के दावे को फिर से याद करिए: "सीपीपी द्वारा ड्यूटर्ट के समर्थन किए जाने की बात झूठी है।" मुझे उम्मीद है कि आप सभी को अब तक स्पष्ट हो गया हो गया होगा कि उनका ये दावा सरासर झूठा है। ये सबसे बड़ा झूठ है कि सीपीपी ने ड्यूटर्ट का समर्थन नहीं किया।

इस समर्थन और विरोध के पीछे, जहां अपने समर्थन को न्यायपूर्ण सिद्ध करने और उसकी लीपापोती करने के लिए तमाम झूठ बोले गए, एक पैटर्न है जो पार्टी के ऐतिहासिक चरित्र से मेल खाता है। इस ज़रूरी बात  को मैं ठीक से स्थापित करना चाहता हूं। पार्टी का पूरा इतिहास उसके नेतृत्व द्वारा झुठलाया जाता रहा है। अगर आप इस वार्ता से कोई एक चीज लेना चाहते हैं तो वो इस ऐतिहासिक तथ्य को उजागर करने की मंशा होनी चाहिए।

मैं एक और मौके का ज़िक्र करना चाहूँगा जहां पार्टी और नेशनल डेमोक्रेटिक मूवमेंट से जुड़ी संस्थाओं ने ड्यूटर्ट का समर्थन किया। ये मेरे लिए विशेष रूप से दुखद प्रसंग है।

द नेशनलिस्ट यूथ (केएम: कबातांग मकाबायन), जो सैन्य तानाशाही लागू होने से पहले के दिनों में कम्युनिस्ट पार्टी का युवा मोर्चा था, के नाम पर सीपीपी और नेशनल डेमोक्रेटिक मूवमेंट ने रोड्रिगो ड्यूटर्ट को उनकी राष्ट्रवादी भावना के लिए उन्हें "गावद सुप्रीमो अवार्ड" से सम्मानित किया ।

गावद सुप्रीमो अवार्ड, जो कबातांग मकाबायन का सर्वोच्च सम्मान है,  आज तक केवल दो व्यक्तियों को दिया गया है: रोड्रिगो ड्यूटर्ट और होसे मारिया सीसों। कबातांग मकाबायन से जुड़े युवा निश्चित रूप से अपनी पूरी पीढ़ी में सबसे ज्यादा प्रतिभाशाली हैं। वे त्याग की भावना से युक्त, बेहद परिश्रमी हैं। जैसे जैसे मैं मार्कोस की तानाशाही से पहले का इतिहास पढ़ता गया, मैं इन युवाओं की लगन एवं उनकी प्रतिबद्धता का कायल होता गया। ठीक उसी समय युवाओं के प्रति उनके व्यवहार को देखते हुए, मेरे भीतर उनके शीर्ष नेतृत्व के प्रति गहरा विरोधी भाव विकसित हुआ।

रोड्रिगो ड्यूटर्ट को गवाद सुप्रीमो अवार्ड दिया जाना सीपीपी की धोखेबाज़ी का आखिरी सबूत है। जिन्होंने पचास साल पहले तानाशाही के विरूद्ध लड़ाई में अपनी जानें गंवाईं, ये यह उनके बलिदान का विश्वासघात है, जिसे एक बैज की तरह एक फासीवादी लुटेरे के सीने पर उसकी योग्यता की मुहर की तरह टांक दिया गया है, ताकि एक राजनीतिक गठबंधन को संभव बनाया जा सके।

मैं इतिहास की तरफ मुड़ना चाहता हूं। कबातांग मकाबायन क्या था? ड्यूटर्ट के साथ पार्टी के गठबंधन के ऐतिहासिक कारण क्या हैं? क्या अतीत में ऐसे समांतर पहलू हैं, जिसके जरिए वर्तमान को समझा जा सकता है?

एक नज़र से देखें तो मेरी कहानी होमा सीसों के साथ शुरू होती है। पर जिन घटनाओं की हम बात कर रहे हैं , वे एक व्यक्ति के साथ नहीं शुरू होती हैं, बल्कि उससे जुड़ा इतिहास सीसों की मौजूदगी के कहीं पहले से शुरू होता है। हमारी कहानी फिलीपीनी कम्युनिस्ट पार्टी (पीकेपी: पार्तिदो कम्युनिस्ता नांग फिलीपीना) की स्थापना से शुरू होती है, जो कि एक पूर्ववर्ती स्टालिनवादी पार्टी थी। मैं थोड़े देर में स्टालिनवादी पार्टी से मेरा जो अभिप्राय है, उसे ठीक से समझाऊंगा। 1930 के दशक में पीकेपी की स्थापना हुई, जिसके भीतर एक बहुत बड़ी कृषक शाखा का गठन हुआ, इसने एक कृषक विद्रोह का नेतृत्व किया (जिसे हुक विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है), जिसने जापानी साम्राज्य और नए स्वाधीन राज्यों के विरूद्ध लड़ाई लड़ी और आखिर में 1950 के दशक में भूमिगत हो गई। मैं यहां इस पूरे इतिहास का वर्णन नहीं कर सकता।

मैं अपने आज के व्याख्यान में पीकेपी के विघटन के इतिहास, जिसने बाद में सीपीपी को जन्म दिया, और कैसे इन दोनों पार्टियों ने मिलकर सैन्य शासन की स्थापना में सहयोग दिया, पर अपना ध्यान रखना चाहूँगा। 1950 के दशक में पीकेपी को पुनर्जीवित करने, उसके विघटन और उससे नई पार्टी खड़ा करने के पीछे होसे मारिया सीसों से अधिक किसी दूसरे व्यक्ति की भूमिका नहीं है।

सीसों की पारिवारिक पृष्ठभूमि से हमें काफी कुछ जानकारी मिल जाती है। वे देश के सबसे अमीर घरानों में शामिल एक परिवार से नाता रखते हैं। उनके परदादा डॉन लेआंद्रो सेर्रानो उन्नीसवीं सदी में उत्तरी लुजॉन के सबसे बड़े जागीर के मालिक थे। सीसों स्वयं बताते हैं कि उनके परदादा की संपत्ति में उनके जिले की करीब अस्सी फीसदी भूमि एवं चार अन्य नगरपालिकाएं आती थीं। जागीर से होने वाले मुनाफ़े से उन्होंने "राज्य की सबसे बड़ी हवेली का निर्माण करवाया था। लगभग 5000 वर्ग मीटर क्षेत्रफल पर फैली इस हवेली में कुल 25 कमरे हैं, जबकि इस क्षेत्रफल से बाहर एक भोजन कक्ष, जिसमें तकरीबन सौ लोगों बैठ सकते हैं, एक गिरजाघर और चार-तलों वाला राज्य का सबसे बड़ा भंडार घर भी है।" ये जानकारी सीसों के अपने संस्मरण से उद्धृत हैं, जो उनके अलग-अलग साक्षात्कारों पर आधारित है।

होमा सीसों के दादा डॉन गार्जिनो सीसों का विवाह डॉन लेआंद्रो की एक बेटी से हुआ था। वे स्पेन के औपनिवेशिक शासन के दौरान काबुगाओ के आखिरी गवर्नर  थे। वे फिलीपीनी गणराज्य की अस्थाई राजनीतिक सत्ता के दौरान काबुगाओ की नगरपालिका अध्यक्ष भी रहे और अमेरिकी शासन के दौरान भी उन्होंने अपना पद बनाए रखा और बाद में वे काबुगाओ के मेयर बने।

1921 तक सीसों परिवार की संपत्ति का बड़ा हिस्सा तम्बाकू की कृषि से जुड़ गया था, जहां बहुत बड़ी संख्या में भूमिहीन कृषक काम करते थे। सीसों का परिवार मातहत काम करने वाले किसानों के साथ सामंती विशेषाधिकारों के जरिए जुड़ा हुआ था और उनकी संपत्तियां अन्तर्विवाहों के जरिए संचित एवं विभाजित होती रहीं। उनके पारिवारिक संबंधों की श्रृंखला काफी विस्तृत एवं घनी है, जिसके केंद्र में सिसन हैं। उनके दो रिश्तेदार कांग्रेस के सदस्य थे, एक नुएवा सेवोगिया के मुख्य पादरी थे और उनके दूसरे रिश्तेदार गवर्नर थे। उनके एक करीबी रिश्तेदार फिलीपींस विश्वविद्यालय के अध्यक्ष थे और दूसरे चुनाव आयोग (कमीशन ऑन इलेक्शंस, सीओएमईएलईसी) के मुखिया थे। चर्च के किसी भी आयोजन में उसकी अगली कतार उनके परिवार के लिए आरक्षित थी। उनके किराएदार कृषक हर रोज का भूमि का किराया देने, बीज की मांग करने आते थे, और बेगार काम करके परिवार से अपने प्रति अनुकंपा बनाए रखने की आशा करते थे। इन सभी बातों ने सीसों का मनोविज्ञान प्रभावित किया था।

उनकी मां ने 1970 में ग्राफिक वीकली से एक साक्षात्कार में कहा था कि "उनका बेटा, जिसे वे प्यार से चेंग बुलाया करती थीं, घर के अन्य बच्चों की तुलना में कहीं ज्यादा नौकरानियों पर हुक्म चलाया करता था। नौकरानियों को लगातार उसके आदेशों का इंतजार करना पड़ता था। उसने कभी अपना काम खुद नहीं किया। यहां तक कि स्नानगृह में भी वो नौकरों को तौलिए और कपड़े हाथ में देने के लिए बुलाता रहता था।"

विशेषाधिकारों भरी ये दुनिया, हालांकि, विलुप्त हो रही थी। डॉन लेआंद्रो की जागीर में चावल, तम्बाकू, नील और मागी (रामबांस) के खेत शामिल थे। बीसवीं सदी में इनका कारोबार मंदा पड़ चुका था। एक तरफ शक्कर वैश्विक महत्ता रखने वाला एकल कृषि उत्पाद बन चुका था, वहीं दूसरी तरफ नील और मागी की जगह कृत्रिम रंजकों (डाई) और कृत्रिम रेशों ने ली थी। चावल का मुख्य उत्पादन क्षेत्र नुएवा एसिया राज्य में स्थानांतरित हो चुका था। तम्बाकू की कृषि पारिवारिक संपत्ति का सबसे बड़ा हिस्सा बन गया था और ये उनकी पुरानी संपदा को बनाए रखने की स्थिति में नहीं था।

अपनी पारिवारिक संपत्ति को बचाने के लिए सीसों के पिता, सैलुस्तियानों, ने 1949 में अपने रिश्तेदार विंसेंट मलारी को पत्र लिखते हुए उनसे अनुरोध किया कि वे आंतरिक मामलों के सचिव से कहें कि वे सरकार की सेवा में "एक खुफ़िया जासूस" बनने को तैयार हैं। ये पत्र हवाई विश्वविद्यालय में सीसों के भाई  भाई रेमन सीसों के संग्रह का हिस्सा है। वे लिखते हैं:

"मैंने विश्वासनीय  सूत्रों से पता लगाया है कि सेक्रेट्री सोतेरो बालुयुत गृह मंत्रालय की तरफ से ऐसे गुप्तचरों की नियुक्ति का प्रयास कर रहे हैं जो मध्य लुजॉन और फिलीपींस के अन्य भागों में फैले नागरिक-विद्रोहों के खिलाफ अभियान छेड़ने में मदद करें।" ये हुक विद्रोह के संदर्भ में कहा गया था। सीसों के पिता अपनी आर्थिक स्थिति को संभालने के लिए हुक विद्रोह के दमन हेतु एक गुप्तचर बनने को तैयार थे।

परिवार की गिरती आर्थिक सेहत का मतलब था कि सीसों की पहुंच काफी हद तक कम हो गई थी। वे अभी भी विशेषाधिकारों की छांव में पले-बढ़े एक व्यक्ति थे, लेकिन उन्होंने और उनके भाई-बहनों ने अपने सामंती जीवनशैली को सीमित करते हुए अपने सीमित संसाधनों के साथ आधुनिक शहरी जीवन को अपनाने की कोशिश की। अगर एक शब्द में कहें तो वे सभी छोटे बुर्जुआ थे।

मार्कोस प्रशासन में सीसों  के भाई डॉक्टर, डेंटिस्ट एवं तकनीकी विशेषज्ञ के रूप में नियुक्त हुए और सीसों  स्वयं वकील बनकर, हार्वर्ड जाकर एक राजनीतिज्ञ बनना चाहते थे। उन्होंने फिलीपींस विश्वविद्यालय से स्नातक एवं परास्नातक की पढ़ाई की, जहां उनके चाचा विंसेंट सिंको अध्यक्ष थे। सिंको ने अपने भतीजे के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग संगठन (आईसीए), यूएसएआईडी (यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी ऑफ इंटरनेशनल डेवलपमेंट) की पूर्ववर्ती संस्था, के जरिए वित्तीय सहायता भी जुटाई।

अपनी पढ़ाई के दौरान सीसों  ने जिस राजनीतिक दृष्टिकोण को विकसित किया, वो काफी हद तक क्लारो एम रेक्टो के विचारों से प्रभावित था।

रेक्टो ने 1950 के अंत  एवं 1960 के शुरुआती दशक में  "राष्ट्रवादी पूंजीवाद" पर आधारित अपने वक्तृतों से एक पूरी सामाजिक संरचना को वैचारिक तौर पर प्रभावित किया। वे फिलीपींस की अर्थव्यवस्था की उन मूलभूत समस्याओं को उजागर कर रहे थे, जो कि विश्व में कई देशों की अर्थव्यवस्थाओं से जुड़ी थीं, खासकर जिन देशों में देर से पूंजीवादी विकास ने जन्म लिया था। फिलीपींस की अर्थव्यवस्था न सिर्फ अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक गतिविधियों, खासकर अमरीकी  व्यापारिक हितों से प्रभावित थी, बल्कि उसकी आधारशिला ही अमरीकी हितों के इर्द गिर्द रखी गई थी। रेक्टो ने फिलीपींस के पूंजीपतियों के हितों को बेहद अर्थपूर्ण ढंग से सामने रखा।

24 फरवरी 1957 को रेक्टो द्वारा कविते जैसिस में दिया  भाषण प्रतिनिधिमूलक माना जा सकता है। उन्होंने कहा, "देश के उद्योगों को न सिर्फ विदेशी पूंजीपतियों से बचाना है बल्कि देश का औद्योगिकीकरण फिलीपींस के पूंजीपतियों द्वारा होना चाहिए, देश की प्राकृतिक संपदा का दोहन विदेशी पूंजीवाद के लिए न होकर,देशी पूंजीवाद को विकसित एवं मजबूत करने के लिए होना चाहिए, इसके जरिए घरेलू आय को बढ़ाना है मगर इसे गैर फिलीपीनी जनता के मुनाफे के लिए इस्तेमाल नहीं होना चाहिए।"

फिलीपींस में "स्वदेशी पूंजीवाद" की स्थापना रेक्टो की विचारधारा का मूलभूत तत्व था। इसी विचारधारा के प्रभाव में गार्सिया प्रशासन के दौरान "फिलीपींस प्रथम" की नीति लागू की गई। अमरीकी उपनिवेश के रूप में फिलीपींस में अमेरिकी पूंजी के विशेषाधिकार को कानूनी आधार प्राप्त था, जो वॉशिंगटन प्रशासन द्वारा लागू की गईं थीं। इसका परिणाम ये हुआ कि फिलीपींस प्रथम के सबसे बड़ा शिकार थे  चीनी व्यापारिक समुदाय के सदस्य। उन्हें निशाना बनाते हुए उनकी संपत्तियां जब्त कर ली गईं।

अंत में, रेक्टो ने फिलीपीनी पूंजीवाद के विकास के लिए जिन मुद्दों को रेखांकित किया, उनमें से कोई भी मुद्दा हल नहीं हुआ। जो युवा रेक्टो की विचारधारा से प्रभावित थे, वे एक जन आंदोलन की आवश्यक्ता समझने लगे। अब ये केवल पूंजीवादी कार्यक्रम तक सीमित नहीं रह सकता था, इसका जनसंख्या द्वारा स्वीकार्य होना जरूरी हो गया था।

1965 में, (कबतांग मकबायन (केएम) की स्थापना के बाद मगर  सीसों  के निर्देश पर फर्दिनांद मार्कोस का समर्थन करने के पहले ), मनीला बुलेटिन के अनुसार, सीसों  ने अमरीकी दूतावास के बाहर एक भाषण दिया, जहां उसने दर्शकों से कहा: "हम फिलीपींस के पूंजीपतियों के साथ हैं।" ये उनका आधारभूत दृष्टिकोण था।

उन्होंने अपने दृष्टिकोण को 1966 में दिए गए अपने एक वक्तव्य " राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में राष्ट्रवादिता" के जरिए स्पष्ट किया। इस भाषण में   उन्होंने कहा कि फिलीपींस का समाज तीन धड़ों में बंटा हुआ था।

"अगर वर्ग संरचना, भौतिक हितों और विचारधारा के आधार पर देखें तो वामपंथ में श्रमिक एवं कृषक वर्ग शामिल होंगे। मध्यम वर्ग कथित रूप से तीन स्तरों पर आधारित है , जिन्हें मध्य वर्ग का लेफ्ट, मध्य और राइट कहा जा सकता है, लेफ्ट-मध्य स्तर पर बुद्धिजीवी एवं आत्मनिर्भर छोटे भूपति आएंगे, जिन्हें हम निम्न बुर्जुआ भी कह सकते हैं; मध्यम-मध्य स्तर पर राष्ट्रवादी उद्यमी शामिल होंगे, जिन्हें हम राष्ट्रीय या मध्यम बुर्जुआ कह सकते हैं; और राइट-मध्य स्तर पर उन व्यापारियों को रखेंगे, जो स्थानीय उद्योगों में आंशिक निवेशक होने के साथ साथ बाहरी निवेश के लिए मध्यस्थता भी करते हों। दक्षिणपंथ के भीतर राष्ट्र-विरोधी वर्ग, विदेशी पूंजी के दलाल, भूस्वामी एवं उनके मूर्ख बुद्धिजीवियों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को रख सकते हैं।"

एक जन आंदोलन का राजनीतिक कर्तव्य क्या है? सीसों  ने कहा:

"दक्षिणपंथ को अलग थलग करने के लिए, ये बहुत जरूरी है कि अधिक्तर श्रमिक और कृषक बुद्धिजीवियों, छोटे भूस्वामियों एवं स्वतंत्र कारीगरों के साथ मिलकर राष्ट्रवादी उद्यमी पर जीत दर्ज करे और कम से कम राइट-मध्य वर्ग (मध्य वर्ग का दक्षिणपंथी स्तर) को निष्प्रभावी करे। इस प्रकार जो एकता स्थापित होगी उसे राष्ट्रवादी या साम्राज्यवाद विरोधी और सामंतवाद विरोधी एकता कह सकते हैं  ।

श्रमिक एवं कृषकों का मौलिक कर्त्तव्य ये नहीं था कि वे केवल अपने स्वतंत्र हितों के लिए लड़ें बल्कि उन्हें मध्यम मध्य वर्ग, राष्ट्रवादी पूंजीपति वर्ग, पर जीत दर्ज करना था।

इसका प्रचार बेहद कठिन था। मूलतः सीसों  अर्थव्यवस्था के ट्रिकल डाउन स्वरूप का प्रचार कर रहे थे। रेक्टो के दावे और सीसों  के शुरुआती वक्तव्यों के आधार पर देखें तो उनका कहना था कि अगर फिलीपींस के भीतर स्वदेशी पूंजीवाद मजबूत हो जाएँ तो ये सभी के लिए बेहतर सिद्ध होगा, खासकर श्रमिक वर्ग के लिए। ईमानदारी से कहें, तो एक श्रमिक से ये कहना, "तुम अपने मालिक का सहयोग करो, ये तुम्हारे हित में बेहतर होगा", एक जन आंदोलन के लिए प्रभावशाली नारा नहीं था ।

सीसों  अपनी पढ़ाई पूरी होने पर इंडोनेशिया की यात्रा पर गए। उन्हें इंडोनेशियाई कम्युनिस्ट पार्टी के एक सदस्य बकरी इलियास ने वहां आमंत्रित किया था। इंडोनेशिया में, सीसों  ने परताई कोमुनिस इंडोनेशिया (पीकेआई: इंडोनेशियाई कम्युनिस्ट पार्टी) के साथ मिलकर काम किया और अपने छह महीने के प्रवास के दौरान उन्होंने जो सीखा उसे मैं स्टालिनवादी कार्यक्रम नाम दे रहा हूं। मुझे इसका अर्थ स्पष्ट करने का मौका दीजिए।

स्टालिनवाद अपने आप में केवल एक तंत्र नहीं है जो कि एक "महान नेता"  के राजनीतिक विचारों, कार्यक्रम और संप्रदाय से जुड़ा है । ये सभी स्टालिनवाद का एक हिस्सा हैं, लेकिन न उसकी आवश्यक अभिव्यक्ति हैं और न ही मूलभूत सिद्धांत हैं। स्टालिनवाद सबसे पहले और सबसे बढ़कर एक राजनीतिक कार्यक्रम है। ऐतिहासिक दस्तावेज इसकी पुष्टि करते हैं।

स्टालिनवाद एक राजनीतिक कार्यक्रम था जिसका लक्ष्य सत्तासीन नौकरशाही के हितों का प्रतिनिधित्व करना था, जिसकी स्थापना पहले मास्को, फिर बीजिंग में हुई। इन सामाजिक ढांचों, (जिसका सबसे बड़ा प्रतिनिधि था, स्टालिन), को यह  स्पष्ट हुआ कि उनका हित एक विश्वव्यापी समाजवादी क्रांति को बढ़ावा देकर नहीं बल्कि USSR के रूप में एक राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के विकास से जुड़ा है

। इसी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से उनके विशेषाधिकार जुड़े हुए थे। उन्होंने अपने विशेषाधिकारों को बनाए रखने के लिए एक ऐसी राजनीतिक परिपाटी को जन्म दिया जो सभी पूर्ववर्ती मार्क्सवादी विचारों के विपरीत थी, जिसके बारे में लेनिन ने भी नहीं सोचा था कि केवल एक देश तक समाजवाद सीमित रह जाए। उन्होंने एक देश की सीमाओं के भीतर रहकर समाजवाद की स्थापना के लिए तर्क प्रस्तुत किया।

मार्क्सवादी विचार ये था कि समाजवाद को पूंजीवाद से एक कदम आगे बढ़ना होगा और इसलिए उसकी नींव होगी पूंजीवाद की सबसे बड़ी उपलब्धि - विश्व बाज़ार का निर्माण। इसलिए समाजवाद की स्थापना केवल विश्व स्तर पर की जा सकती है। स्टालिन के शासन के दौरान सोवियत यूनियन का नेतृत्व इस दृष्टिकोण को प्रसारित नहीं कर रहा था। स्टालिनवादी कार्यक्रम का मूल यही था: एक देश के भीतर समाजवाद।

ये दृष्टिकोण सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के सभी सदस्यों ने नहीं अपनाया। लियॉन ट्रॉटस्की के नेतृत्व में पार्टी के भीतर एक वामपंथी विपक्षी दल ने स्टालिन का जमकर विरोध किया। स्टालिन के विरोध में, ट्रॉटस्की ने ने ज़ोर दिया कि कि केवल दुनिया भर के मज़दूरों की  क्रान्ति के जरिए पूरे विश्व में समाजवाद की स्थापना हो पाएगी; उनका कार्यक्रम था - स्थायी क्रान्ति  - इसे केवल एक देश में स्थापित नहीं किया जा सकता है।

स्टालिनवाद के लिए अपने व्यापार समझौतों को सुरक्षित रखना एवं पूंजीवादी ताकतों के साथ कूटनीतिक संबंध रखना सर्वोपरि था।  इसे अपने उत्पाद के लिए बाज़ार, भारी उद्योगों के लिए कच्चे मालों का एक स्रोत एवं अपनी सीमा पर शांति बनाए रखने की जरूरत थी। वे इसे कैसे सुनिश्चित कर सकते थे, समझौते के लिए क्या शर्तें रख सकते थे?

रूसी क्रांति की सफलता और मार्क्सवादी परम्परा, जिस पर पार्टी अपना दावा पेश करती थी, ने स्टालिन और उसकी नौकरशाही को पूरे विश्व में मौजूद कम्युनिस्ट पार्टियों के कॉडर के रूप में एक मजबूत राजनीतिक पूंजी प्रदान की थी। उन्होंने इस कॉडर को पूंजीपति वर्ग के कुछ लोगों से संबंध रखने का निर्देश दिया। इस तरह से वे पूरी दुनिया के शासक वर्ग के साथ एक जन आंदोलन की शर्त पर समझौता कर सकते थे। स्टालिनवादियों ने शासक वर्ग के एक हिस्से के साथ अपनी करीबी के पक्ष में एक सैद्धांतिकी भी तैयार कर रखी थी, जो एक पुराने सिद्धांत पर आधारित थी, जिसे सबसे पहले बोल्शेविक पार्टी के विपक्षी मेंशेविक पार्टी ने सामने रखा था: द्विचरणीय क्रांति का विचार।

इस सिद्धांत के अनुसार, जिन देशों में पूंजीवादी विकास ने देर से जन्म लिया, जैसे कि फिलीपींस, वहां अभी क्रांति का लक्ष्य समाजवाद नहीं हो सकता। वहां सबसे पहले ये आवश्यक है कि राष्ट्रीय और लोकतांत्रिक व्यवस्था का निर्माण किया जाए, और उनमें से एक महत्त्वपूर्ण व्यवस्था है: भूमि सुधार। क्रांति के द्विचरणीय सिद्धांत के अनुसार, बिना राष्ट्रीय लोकतांत्रिक कार्यक्रमों को पूरी तरह से लागू किए समाजवादी लक्ष्यों पर काम करना असंभव है।

चरित्र में ये कार्यक्रम समाजवादी नहीं बल्कि पूंजीवादी थेI इसकी वजह से स्टालिनवादियों का तर्क था कि पूंजीपतियों का एक वर्ग निश्चित रूप एक प्रगतिशील भूमिका निभाएगा-इस वर्ग को उन्होंने "राष्ट्रीय पूंजीपतियों के प्रगतिशील धड़े" के नाम से संबोधित किया।

यह स्टालिनवादियों का मूल कार्यक्रम था: एक देश में समाजवाद, एक द्विचरणीय क्रांति और चार वर्गों का संगठन, जिसे पूंजीपति वर्ग के साथ गुटबंदी की जरूरत थी।

ट्रॉटस्की और वामपंथी विरोधियों ने खुद को फोर्थ इंटरनेशनल के रूप में संगठित करने के बाद इस कार्यक्रम का विरोध करते हुए तर्क दिया कि जिन देशों में पूंजीवाद का आगमन देर से हुआ है, उन देशों के पूंजीपति वर्ग राष्ट्रीय और लोकतांत्रिक ढांचे के निर्माण में असमर्थ हैं।

उदाहरण के लिए, फिलीपींस के पूंजीपति भूमि सुधार कार्यक्रम लागू नहीं करेंगे क्योंकि वे जमींदारों या भूपतियों से अलग कोई वर्ग नहीं हैं। तथ्यात्मक रूप से देखा जाए सभी बड़े पूंजीपति बड़े जमींदार हैं। अगर सीपीपी के पिछले 50 सालों में किए गए गठबंधन का इतिहास देखा जाए तो उनके सहयोगी बहुत बड़े चीनी उद्योगों के दलाल रहे हैं। ये वो ताकतें नहीं हैं जिनका अपना हित भूमि सुधार के साथ जुड़ा हुआ है। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक क्रांति, जैसा कि ट्रॉटस्की ने कहा, केवल मजदूरों के द्वारा, किसानों को नेतृत्व प्रदान करते हुए अपने स्वतंत्र हितों के लिए ही की जा सकती है, और जिसके लिए एक समाजवादी कार्यक्रम की जरूरत है।

स्टालिनवाद के कार्यक्रम को स्पष्ट करने के लिए मैं 1960 के दशक से लेकर 1970 के दशक के बीच उसकी राजनीतिक अभिव्यक्ति के बारे में कुछ कहना चाहूंगा।

सीसों  ने 1967 के शुरुआती दिनों में युवाओं की एक सभा को संबोधित करते हुए माओ के कथनों को बार बार इस्तेमाल किया था। माओ ने कहा था:

"कुछ लोग ये समझ नहीं पाते, पूंजीवाद से डरना तो दूर, कम्युनिस्ट को कुछ निश्चित शर्तों के साथ इसके विकास का समर्थन करना चाहिए। हमारा जवाब आसान है। विदेशी साम्राज्यवाद और घरेलू सामंतवाद को हटाने के लिए एक निश्चित सीमा तक पूंजीवादी विकास न सिर्फ ज़रूरी है बल्कि आवश्यक है। ये पूंजीपति वर्ग के साथ साथ मजदूर वर्ग को भी लाभ पहुंचाता है, और यह कहा जा सकता है कि मज़दूरों को इससे अधिक लाभ होगा  ।"

यहां नोट करना जरूरी है कि माओ कह रहे हैं कि पूंजीवाद पूंजीपति वर्ग से कहीं ज्यादा मजदूर वर्ग के लिए बेहतर है। स्टालिनवाद ने मार्क्सवाद की आड़ में रेक्टो की ट्रिकल डाउन अवधारणा का ही प्रचार किया। माओ के कथन को उल्लेखित करते हुए सीसों  कहते हैं:

"वर्तमान में चीनी समाज में घरेलू पूंजीवाद की नहीं बल्कि विदेशी साम्राज्यवाद और घरेलू सामंतवाद की उपस्थिति कहीं ज्यादा है, और वास्तव में हमारे यहां बहुत कम पूंजीवाद है।"

सीसों  ने माओ के इस दृष्टिकोण की व्याख्या करते हुए कहा: "मार्क्सवाद का एक आधारभूत सिद्धांत ये है कि एक साम्यवादी समाज की स्थापना से पहले एक बुर्जुआ लोकतंत्र का अस्तित्व होना चाहिए। आज फिलीपींस में एक सचेतन राष्ट्रीय एकता की जरूरत सबसे ज्यादा है, जो इतनी ताकतवर हो कि समाजवाद के सवाल पर भटकने से पहले हम अपनी संप्रभुता की अभिव्यक्ति करते हुए फिलीपींस के भीतर लोकतंत्र का निर्माण करें।"

यही मामले का सार था। सीसों  के अनुसार, फिलीपींस में समाजवाद का दृष्टिकोण यह था कि यहां समाजवाद का समय अभी नहीं हैI ये जरूरी था कि प्रगतिशील पूंजीपतियों को ढूंढ़ा जाए और उनके साथ गठबंधन किया जाए।

सीसों  के नेतृत्व में पीकेपी ने राष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग के पहले प्रगतिशील प्रतिनिधि के रूप में जिसका समर्थन किया, वे थे राष्ट्रपति दियोसादो मैकपगल ।

इंडोनेशिया से लौटने  के बाद 1962 में, सीसों  को पीकेपी की पांच सदस्यों वाली एक नई कार्यकारी समिति में शामिल किया गया। समिति के अन्य सदस्यों में एक ट्रेड यूनियन के नेता इग्नासियो लैक्सिना थे। अमरीकी दूतावास के खुफिया दस्तावेजों को पढ़ते हुए, मैंने पाया कि लैक्सिना न सिर्फ पार्टी की कार्यकारी समिति के सदस्य थे बल्कि अमरीकी दूतावास में रहने वाले सीआईए के एक अफसर के नियमित जासूस भी थे। लैक्सिना दूतावास में अपने संचालक से लगातार मिलते थे ताकि पार्टी की गतिविधियों की जानकारी दे सकें।

1960 के दशक की सबसे उल्लेखनीय घटनाओं में से थी एक वर्कर्स पार्टी -  लापियांग मंगगावा - की स्थापना । यह सभी प्रमुख ट्रेड यूनियनों के विलय से बने मज़दूरों का एक स्वतंत्र संगठन था जिसे जनवरी 1963 में स्थापित किया गया। लैक्सिना को एलएम के भीतर महासचिव के रूप में सबसे शक्तिशाली पद दिया था और सीसों  को उपाध्यक्ष के रूप में प्रचार का काम दिया गया, जो पार्टी के सभी सार्वजनिक बयानों के लिए उत्तरदाई था।

सात महीनों के भीतर सीसों  और लैक्सिना ने इंडिपेंडेंट वर्कर्स पार्टी को  राष्ट्रपति मैकपगल की सत्तासीन पार्टी (लिबरल पार्टी) के साथ मिला दिया। मैकपगल इंडोनेशियाई राष्ट्रपति सुकर्णो के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बना रहे थे और पीकेआई और पीकेपी दोनों पार्टियों ने इसे भौगोलिक-गुटनिरपेक्षता की ओर बढ़ाए गए एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में देखा। ये उनकी पहचान राष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग के प्रगतिशील धड़े के रूप में सुनिश्चित करने का तरीका था।

सीसों  और लैक्सिना ने एलपी और एलएम का विलय तब किया जब सरकार देश के इतिहास के सबसे गंभीर श्रमिक आंदोलनों का क्रूर दमन कर रही थी। 1963 में, बंदरगाहों पर माल ढुलाई का काम करने वाले 3000 मजदूर हड़ताल पर गए। ये हड़ताल 169 दिन तक चली, जिसमें देश के सभी महत्त्वपूर्ण बंदरगाहों को बंद कर दिया गया। व्यापार ठप पड़ गया। सरकार की सेना और भेदियों द्वारा हड़ताल कर रहे मजदूरों की हत्या की जाने लगी। कुछ मजदूर कुपोषण से मर गए क्योंकि उन्हें हड़ताल के कारण वेतन नहीं दिया गया। अगस्त के मध्य तक व्यापार घाटे को आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार एक महीने से ज्यादा वक़्त तक दस करोड़ पेसो दर्शाया गया था।

ये बंदरगाह सरकार द्वारा संचालित था। मजदूर किसी निजी कंपनी के खिलाफ नहीं बल्कि मैकपगल सरकार के विरूद्ध लामबंद होकर हड़ताल कर रहे थे। 6 अगस्त 1963 को जैसे ही मैकपगल ने सुकर्णों के साथ मनीला सम्मेलन का समापन किया, होमा सीसों  और इग्नासियो लैक्सिना ने लापियांग मंगगावा का विलय लिबरल पार्टी के साथ कर दिया।

एलएम और एलपी द्वारा हस्ताक्षरित एक दस्तावेज के अनुसार,

"राष्ट्रपति दियोसदादो  मैकपगल के नेतृत्व में उत्साहपूर्वक किए जा रहे महत्त्वपूर्ण सामाजिक एवं राष्ट्रीय सुधारों से जागरूक;"

"इस विश्वास के साथ कि लोकतांत्रिक बदलाव के लिए बिना सभी ताकतों के एकजुट हुए इन सुधारों की सफलता सुनिश्चित नहीं की जा सकती...

"इस समझ के साथ जो ताकतें इन सुधार कार्यक्रमों के विरूद्ध हैं, वे राष्ट्रवादी पार्टी (नेशनलिस्ता पार्टी) के बैनर तले एकत्रित हो गई हैं;... "तत्काल पार्टियों के सम्मिलन के लिए सहमत हैं.."

उन्होंने श्रमिक वर्ग के सामने ये तर्क प्रस्तुत किया: मैकपगल सुधार लागू कर रहे थे और उसका विरोध करने वाली ताकतें एलपी की विपक्षी नेशनलिस्ता पार्टी के साथ खड़ी हो गई थीं। और इस कारण सीसों  और लैक्सिना ने इंडिपेंडेंट वर्कर्स पार्टी का विलय मैकपगल की लिबरल पार्टी के साथ कर दिया।

मजदूर पहले से ही हड़ताल पर थे और विलय पत्र पर हस्ताक्षर होने तक हड़ताल शुरू हुए दो महीने बीत चुके थे। लैक्सिना ने सार्वजनिक बयान जारी करके कहा कि वो बंदरगाहों पर काम करने वाले मजदूरों के पक्ष में एलएम की ओर से हड़ताल करेंगे। उन्होंने इस ख़तरे का डर दिखाकर मैकपगल को समझौता करने पर मजबूर किया और फिर हड़ताल शुरू होने से पहले ही उसका फैसला वापिस लेकर मजदूरों का साथ छोड़ दिया।

सितम्बर के पूर्वार्द्ध में, जब मजदूरों की हड़ताल चल रही थी, फिलीपींस के विमान कर्मचारी हड़ताल पर गए और देश की लगभग सभी घरेलू हवाई सेवाएं ठप पड़ गईं। 8 सितंबर को मैकपगल के इन कर्मचारियों के खिलाफ पुलिस द्वारा हमला करवाया। मुझे शक है कि इस बैठक में मौजूद किसी व्यक्ति को इस घटना के बारे में कोई जानकारी है। उन्होंने इस घटना को इतिहास से मिटा दिया क्योंकि जो लोग मजदूर संगठनों के नेतृत्व के लिए जिम्मेदार थे उन्होंने मजदूरों के साथ धोखा किया था।

उस समय सीसों  क्या कर रहे थे? वे उस वक़्त मैकपगल के भूमि सुधार कार्यक्रम पर मैनुअल लिख रहे थे। मैकपगल प्रशासन के भूमि सुधार की रूपरेखा फोर्ड फाउंडेशन से जुड़े व्यक्ति वुल्फ लैडेजिंस्की ने लिखी थी। इस कार्यक्रम का लक्ष्य था लगान देने वाले किसानों को नकद किराया देने वाले किरायेदारों में बदलना। 1960 के दशक के आखिर में जिन किसानों का साक्षात्कार लिया गया, उनका दावा येह था कि इस कार्यक्रम की वजह से उनकी ज़िन्दगी बदतर बन गयी ।

हम जानते हैं कि एलएम के लिए इस मैनुअल सीसों  ने लिखा था, क्योंकि उन्होंने अपनी वेबसाइट पर इसे उल्लेखित किया है। सीसों  की किताब का मुखपृष्ठ मैकपगल के मुस्कुराता चेहरा है, जिसके नीचे निम्न पंक्तियां लिखी हैं: "फिलीपींस के किसानों के मुक्ति संघर्ष में योगदान देने के लिए राष्ट्रपति मैकपगल को समर्पित।" सीसों  ने अपने पाठकों से कहा,

"राष्ट्रपति दियोसदादो  मैकपगल का मानना है कि भूमि की समस्या को केवल साझा किरायेदारी की व्यवस्था को विनियमित करने या पुलिस और सेना के दबाव से असंतुष्ट किसानों को इसके लिए एकजुट करके हल नहीं किया जा सकता है।

"कृषि भूमि सुधार संहिता में, समस्या का मूल समाधान ये है: भूमि की पट्टेदारी की व्यवस्था को पूरी तरह समाप्त करना और उसकी जगह भूस्वामी-काश्तकार संबंध स्थापित करना। इस मूलभूत उद्देश्य की प्राप्ति के लिए संहिता भूमि सुधार को पूरी तरह से लागू करने की जिम्मेदार संस्थाओं के कार्यों एवं अधिकारों को रेखांकित करती है।"

ये होमा सीसों  ने 1963 में लिखा था। सात साल बाद, उन्होंने फिलीपीन सोसाइटी एंड रेवोल्यूशन लिखा, जो फिलीपींस की कम्युनिस्ट पार्टी का सबसे महत्वपूर्ण सैद्धांतिक लेखन बन गया। भूमि सुधार संहिता - जिसमे उन्होंने 1963 में मुख्य प्रवर्तक के रूप में कार्य किया था - के बारे में उनका यही कहना था कि:

"खुद को प्रगतिशील दिखाने और किसानों को लुभाने के लिए, मैकापगल की कठपुतली सरकार ने कृषि भूमि सुधार संहिता लागू की। पुराने सभी भूमि सुधार कानूनों की तरह जब भूस्वामियों से संबंधित नियमों की बात आती है तो उनमें जमींदारों के हितों को रेखांकित करती हुई कुछ समानताओं के अतिरिक्त कुछ नया दिखाई नहीं पड़ता। कुछ प्रतीकात्मक भूमि सुधार कार्यक्रमों के बाद इस भूमि सुधार संहिता की निर्थकता काफी हद तक स्पष्ट है...."

मैकपगल का भूमि सुधार  "एक ऐसा भारीभरकम शाब्दिक जंजाल था जिसे भूपति वर्ग द्वारा बार बार बोले जा रहे झूठ पर लीपापोती करने के लिए बुना गया था।"

ये 1970 की बात थी। इस पैटर्न को फिर से याद करिए: पार्टी ड्यूटर्टे का समर्थन करती है; और दावा करती है कि ड्यूटर्टे का समर्थन करने वाली बात "झूठी" है। सीसों  ने मैकपगल के भूमि सुधार का मैनुअल लिखा; सीसों  ने कहा कि मैकपगल का भूमि सुधार कार्यक्रम भूपतियों के हितों पर आधारित  किसानों जो दिया गया एक धोखा था। झूठ पर झूठ।

मैकपगल की सीमित उपयोगिता जल्दी ही सामने आई और 1964 में वे सुकर्णो के खिलाफ हो गए। हाेमा सीसों  की निगरानी में पार्टी का बड़ा हिस्सा मैकपगल का समर्थन छोड़ कर मार्कोस का समर्थन करने लगा। पार्टी ने श्रमिकों, किसानों और युवाओं को निर्देश दिया कि वे मार्कोस का समर्थन इस आधार पर करें क्योंकि वे वियतनाम में चल रहे अमरीकी युद्ध से फिलीपींस को बाहर रखेंगे।

लिंडन जॉनसन 1964 में मैकपगल से मिले और वियतनाम में अमेरिकी सैन्य टुकड़ियों की बढ़ती तादाद को देखते हुए फिलीपींस से अपने सैनिकों की तैनाती करने की मांग की। ये ऐतिहासिक रूप से उल्लेखनीय है कि ये मांग टोंकिन खाड़ी से जुड़ी घटना से कुछ समय पहले रखी गई थी। मैकपगल ने अपनी सेनाओं को भेजने का वादा किया और विधायिका में एक विधेयक पेश किया। तब सीनेट के अध्यक्ष फर्दिनांद मार्कोस ने मैकपगल पर हमलावर होते हुए आरोप लगाया कि राष्ट्रपति अपनी तानाशाही स्थापित करने की कोशिश कर रहे थे।

इस दावे के आधार पर कि मार्कोस वियतनाम से सेना को बाहर रखेंगे, सीसों  ने नेशनलिस्ता पार्टी के समर्थन में कई भाषण दिए और नवम्बर 1965 में MASAKA, किसान संगठन लापियांग मंगगावा, श्रमिक संगठनों, कबातांग मकबायन एवं नव स्थापित युवा संगठन को फर्दिनांद मार्कोस का समर्थन करने का निर्देश दिया।

मार्कोस के चुने जाने के एक हफ़्ते बाद, वॉशिंगटन पोस्ट के स्टैनली कार्नव को दिए गए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि वे वियतनाम में फिलीपींस की सेना को तैनात करेंगे।

मार्कोस का समर्थन करने का निर्देश दिए जाने से एक साल पहले कबातांग मकाबायन की स्थापना की गई थी। उसकी संस्थापक सभा में होमा सीसों  ने अपने चिर परिचित अंदाज में भाषण देते हुए कहा:

"साम्राज्यवाद के पक्ष में पूंजीपति दलाल और बड़े भूमाफिया खड़े हैं। राष्ट्रीय लोकतंत्र के पक्ष में राष्ट्रवादी पूंजीपति, फिलीपींस के स्वतंत्र उद्यमी एवं व्यापारी हैं; छोटे पूंजीपति, छात्र, बुद्धिजीवी एवं पेशेवर हैं; मजदूरों एवं किसानों से भरी बहुसंख्यक जनता है, जिनसे आज का फिलीपीनी युवा जुड़ाव महसूस करता है।"

पीकेपी की उग्रवादी युवा शाखा की स्थापना चार वर्गों और पूंजीवादी वर्ग के साथ गठजोड़ के परिप्रेक्ष्य में की गई थी।

जैसे ही 1965 की शुरुआत में फर्दिनांद मार्कोस ने पदभार संभाला, राष्ट्रीय घटनाओं की बजाय वैश्विक परिस्थितियों के कारण गंभीर सामाजिक संकट मंडराने लगा। अमरीकी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के मार्शल राइट ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार वाल्टर रोस्टो को एक गोपनीय पत्र भेजा, जिसमें उन्होंने कहा:

"उन समस्याओं की गंभीरता का अनुमान लगाना लगभग असम्भव है, जिससे मनीला के हमारे अगले राजदूत को निपटन होगा। यह बहुत सामान्य बन गया है कि फिलीपींस के बुद्धिजीवी भविष्य में आने वाले संकट के बारे में चेता रहे हैं। इस बात की व्यापक चर्चा है कि वर्तमान राष्ट्रपति फिलीपींस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में चुने गए अंतिम  व्यक्ति होंगे। कई उच्च-स्तरीय अमरीकी अधिकारी फिलीपींस को एशिया में मौजूद सबसे गंभीर खतरा मानते हैं जिसका सामना हमें करना है।"

एक सामाजिक ख़तरा पैदा होने वाला था। दुनिया भर के शासक वर्ग की प्रतिक्रिया शासन के तानाशाही रूपों की ओर बढ़ने की थी। वर्तमान स्पष्ट रूप से उसी से प्रभावित है। हम सामाजिक संकटों एवं वैश्विक अधिनायकवाद के बढ़ते खतरों का सामना कर रहे हैं: सुहार्तो, मार्कोस, पिनोशे। दुनिया भर के पूंजीवादी वर्ग की तरह, फिलीपींस में सत्तारूढ़ अभिजात्य वर्ग को अपने विरूद्ध ख़तरे का आभास हुआ। मार्कोस ही नहीं बल्कि सत्तासीन पूंजीपति वर्ग भी इस ख़तरे का समाधान तानाशाही शासन के रूप देख रहा था। उनमें से कोई नहीं  था जो लोकतंत्र की रक्षा के लिए युद्ध करने को तैयार था।

फिलीपींस में प्रहरी राज्य के शासन की आधारशिला अमरीकी साम्राज्यवाद ने मार्शल कानून के रूप में औपनिवेशिक शासनकाल में तैयार की थी, जहां उसे संवैधानिक स्वरूप दिया गया था। पूर्ववर्ती कई राष्ट्रपतियों, मैकपगल, गार्सिया एवं क़िरिनो, ने ये संकेत दिया था कि वे इन धाराओं का प्रयोग करते हुए मार्शल कानून लागू करेंगे।

मार्कोस क्यों सफल हुए जहां वे असफल रहे थे? उनकी सफलता उस सामाजिक संकट पर आधारित थी, जिसने वैश्विक अधिनायकवाद को जन्म दिया और पूंजीपति वर्ग के भीतर इस भावना को भड़काया कि वे लोकतंत्र के जाल अधिक बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे । अगर मैं एक उदाहरण का इस्तेमाल करूं: फर्दिनांद मार्कोस द्वारा तानाशाही को लागू करना म्यूजिकल चेयर के खेल जैसा था या, जैसा कि हम इसे फिलीपींस में कहते हैं, 'जेरुसलम की यात्रा'  । पूंजीपति मालकानांग के चारों तरफ घेरा बना कर खड़े थे, ये जानते हुए कि जब संगीत बंद होगा, यानी जब मार्शल कानून लागू होगा तब राष्ट्रपति की कुर्सी पर जो व्यक्ति बैठा होगा वही तानाशाह होगा।

इस संदर्भ में चीन-सोवियत विभाजन का प्रभाव पूरे फिलीपींस पर पड़ा। स्टालिनवाद पर लगने वाले आरोपों में से एक तथ्य ये था कि चीन और USSR (यूएसएसआर) की अर्थव्यवस्थाओं का विलय नहीं किया गया था। "एक देश में समाजवाद" का कार्यक्रम मेरी समझ में मार्क्सवाद से किया गया एक धोखा था, लेकिन आप तर्क दे सकते हैं कि इसके पीछे कुछ कारण थे: (यूएसएसआर की स्थापना के समय) केवल एक देश था जहां समाजवाद की स्थापना हो सकती थी। लेकिन 1949 के बाद ऐसे कई देश अस्तित्व में आए जिन्होंने "एक देश में समाजवाद" के सिद्धांत को अपने राष्ट्रीय हितों के मद्देनजर आगे बढ़ाया। वे राष्ट्रीय हित अंततः अपने स्वरूप में विकृत हो गए, और उस विकृति ने आपसी संघर्ष का रूप लिया, और ये संघर्ष एक सशस्त्र विद्रोह में बदल गए, आखिरकार पूरे विश्व में साम्यवाद के कई टुकड़े हो गए।

सोवियत संघ, जो औद्योगिक अर्थव्यवस्था होने के साथ साथ पूर्वी यूरोप जैसे बफर राज्यों के पीछे सुरक्षित था, वॉशिंगटन के साथ शांतिपूर्ण  सह-अस्तित्व का कार्यक्रम बनाए रखने में सक्षम था और उसने दुनिया भर के तानाशाहों के साथ अपने राजनयिक और व्यापार संबंधों को आगे बढ़ाया। जब सुहार्तो के नेतृत्व में पीकेआई का दमन किया गया, दस लाख से ज्यादा इंडोनेशियाई कम्युनिस्ट, श्रमिक और किसानों को मरवाकर सत्ता पर कब्ज़ा जमाया गया तब एक निश्चित सीमा तक इंडोनेशिया की सेना सोवियत संघ द्वारा दिए गए हथियारों का ही इस्तेमाल कर रही थी।

इस बीच, बीजिंग ताइवान, जापान, वियतनाम में अमरीकी युद्ध और एक अल्पविकसित अर्थव्यवस्था का सामना कर रहा था। 1965 में अपनी सीमाओं से अमरीकी साम्राज्यवाद के खतरे को रोकने के प्रयास में, लिन बियाओ ने सशस्त्र गुरिल्लाओं के जरिए दुनिया भर के ग्रामीण इलाकों में "जनता की दीर्घकालिक लड़ाई" की रणनीति का अनुसरण किया। यह अभी भी राष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग के प्रगतिशील वर्ग के समर्थन में था, मगर  तानाशाहों के लिए नहीं। ये दरअसल, जिसे मैं षड्यंत्रकारी तानाशाही का अध्ययन कहता हूं, एक ऐसा नाटकीय षड्यंत्र था: फिलीपींस में जो ताकतें निनोय अकिनो की तरह मार्कोस शासन को उखाड़ फेंकने की कोशिशें कर रही थीं, वे भी लोकतंत्र के बचाव के लिए प्रयास नहीं कर रही थीं। उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए ऐसा किया कि वे स्वयं सत्ता की स्थिति में होंगे।

सीपीपी के सशस्त्र आंदोलन के साथ साथ वे प्रभावी ताकतें, जिनकी उग्रवादी बयानबाजियां सामाजिक संकट पैदा करने में उत्तरदाई थीं, देशी पूंजीपतियों के हितों को पूरा करने के लिए अस्तित्व में आई थीं।

मेरे पास इन घटनाओं का विस्तृत वर्णन करने का समय नहीं है लेकिन मैं कुछ मुद्दों की बात करना चाहता हूं।

पीकेपी( जो मॉस्को द्वारा निर्देशित थी)  ने 1966 में मार्कोस प्रशासन में वैतनिक पदों पर नियुक्तियां स्वीकार की। उन्होंने मार्कोस प्रशासन को मॉस्को के साथ गोपनीय वार्ता जारी रखने की सुविधा दी, जिसे वे लोकतांत्रिक तरीके से नहीं स्थापित कर सकते थे क्योंकि फिलीपींस कानून की कुछ प्रतिक्रियावादी धाराएं उन्हें कम्युनिस्ट देशों के साथ वार्ता संबंध रखने से बाधित करती थीं।

पीकेपी में कुछ ऐसे सदस्य भी थे जिन्होंने फर्दिनांद मार्कोस के नाम से मार्शल कानूनों का न्यायिक औचित्य सिद्ध करने के लिए "वर्तमान क्रांति: लोकतंत्र (टुडेज रिवोल्यूशन: डेमोक्रेसी) नामक किताब लिखी। एड्रियान क्रिस्टोबाल, जो कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य थे, द्वारा लिखी गई किताब में यह कहा गया:  "हम इस कथन के लिए लेनिन का शुक्रिया अदा करते हैं कि क्रांतिकारी सिद्धांत के बिना क्रांति नहीं हो सकती। .... लेनिन ने क्रांति के दो चरणों की कल्पना की: पहला पूंजीपति वर्ग और दूसरा सर्वहारा।"

द्विचरणीय क्रान्ति का सिद्धांत लेनिन का न होकर स्टालिन द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत था, लेकिन इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि यह फर्दिनांद मार्कोस की आवाज थी। पीकेपी ने मार्शल कानूनों को न्यायपूर्ण सिद्ध करने के लिए स्टालिन के दृष्टिकोण को लेनिन के नाम से प्रचारित किया और इन पंक्तियों को तानाशाह बनने की चाह रखने वाले व्यक्ति के नाम से उद्धरित किया। ये कितनी असाधारण घटना है!

हेसुस लाव्या, जो बड़े लंबे समय से पार्टी के नेता थे, ने दावा किया कि मार्कोस की किताब "फिलीपींस के समाज में मौजूद समस्याओं का एक बेहतरीन विश्लेषण प्रस्तुत करती है।"

जब मार्कोस ने 1972 में मार्शल कानून लागू किया, तब पीकेपी का एक हिस्सा पार्टी से अलग हो गया, जिसने सशस्त्र संघर्ष के जरिए पार्टी द्वारा शासन का समर्थन किए जाने का विरोध किया। इन हिस्सों ने पार्टी से अलग होने में कुछ ज्यादा लंबा समय लिया, जिस मुद्दे  पर मैंने अपनी थीसिस में विस्तृत चर्चा की है। पीकेपी, हालांकि, फर्दिनांद मार्कोस के कैबिनेट में प्रवेश करने में असमर्थ था, क्योंकि पार्टी के भीतर एक वर्ग था जो मार्शल कानून का विरोध करता था। अपने विरोधियों को ट्रॉटस्कीवादी कहकर (ये ऐसी भाषा थी जिसका सहारा लेकर स्टालिनवादी अपने विरोधियों की हत्याएं करवा रहे थे) उन्होंने अपने अधीनस्थों और साथियों की हत्याएं करवाईं। इन आंकड़ों का अनुमान लगाना कठिन है, लेकिन पीकेपी के काॅडर के करीब 60 से 70 फीसदी लोगों की हत्या पार्टी नेतृत्व ने करवाई ताकि वे सैन्य तानाशाही का समर्थन कर सकें। हालांकि ये संख्या स्पष्ट नहीं है फिर भी ये कहा जा सकता है कि मार्कोस ने जितने कम्युनिस्ट की हत्याएं करवाईं, उससे कहीं ज्यादा हत्याएं पीकेपी ने करवाई थीं।

पीकेपी ने तानाशाही के अपने समर्थन को इस आधार पर उचित ठहराया कि वे देशी पूंजीवाद के कामकाज की परिस्थितियों को तेजी से बेहतर बनाने के लिए मार्शल कानून का उपयोग कर रहे थे। 1973 के पूर्वार्द्ध में पार्टी की छठीं कांग्रेस में, पीकेपी ने लिखा,

"गतिशील पूंजीवादी विकास के साथ फिलीपींस एक नवउपनिवेशवादी देश है। इसकी अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से पिछड़ेपन और औपनिवेशिक लूट से बिगड़ी हुई है। .... अमरीकी साम्राज्यवादी नेतृत्व में वित्तीय पूंजी पर आधिपत्य के जरिए फिलीपींस मुख्यतः सामंती देश से एक आधुनिक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में जोरों से परिवर्तित हो रहा है। आज यह सैन्य तानाशाही के कारण पूंजीवादी निर्माण की एक तीव्र गति से गुजर रहा है।”

अगर हम यह नहीं जानते तो यह कहना कठिन होगा कि ऐसे कथन किसी  कम्युनिस्ट पार्टी से सम्बंधित हैं : अंतरराष्ट्रीय वित्तीय पूंजी सैन्य तानाशाही के माध्यम से पूंजीवाद का विकास कर रही है। इस स्पष्टीकरण ने दरअसल पीकेपी के भीतर मौजूद वर्गीय ढांचे को ही अभिव्यक्ति किया जो कि सैन्य तानाशाही के समर्थन के लिए काम करता था, जिस पर उन्होंने अपना अनुलेख पार्टी की छठी कांग्रेस में प्रकाशित करवाया था। इस सभा के बाद पार्टी के हर सदस्य पर दबाव था कि वे पार्टी के सदस्य बने रहने के लिए उनके राजनीतिक दृष्टिकोण का समर्थन करें। यदि आप पीकेपी के सदस्य बनना चाहते हैं, तो आप तानाशाह के समर्थन के इस राजनीतिक संकल्प पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य थे।

पीकेपी के नेता एक जबरदस्त राजनीतिक अपराध के दोषी थे। वे  सैन्य तानाशाही की सरकार में प्रशासनिक रूप से शामिल हुए। उन्होंने विदेश मंत्रालय, श्रम मंत्रालय और सैन्य खुफिया विभाग में पद संभाला, जहां वे अपने प्रतिद्वंद्वियों, माओवादियों को कुचलने के लिए जिम्मेदार थे। उनमें से कई अभी भी जीवित हैं, उनमें से कुछ प्रमुख पदों पर हैं।

इस बीच सीपीपी बुर्जुआ विपक्षियों के साथ षड्यंत्रकारी रणनीतियां बना रहा था। पार्टी ने उस समय के विशाल जन आंदोलन पर कब्जा कर लिया था, और 'सांस्कृतिक क्रांति' और 'जनता के लंबे संघर्ष' जैसी लफ्फाजियों के जरिए वे इस राजनीतिक अशांति को अपने बुर्जुआ सहयोगियों के पक्ष में मोड़ने में सक्षम थे।

इन सबसे ऊपर, सीपीपी ने निनोय अकिनो के साथ मैत्री स्थापित की थी, जो एक प्रमुख राजनीतिक परिवार का वंशज था, जिसे चीनी हितों के प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्ति के रूप में जाना जाता था। अकिनो ने एक स्थानीय सशस्त्र आंदोलन के नेता और सीसों  के बीच वार्ता आयोजित कराने में महती भूमिका निभाई थी, जो आंदोलन अकिनो के चीनी उद्योग से जुड़ा हुआ था और उसका नेता कमांडर दांते के रूप में जाना जाता था। सीसों  और दांते के बीच हुई इस वार्ता ने न्यू पीपल्स आर्मी की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

अकिनो मार्शल कानून के विरोधी नहीं थे। 12 सितम्बर 1972 को अमरीकी दूतावास के एक ज्ञापन के अनुसार:

"अकिनो मानते हैं कि मार्कोस सत्ता में बने रहने के लिए मार्शल कानूनों यानी सैन्य तानाशाही का रास्ता अपनाएंगे। अकिनो ने कहा कि वे मार्कोस का समर्थन करेंगे अगर वे इस रास्ते का इस्तेमाल करते हैं। चूंकि कानून-व्यवस्था और अर्थव्यवस्था दोनों ही तेजी से बिगड़ती जा रही है, तो अकिनो के विचार में, देश की भलाई के लिए केंद्र सरकार की ओर से मजबूत उपायों की आवश्यकता है। असंतुष्ट लोगों की बढ़ती संख्या से उमड़ने वाला ख़तरा, बिगड़ती कानून-व्यवस्था की समस्या... ये कुछ कारण अकिनो द्वारा एक मजबूत सरकार की स्थापना के पक्ष में तर्क के रूप में पेश किए गए। ऐसी कार्रवाई का अर्थ सैन्य तानाशाही लागू करना था। अकिनो ने संकेत दिया कि अगर वे राष्ट्रपति होते तो वे इस तरह की कड़ी कार्रवाई करने में जरा भी संकोच नहीं करते, उदाहरण के लिए, मनीला के लुनेता पार्क में कुछ भ्रष्ट अधिकारियों का कत्ल इसलिए करवा देते ताकि वे अन्य अधिकारियों को संदेश दे सकें कि उन्हें सिर्फ काम से मतलब है।"

अकिनो लोकतंत्र की पूर्ती नहीं थे। वे उस सामाजिक ढांचे का प्रतिनिधित्व करते थे जिसके साथ सीपीपी ने गठबंधन किया, और जिसे उन्होंने "फासीवाद" के विरोधी के रूप में प्रचारित किया था। अंत में यह मायने नहीं रखता कि कौन जीता: मार्कोस और पीकेपी या अकिनो और सीपीपी। इसके बावजूद फिलीपींस के श्रमिक वर्ग ने तानाशाही का सामना किया।

जब तानाशाही को आखिरकार लागू कर दिया गया, तो सीसों  ने इसे क्रांति के लिए अच्छा माना, क्योंकि उन्होंने दावा किया कि "दमन प्रतिरोध को जन्म देता है।" यह हमेशा पार्टी की लाइन रही है: "फासीवाद" जितना बुरा होगा, विपक्ष के निर्माण के लिए उतना ही बेहतर होगा। यह एक बुनियादी झूठ है। लोकतंत्र की रक्षा में मजदूरों का सब कुछ दांव पर लगा हुआ है। ये वो हवा है जिसमें एक राजनीतिक आंदोलन के विकास की परिस्थितियां सांस लेती हैं।

सीसों अपनी इस नीति, “दमन क्रांति को जन्म देता है,” को लेकर न सिर्फ और कट्टर हुए, बल्कि उन्होंने, 1 अक्टूबर 1972 को देश में सैन्य तानाशाही लागू होने के दो हफ्ते बाद, जोर देते हुए कहा कि पार्टी को राष्ट्रीय बुर्जुआ वर्ग के प्रगतिशील वर्गों को खोजने और उन्हें सहयोगी बनाने की आवश्यकता है:

"पार्टी को ग्रामीण देशी पूंजीपति वर्ग का समर्थन हासिल करने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि वे ग्रामीण एवं शहरी इलाकों में, क्रांतिकारी आंदोलन की राजनीतिक एवं वित्तीय दोनों तरीके से मदद कर सकें। चूंकि दुश्मनों से लड़ने के लिए उनसे हथियार उठाने की उम्मीद नहीं की जा सकती..."

पार्टी को इन प्रगतिशील पूंजीपतियों से हथियार उठाने की उम्मीद नहीं थी। वह मजदूरों, किसानों और नौजवानों का काम था। ये वो ताकतें थीं जिनसे पार्टी को उम्मीद थी कि वे मज़दूरी करेंगे और पीड़ित होंगे और मरेंगे।

"... वे क्रांतिकारी आंदोलन का समर्थन नकद धनराशि या अन्य वित्तीय साधनों के जरिए कर सकते हैं.." पूंजीपतियों से अपेक्षा की गई थी कि वे पार्टी को पैसा देंगे, उसे चंदा देंगे। और उसके बदले में, सीसों  ने कहा, "पार्टी को उनके वैध हितों की रक्षा करनी चाहिए..."

यह सैन्य तानाशाही के प्रति सीसों की प्रतिक्रिया थी: ये कदम क्रांति के लिए अच्छा था; कार्यकर्ता हथियार उठाएँगे;  पूंजीपति पार्टी को चंदा देंगे; पार्टी हथियारबंद कार्यकर्ताओं को पूंजीपतियों के हितों की रक्षा करने का निर्देश देगी।

इस परिस्थिति में माओ ने बहुत अलग तरीके से काम किया। प्राग आंदोलन के दमन के बाद ब्रेझनेव डॉक्ट्रिन ने घोषणा की कि सोवियत संघ किसी भी समाजवादी देश के मामलों में हस्तक्षेप करेगा जिससे सोवियत हितों को खतरा हो.  संभावित सोवियत हमले को भांप करने के लिए माओ ने सांस्कृतिक क्रान्ति को कुचल डाला, लिन बियाओ को बहिष्कृत किया, किसिंजर और निक्सन के साथ वार्ता की पहल करते हुए, वॉशिंगटन के साथ मिलकर अमरिकी साम्राज्यवाद से संबंध स्थापित किया।

माओ ने तब दुनिया भर के देशों का रुख करते हुए सोवियत संघ के तर्ज पर तानाशाहों के साथ संबंध स्थापित किए। उन्होंने मार्कोस और पिनोशे का समर्थन किया। सल्वाडोर अयेन्दे  का संबंध चिली की कम्युनिस्ट पार्टी से था, जो मास्को की तरफ झुकाव रखती थी, और जब पिनोशे ने पार्टी और चिली के मजदूर वर्ग के विरूद्ध दमनात्मक कार्रवाई को अंजाम दिया, तो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने तुरंत पिनोशे का स्वागत किया।

मार्कोस ने उस समय के सामाजिक असंतोष आंदोलनों को कुचलते हुए सैन्य तानाशाही के जरिए श्रमिक जनता का वृहद स्तर पर दमन किया। जब मार्कोस ने चीन के साथ व्यापार और राजनयिक संबंध स्थापित करने के लिए बीजिंग का दौरा किया, माओ ने सार्वजनिक बयान जारी करके कहा कि फिलीपींस के "घरेलू मामलों" में सीसीपी हस्तक्षेप नहीं करेगा।

सीसों  ने ये दावा किया कि माओ द्वारा मार्कोस के साथ संबंधों की शुरुआत "चीन के लिए एक कूटनीतिक विजय और फिलीपींस के क्रांतिकारी संघर्ष की सफ़लता थी।" "झूठ" शब्द इस तर्क को परिभाषित करने के लिए काफी नहीं है।

केवल इन संगठनों के भीतर ही नहीं, बल्कि उनकी राजनीतिक पक्षधरता के आधार पर भी मानवाधिकारों की रक्षा करना असंभव है। सीपीपी और उसके सहयोगी संगठन लोकतंत्र का बचाव करने वाली ताकत का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। इसे मेरा ऐतिहासिक संक्षेप समझिए।

पार्टी अपने स्वयं के रैंकों के भीतर दमनात्मक कार्रवाइयों के लिए जिम्मेदार थी जिसने अपने स्वयं के सदस्यों में से एक हजार लोगों को मरवा दिया। 1970 के आखिरी एवं 1980 के शुरुआती दशक में उन्होंने बाल सैनिकों की भर्ती भी की, कॉमिक्स और प्रारंभिक पुस्तिकाओं का प्रकाशन किया, ताकि वे  न्यू पीपुल्स आर्मी में दस और ग्यारह साल की उम्र के बच्चों को भर्ती कर सकें।

जो लोग मानवाधिकारों के बचाव में रुचि रखते हैं उन्हें कहीं और देखने की जरूरत है। ऐसा नहीं है कि मैं सीपीपी और उससे सीधे जुड़े संगठनों के मानवाधिकारों का बचाव नहीं करता हूं। मैंने इस व्याख्यान की शुरुआत में राज्य की हिंसा के खिलाफ  उनके बचाव में कुछ शब्द कहे। मेरा मुद्दा अलग है।यदि आप लोकतंत्र की रक्षा करने, तानाशाही के उदय को रोकने और मानवाधिकारों के बचाव में रुचि रखते हैं, तो ये वो सामाजिक ताकतें नहीं हैं जिन्हें आदर्श समझा जाना चाहिए।

मेरा अंतिम अनुरोध उन सभी विद्वानों और जनता से है जिन्होंने इस व्याख्यान को सुना है। सीसों  और उनके समर्थक अपनी मूर्खतापूर्ण बयानबाजियों, अपने "ये सरासर झूठ है" जैसे बेशर्म दावों, अपनी हिंसक अश्लीलता के जरिए जब मुझसे कहते हैं कि मुझे अपने "थूक को चाट" लेना चाहिए और मेरी नकली तस्वीरें प्रसारित करते हैं तो ये सीधे सीधे कट्टर दक्षिणपंथी हरकतें हैं। फेसबुक पर सीपीपी की भाषा कट्टर ड्यूटर्टे समर्थकों, डीडीएस, से अलग नहीं है। आप एक छोटा ऑनलाइन क्विज खेल सकते हैं, "किसने कहा: होमा सीसों  ने या एक डीडीएस ट्रोल ने?" दोनों के बीच अंतर बताने के लिए आपको कड़ी मेहनत करनी होगी।

सीपीपी को ऐतिहासिक सच्चाई का बचाव करने में कोई दिलचस्पी नहीं है। ट्रॉटस्की ने इस संबंध में स्टालिनवादियों के बारे में जो कहा है, उसका हवाला देकर मैं अपने निष्कर्ष पेश करना चाहूंगा। "हर एक अनचाहे मोड़ पर वे इतिहास को फिर से संशोधित करने के लिए बाध्य हैं।"

स्टालिनवादियों ने मैकपगल के साथ गठबंधन किया, लेकिन फिर घोषणा की कि वे प्रतिक्रियावादी थे और उन्होंने कभी भी उसका समर्थन करने के सबूत नष्ट कर दिए। उन्होंने मार्कोस के साथ गठबंधन किया, लेकिन फिर, निश्चित रूप से, वे प्रतिक्रियावादी थे। ये पैटर्न बार-बार दोहराया गया है। उन्होंने कोरी अकिनो के साथ गठबंधन किया, लेकिन तब वे प्रतिक्रियावादी थीं। उन्होंने ड्यूटर्टे के साथ गठबंधन किया, लेकिन अब उन्हें एक फासीवादी घोषित कर रहे हैं, और मेरे द्वारा उनके इतिहास से सबूत खींच कर सामने लाने पर मुझे "सीआईए का खरीदा हुआ जासूस" बता रहे हैं।

"झूठ इसलिए" ट्रॉटस्की आगे कहते हैं, "नौकरशाही व्यवस्था की मौलिक विचारधारा के सीमेंट के रूप में काम करता है।" यही वो चीज़ है जो सब कुछ जोड़े रखती है।

"नौकरशाही और लोगों के बीच का विरोधाभास जितना अधिक बढ़ता है, सभी तरह की अशिष्टता झूठ बन जाती है (मुझे लगता है कि हम अब इसे देख रहे हैं), बड़ी ही बेशर्मी से ये आपराधिक फर्जीवाड़े और न्यायिक साज़िश में बदल जाता है।"

वर्तमान में जो कहा जा रहा है, उस पर भरोसा न करें। समकालीन लिखित रिकॉर्ड का पता लगाएं। यह   इकलौती चीज है जिसकी सच्चाई  को लेकर हम निश्चिंत हो सकते हैं। इसे अपने लिए जांचें, अपने लिए सबूतों की समीक्षा करें। यह सिर्फ मेरे अपने क्षेत्र में ही नहीं बल्कि सामान्य रूप से उच्च शिक्षा के हर क्षेत्र में लागू होता है। हम एक ऐसे दौर में हैं जब ऐतिहासिक तथ्यों, खासकर तथ्यों के विचार, पर लगातार हमले हो रहे हैं, और अपमानजनक झूठों पर तानाशाही शक्तियां सत्तासीन हो रही हैं।

मैं नागरिक विमर्श, लोकतांत्रिक एवं सार्वजनिक बहसों , सत्यापित साक्ष्यों, तार्किक बहसों, लोकतंत्र एवं ऐतिहासिक तथ्यों के बचाव में बोल रहा हूं। धन्यवाद।

सवालएवंजवाब:

सवाल: न सिर्फ फिलीपींस में बल्कि पूरे विश्व के मौजूदा हालातों एवं वामपंथी धड़ों के बीच अलगाव को देखते हुए क्या आप सुझाव दे सकते हैं कि एक उदारवादी समाज की लगातार हो रही मौत एवं वामपंथ एवं दक्षिणपंथ दोनों तरफ से खड़ी हो रही भीड़ का सामना कैसे करें?

उत्तर: मैं इस पर बात करना चाहूंगा, यह एक बढ़िया सवाल है। इस सवाल पर काफ़ी लोग लंबे समय तक बोल सकते हैं। इसलिए मैं आपके सामने कुछ मुद्दे  में इसका जवाब दे सकता हूं।

सबसे पहले तो ये: ड्यूटर्टे एक राजनीतिक किस्म हैं। दुनिया भर में उनके राजनीतिक बंधु मौजूद हैं: डोनाल्ड ट्रम्प, हायर बोल्सोनारो, जर्मनी में एफएडी जैसे राजनीतिक दल आदि। तो हम एक वैश्विक समस्या का सामना कर रहे हैं। और इसलिए जो लोग अधिनायकवाद या निरंकुशतावाद  के उदय से चिंतित हैं उनसे में यह कहना चाहूंगा: ये एक राष्ट्रीय समस्या नहीं है। हमारे समाधान राष्ट्रीय समाधान नहीं हो सकते। इसके लिए वैश्विक राजनीतिक दृष्टिकोण विकसित करने, दुनिया भर के लोगों खासकर बौद्धिकों, श्रमिकों आदि  के बीच गहन संवाद की आवश्यकता है ताकि वे सच का साथ दें और अधिनायकवाद के बढ़ते ख़तरे को चुनौती दे सकें।

दूसरा आपने वामपंथ के टुकड़े होने की बात कही। मैं इस चिंता को समझता हूं लेकिन मुझे फ़िक्र मजदूर वर्ग के बिखर जाने, उस सामाजिक ताकत के बंट जाने से है, जो तानाशाही के ख़तरे को समाप्त कर सकता है और लोकतंत्र की रक्षा कर सकता। और लोकतंत्र की रक्षा बुनियादी तौर पर मज़दूर वर्ग की एकता का सवाल है। और अगर फिलीपींस के इतिहास का मेरा ऐतिहासिक मूल्यांकन सही है, ये मजदूर वर्ग की स्वतंत्रता, उनके हितों का सवाल है, न कि ये सवाल किसी भी रूप में पूंजीपति वर्ग के हितैषी बनने से जुड़ा है।

अब, ये बहुत सीधा राजनीतिक निष्कर्ष मैं इन ऐतिहासिक दस्तावेजों से निकाल रहा हूं। लेकिन अंत में वामपंथ का टूट जाना, मुझे नहीं लगता कि इतना बड़ा मुद्दा है, जितना कि राष्ट्रीयता के सवाल पर मजदूर वर्ग का बिखर जाना।

सवाल: (....)

उत्तर: ये एक लंबा सवाल है, मुझे नहीं लगता है कि मैं इसके साथ न्याय कर सकता हूं। हालांकि मैं ये कहना चाहूंगा: जो लोग फिलीपींस में एक विकल्प कि तलाश कर रहे हैं, उन्हें शून्य से शुरू करने की आश्यकता नहीं है। फिलीपींस के पास क्रांतिकारी संघर्ष की एक समृद्ध और गौरवशाली विरासत है: स्पेन के औपनिवेशिक शासन को उखाड़ फेंकने वाला क्रांतिकारी आंदोलन, अमरिकी साम्राज्यवाद के विरूद्ध एक लम्बी साहसपूर्ण लड़ाई, जिसमें कई फिलीपीनियों की जानें गईं। इसके अलावा तमाम विद्रोहों, श्रमिक संघर्षों को याद किया जाना जरूरी है, जिनमें से एक, बंदरगाहों के मजदूरों की हड़ताल, के बारे में मैंने लिखा है। ये सब फिलीपींस की जनता, उसके मजदूरों एवं किसानों का इतिहास है। कोई भी नया आंदोलन इस इतिहास को बनाता है और उससे कुछ सीखता है।

लेकिन ये उससे अपने आप पैदा नहीं होता। आप अपनी राष्ट्रीय सीमाओं के भीतर ये आंदोलन शुरू नहीं कर सके, बल्कि आपको पूरे विश्व में चल रहे श्रमिक आंदोलनों से शुरुआत करनी होगी। मुझे लगता है कि जो लोग भी फिलीपींस में नया आंदोलन खड़ा करना चाहते हैं, उन्हें दुनिया भर में मौजूद अपने भाइयों और बहनों से उनके राजनीतिक विचारों और उनके संगठनों से सीखना चाहिए। इस तरीके से आप कोई आंदोलन खड़ा कर सकेंगे।

सवाल: मार्क्सवाद और लेनिनवाद के सिद्धांतों के आधार पर देखें तो क्या होमा सीसों  को एक सच्चा कम्युनिस्ट माना जा सकता है? अगर हां, तो कैसे? अगर नहीं तो क्यों उनकी पार्टी को कम्युनिस्ट पार्टी कहा जाना चाहिए जबकि वे माओवादी हैं? क्या ये गलतबयानी नहीं है?

उत्तर: शुक्रिया इस बेहद अच्छे सवाल के लिए। इसके जवाब में हां और नहीं दोनों कहूंगा। क्या होमा सीसों  को कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो या 1917 में हुई अक्टूबर क्रांति के संदर्भ में कम्युनिस्ट कहा जा सकता है? नहीं। वे इस आधार पर कम्युनिस्ट नहीं कहे जा सकते। ये उस परम्परा के वाहक नहीं हैं। लेकिन ये तो स्टालिनवाद का धोखा है, जिसने उन्हें मार्क्सवाद की विरासत से अपनी पहचान जोड़ने और उसे आगे ले जाने का भ्रम पैदा करने दिया। इस धोखे ने उन्हें कम्युनिस्ट पार्टी का नेतृत्व संभालने  और मार्क्सवाद की परम्परा को आगे ले जाने का मौका दिया। यही वास्तव में उनकी सबसे बड़ी राजनीतिक पूंजी है कि वे इतिहास की ओर इशारा करके इस पूंजी पर अपना दावा कर सकते हैं। लेकिन ये सच नहीं है। उनका अपना इतिहास वो इतिहास है जिस पर मैंने अपने व्याख्यान में चर्चा की। इसलिए; नहीं, वे मार्क्सवाद की विरासत का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। बल्कि वे स्टालिनवादी परम्परा को जरूर आगे ले जा रहे हैं।

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