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Perspective

मजदूर वर्ग का एक शहीद: फर्जी मामले में फंसाए गए मारुति सुजुकी के कर्मचारी जियालाल की 35 साल की उम्र में मृत्यु

जियालाल उन 13 मारुति सुजुकी ऑटोवर्कर्स में से एक थे जिन्हें 2017 में एक भारतीय न्यायालय द्वारा हत्या के फर्जी आरोपों में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी I केवल 35 की उम्र में उनकी मौत की घोषणा की गयी है । वह अपने पीछे पत्नी और दो छोटे बच्चों को छोड़ गए हैं।

जियालाल की असमय मृत्यु की आपराधिक जिम्मेदारी भारतीय सरकार पर है। अस्थि कैंसर से पीड़ित होने के बाद भी भारतीय राज्य ने जियालाल को चिकित्सा उपचार प्रदान करने से इनकार कर दिया था। जियालाल को उनकी पहली गिरफ्तारी के दौरान बड़ी बेरहमी से पीटा गया और उन्हें मारुति सुजुकी के अन्य कर्मचारियों के साथ जेल में बेहद भयानक परिस्थितियों में रखा गया था।

जियालाल (1985 - 2021)

जियालाल मजदूर वर्ग के शहीद और शासक वर्ग की न्यायव्यवस्था के शिकार हैं। भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संघर्ष करने वाले श्रमिकों को, उनके और उनके साथ काम करने वाले अन्य श्रमिकों के खिलाफ किए जाने वाले क्रूर कानूनी प्रतिशोध की कार्यवाहियों से अवगत कराया जाना चाहिए। मारुति सुजुकी के सभी श्रमिकों को अपनी आजादी हासिल करने के लिए अपने संघर्ष को और तेज करना जरूरी है।

जियालाल भारत की राजधानी दिल्ली से सटे बाहरी इलाके में फैले विशाल औद्योगिक क्षेत्र गुड़गांव-मानेसर में स्थित मारुति सुजुकी के मानेसर कार असेंबली प्लांट में कार्यरत एक जाने-माने जुझारू कार्यकर्ता थे। जियालाल की मृत्यु से पहले, 13 दोषी ठहराए गए कर्मचारियों में से एक, पवन दहिया की अपने ही खेत में बिजली का करंट लगने से मृत्यु हो गई थी। दहिया महामारी के कारण अस्थायी रूप से जेल से रिहा हुए थे,

जियालाल और उनके साथी पुलिस, अदालत, हरयाणा राज्य और केंद्रीय सरकार का निशाना इस लिए बने क्यूंकि उन्होंने शासक वर्ग की शोषक एजेंडा के खिलाफ आवाज़ उठायीI यह एजेंडा भारत को एक सस्ते श्रम स्थान में बनाना है जो जापानी स्वामित्व वाली मारुति सुजुकी जैसे बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए भारी मुनाफा पैदा कर सकता हैI

करीब दस साल पहले 2011 में, असेंबली प्लांट के श्रमिकों ने सरकार द्वारा स्वीकृत, कंपनी-समर्थक यूनियन के विरोध में अपनी स्वयं की ट्रेड यूनियन स्थापित करने के लिए एक जुझारू संघर्ष शुरू किया था। एक साल तक चली तहड़तालों और कार्रवाइयों के आयोजन के बाद, वे 2012 में मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन (MSWU) की स्थापना करने में सफल रहे, जिसका उद्देश्य भारत के वैश्विक रूप से एकीकृत औद्योगिक क्षेत्र में व्याप्त बेहद कम मजदूरी वेतन और शोषणकारी स्थिति को समाप्त करना था।

यह देखकर कि मारुति सुजुकी के श्रमिकों का संघर्ष पूरे गुड़गांव के औद्योगिक क्षेत्र में श्रमिकों के आकर्षण का केंद्र बन रहा है, प्रबंधन ने उग्र प्रतिक्रिया दी। उन्होंने संयंत्र में एक विवाद को उकसाया, जिसके दौरान कार्यालय में एक रहस्यमय तरीके से आग लग गई, जिसमें श्रमिकों के संघर्ष के प्रति सहानुभूति रखने वाले मानव संसाधन प्रबंधक अवनीश कुमार देव की दु:खद मृत्यु हो गई। उस विवाद की शुरुआत एक प्रबंधक द्वारा जियालाल को जातिसूचक घिनौनी गालियां देने के बाद हुई थी I इन गालियों का आधार यह था कि जियालाल दलित ('अछूत' माने जाने वाली जाति के) थे।

इस दुर्घटना के बाद, MSWU के 12 सदस्यों के साथ, जियालाल, पर देव की हत्या का आरोप लगाया गया था।

मारुति सुजुकी में श्रमिकों के खिलाफ बाद में चली बर्बर दमन की कार्यवाही अभूतपूर्व थी। पुलिस ने कंपनी द्वारा उपलब्ध कराई गई सूचियों का उपयोग करते हुए 150 से अधिक श्रमिकों को गिरफ्तार किया और उनके साथ दुर्व्यवहार किया। कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली हरियाणा राज्य सरकार ने अगस्त 2012 में संयंत्र को फिर से खोले जाने से पहले, कंपनी के 2,300 पूर्णकालिक और ठेका श्रमिकों, यानी लगभग पूरे कार्यबल को नौकरी से हटाने और नई भर्ती करने की कार्यवाही को समर्थन दिया।

मारुति सुजुकी के 13 श्रमिको पर चला मुकदमा न्याय के सिद्धांतों का एक कानूनी उपहास था। न्यायाधीश ने मनमाने ढंग से श्रमिकों की सभी गवाहियों को इस आधार पर खारिज कर दिया कि वे MSWU के प्रति 'पक्षपातपूर्ण' होंगे। सबूत गढ़े गए और पुलिस द्वारा सिखाए गए गवाहों को पेश किया गया। सबूत पेश करने का भार मजदूरों पर डाल दिया गया, जज ने घोषणा कर दी कि अगर मजदूर यह साबित नहीं कर सकते कि कारखाने में आग किसी और ने लगाई है, तो यह इस बात का सबूत था कि यह कार्य उन्होंने ही किया था।

इस अन्याय को सभी राजनीतिक दलों के पूर्ण समर्थन से अंजाम दिया गया I इसकी शुरुवाद तब हुई जब कांग्रेस पार्टी हरियाणा और केंद्र में सत्ता में थी। हिंदू-वर्चस्ववादी भारतीय जनता पार्टी द्वारा इनको प्रतिस्थापित किए जाने के बाद भी यह निर्बाध रूप से जारी रहा। शासक वर्ग के दृष्टिकोण का समग्र सारांश प्रस्तुत करते हुए, राज्य के विशेष अभियोजक अनुराग हुड्डा ने श्रमिकों को फांसी देने का तर्क देते हुए, घोषित किया कि, 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'मेक इन इंडिया' का आह्वान कर रहे हैं, लेकिन ऐसी घटनाएं हमारी छवि पर दाग लगाती हैं।”

'मेक इन इंडिया' देश को कम वेतन, शोषणकारी स्थिति और कार्यस्थल पर प्रबंधन की तानाशाही के आधार पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा निवेश के एक प्रमुख स्थान के रूप में बदलने की भारत के शासक अभिजात वर्ग का एजेंडा है। यह बीजिंग के साथ वाशिंगटन के टकराव में भारत को एक अग्रिम पंक्ति में शामिल राज्य में बदलने सहित अमेरिकी साम्राज्यवाद के प्रमुख क्षेत्रीय सहयोगी के रूप में कार्य करने के द्वारा चीन को काबू में करने के भारतीय शासक वर्ग के दृढ़ संकल्प का आर्थिक हथियार है।

चौथे इंटरनेशनल की अंतर्राष्ट्रीय समिति और डब्ल्यूएसडब्ल्यूएस ने मारुति सुजुकी के श्रमिकों की रिहाई की मांग करते हुए एक विश्वव्यापी अभियान शुरू करके उनकी गिरफ्तारी का जवाब दिया, जिसे व्यापक समर्थन मिला।

स्टालिनवादी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टियों जैसे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी -मार्क्सवादी (सीपीएम) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के नेतृत्व वाली ट्रेड यूनियनों ने मारुति सुजुकी के श्रमिकों का साथ छोड़ दिया। सीपीएम और सीपीआई ने, जिन्हें गुड़गांव में काफी समर्थन प्राप्त है, मारुति सुजुकी के श्रमिकों की रिहाई के लिए कोई भी अभियान आयोजित करने से इनकार कर दिया। उन्होंने जानबूझकर श्रमिकों को अलग-थलग कर दिया, जबकि उन्होंने अपने स्वयं के प्रकाशनों में यह स्वीकार भी किया कि अन्य नियोक्ता 'मारुति सुजुकी करने' अर्थात, श्रमिकों के खिलाफ शारीरिक हिंसा और कानूनी प्रतिशोधपूर्ण कार्यवाही का उपयोग करने की धमकी दे रहे थे।

स्टालिनवादियों ने यह भूमिका इसलिए निभाई क्योंकि वे बड़े व्यापारियों की पार्टी कांग्रेस के साथ अपने राजनीतिक गठबंधन को खतरे में नहीं डालना चाहते थे, और क्योंकि उन्हें डर था कि मारुति सुजुकी श्रमिकों के पक्ष में चलने वाला कोई भी संघर्ष मजदूर वर्ग के व्यापक आंदोलन का एक जुटान बिंदु बन सकता है जो तेजी से उनके नियंत्रण से बाहर जा सकता है।

भारत में और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वर्ग संघर्ष में उभार इस अलगाव को ख़त्म करने और जीवित बचे 11 मारुति सुजुकी शाजिस के पीड़ितों की रिहाई के विश्वव्यापी अभियान को पुनर्जीवित करने की वस्तुगत परिस्थितियों का निर्माण कर रहा है।

पिछले 18 महीनों में, भारतीय श्रमिकों ने मोदी सरकार के निवेशक-समर्थक सुधारों के खिलाफ, (जिसमें निजीकरण, व्यापार नियमों का उल्लंघन, ठेका श्रमिकों के उपयोग को व्यापक बनाना, और श्रमिकों के संगठित होने की अधिकांश कार्यवाइयों पर प्रतिबंध लगाना शामिल है) हड़तालों और सार्वजनिक विरोध प्रदर्शनों में भाग लिया है। 2020 में आयोजित दो राष्ट्रव्यापी आम हड़तालों में शासक वर्ग के इस हमले के खिलाफ करोड़ों श्रमिकों ने समन्वित विरोध प्रदर्शनों का आयोजन किया।

तमिलनाडु और कर्नाटक सहित दक्षिणी भारत के ऑटोवर्कर्स ने बेहद कम मजदूरी और खतरनाक कामकाजी परिस्थितियों के खिलाफ महामारी के दौरान हड़तालें आयोजित की। पिछले महीने, बहुराष्ट्रीय कंपनियों हुंडई और रेनॉल्ट निसान को अपने कर्मचारियों के आन्दोलनों के कारण अपने संयंत्रों को अस्थायी रूप से बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा था।

मजदूर वर्ग का उभार एक विश्वव्यापी प्रक्रिया है। हाल के महीनों में पूरे संयुक्त राज्य भर में श्रमिकों द्वारा आयोजित महत्वपूर्ण हड़तालों की एक श्रृंखला देखी गई है, जिसमें अलबामा में वॉरियर मेट के कोयला खनिक, मैसाचुसेट्स में सेंट विंसेंट की नर्सें और एटीआई स्टीलवर्कर्स शामिल हैं। पूरे अमेरिका और यूरोप के शिक्षकों द्वारा भी महामारी के दौरान स्कूलों में काम करने की खतरनाक परिस्थितियों के खिलाफ बड़े संघर्ष आयोजित किए गए हैं।

ये संघर्ष श्रमिकों को कॉर्पोरेटवादी ट्रेड यूनियनों के खिलाफ सीधे संघर्ष में डाल रहे हैं। अपने भारतीय समकक्षों के अनुरूप, मजदूर वर्ग के शोषण की तीव्रता बढ़ाने का पूरा समर्थन करने वाली यूनियनों ने, पूरे महामारी के दौरान सत्ताधारी अभिजात वर्ग की 'जीवन से पहले लाभ' रणनीति का समर्थन किया, और साम्राज्यवादी शक्तियों के चीन के खिलाफ युद्ध अभियान को उचित ठहराने के लिए उग्र राष्ट्रवाद को बढ़ावा दे रहे हैं।

यूनियन की नौकरशाही के खिलाफ श्रमिकों के विद्रोह की सबसे उन्नत अभिव्यक्ति वर्जीनिया के डबलिन में स्थित वोल्वो ट्रक्स के न्यू रिवर वैली प्लांट में पाई गई है, जहां श्रमिकों ने रियायतों से भरे अनुबंध के माध्यम से कंपनी की मनमानी लादने के यूनाइटेड ऑटो वर्कर्स यूनियन के प्रयासों का विरोध करने के लिए आम कार्यकर्ताओं की एक कमेटी की स्थापना की है।

इन स्थितियों में, मारुति सुजुकी के श्रमिकों और उनके समर्थकों की ओर से पूरे भारत और विश्व भर के श्रमिकों के नाम जारी मारुति सुजुकी के 11 श्रमिकों की तत्काल रिहाई और दोषमुक्ति सुनिश्चित करने के लिए एक एकीकृत वैश्विक अभियान संगठित करने की अपील को एक जोरदार समर्थन मिलेगा।

संयुक्त राज्य अमेरिका में ऑटोवर्कर्स, कनाडा में निकल खनिक और ब्रिटेन में बस ड्राइवर अपने स्वयं के अनुभव से जानते हैं कि भारत या मारुति सुजुकी के लिए क्रूरता कोई अद्वितीय चीज नहीं है। पिछले 18 महीनों में, उन्होंने अनुभव किया है कि कैसे पूंजीवादी राज्य की सभी संस्थाओं और ट्रेड यूनियनों में उनके कनिष्ठ भागीदारों ने एक घातक महामारी के दौरान श्रमिकों को काम पर रखने की साजिश रची है, जिससे एक तरफ तो अनगिनत श्रमिकों की मौत हुई है, और दूसरी तरफ धन का भारी मात्रा में संचय हुआ है।

इस तरह के अभियान को चलाने के लिए आवश्यक संगठनात्मक ढांचा इंटरनेशनल वर्कर्स एलायंस ऑफ रैंक-एंड-फाइल समितियों द्वारा प्रदान किया जाता है, जिसे इस साल की मई दिवस की रैली में चौथे इंटरनेशनल की अंतर्राष्ट्रीय समिति द्वारा लॉन्च किया गया था। जैसा कि IWA-RFC की स्थापना वक्तव्य में बताया गया है, यह 'अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कारखानों, स्कूलों और कार्यस्थलों में श्रमिकों के स्वतंत्र, लोकतांत्रिक और जुझारू संगठनों के नए रूपों की रूपरेखा विकसित करना चाहता है। मजदूर वर्ग लड़ने के लिए तैयार है, लेकिन यह प्रतिक्रियावादी नौकरशाही संगठनों द्वारा बेड़ियों में जकड़ दिया गया है जो प्रतिरोध की हर अभिव्यक्ति को दबा देते हैं।'

इन राष्ट्रवादी, पूंजीवादी समर्थक संगठनों के विरोध में IWA-RFC के निर्माण का आधार, मजदूर वर्ग के भीतर समाजवादी राजनीतिक नेतृत्व स्थापित करने का संघर्ष है।

हम भारत, उत्तरी अमेरिका, यूरोप और पूरे विश्व के ऑटोवर्कर्स के साथ ही, अन्य सभी आर्थिक क्षेत्रों के श्रमिकों से भी, मारुति सुजुकी के वर्ग युद्ध के कैदियों की रिहाई की मांग करने, वर्ल्ड सोशलिस्ट वेब साइट को इसके समर्थन में बयान भेजने और अपने कार्यस्थल पर आम कार्यकर्ताओं की कमेटी बनाकर IWA-RFC के निर्माण का समर्थन करने का निर्णय लेने का आह्वान करते हैं।

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