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अडानी ग्रुप पर भ्रष्टाचार के आरोपों ने भारत के वित्तीय बाज़ार और मोदी सरकार को हिलाकर रख दिया

जब वॉल स्ट्रीट निवेशक फ़र्म ने भारत के सबसे बड़े कार्पोरेशन अडानी  ग्रुप के मालिकों और उसके प्रबंधन पर भ्रष्ट तरीक़े अपनाने के आरोपों वाली रिपोर्ट सार्वजनिक की है, तबसे इस ग्रुप के शेयर मूल्य आधे से  भी कम हो गए हैं.

अडानी ग्रुप की दौलत में अचानक कमी ने भारत के वित्तीय बाज़ार और मोदी की अगुवाई वाली धुर दक्षिणपंथी बीजेपी सरकार को हिलाकर रख दिया है.

इस बात की आशंका बढ़ रही है कि इस वित्तीय भूचाल का असर आगे भी होगा, क्योंकि अडानी ग्रुप का सिकुड़ता बाज़ार पूंजीकरण भारतीय बैंकों, अन्य बड़े कर्जदाताओं और निवेशकों के बही खाते पर बहुत कुछ निर्भर करता है. बैंक पहले से ही कर्ज के पहाड़ से खस्ताहाल हैं.

इस बीच भारत की विपक्षी पार्टियां अडानी ग्रुप और इसके चेरयमैन गौतम अडानी को, बीजेपी सरकार की ओर से अतिशय समर्थन के कारण हुए, अकूत मुनाफ़े की ओर इशारा कर रही हैं. यही अडानी कुछ हफ़्ते पहले तक एशिया के सबसे रईस आदमी बताए जाते थे.

मोदी खुद इस रंक से राजा बने अरबपति गौतम अडानी के साथ दशकों पुराना संबंध रखते हैं, जिसकी दौलत दिन दूना रात चौगुना गति से बढ़ी है, जबसे मई 2014 में बीजेपी केंद्र की सत्ता पर काबिज हुई है.

फ़ोटोः इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ गौतम अडानी. (ट्विटर/गौतम अडानी) [Photo: Twitter/Gautam Adani]

24 जनवरी को हिंडनबर्ग रिसर्च ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसका शीर्षक थाः अडानी ग्रुपः कैसे दुनिया का तीसरा सबसे रईस आदमी कार्पोरेट इतिहास में सबसे बड़ी धोखाधड़ी को अंजाम दे रहा है? रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि 9 पब्लिक लिस्टेड कंपनियों वाले अडानी ग्रुप ने अपने वित्तीय मूल्यांकन को बढ़ा चढ़ा कर दिखाने के लिए अकाउंटिंग फ़्रॉड और शेयरों में खुलेआम तिकड़म किया. इन नौ कंपनियों में सात के मालिक खुद गौतम अडानी हैं. रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि मॉरिशस, साइप्रस, यूएई और अन्य देशों में शेल कंपनियों (छद्म कंपनियों) का एक पूरा साम्राज्य खड़ा कर ऐसा किया गया है. और ये शेल कंपनियां ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से शेयरों की धांधली (स्टॉक पार्किंग), धन को इधर से उधर करने (वॉश ट्रेडिंग) और मनी लॉंड्रिंग में लिप्त रही हैं.

भारत के कार्पोरेट मीडिया ने अडानी और उसके अडानी ग्रुप के आसमान छूते विकास को 'भारत की विकास की कहानी' के उदाहरण के तौर पर प्रचारित किया. ऐसा करते हुए उन्होंने यहां तक कह दिया कि भारत के नए नए अरबपतियों और ख़रबपतियों के समूह में अडानी एक प्रतीक हैं. ये अरबपति खबरबपति पिछले तीन दशकों में सरकार के समर्थन से सार्वजनिक संपत्तियों के लूट, भारी टैक्स छूट और अन्य रियायतों और देश के ग़रीब मज़दूर वर्ग के बर्बर शोषण से अमीर बने.

अडानी की सफलता की कुंजी, उनका मोदी और मोदी सरकार के साथ गहरा रिश्ता रहा और ये बहुत पहले से ओपन सीक्रेट रहा है. सार्वजनिक रूप से बनाए गए ढेर सारे बुनियादी ढांचों के निजीकरण से उन्हें जम कर फायदा हुआ. बंदरगाह, बिजली निर्माण और वितरण, कोयला खदानें और एयरपोर्ट उनके हवाले किए गए. निरपवाद रूप से इन सारे क्षेत्रों की कंपनियों को उनकी बाज़ार क़ीमत से बहुत कम दाम पर उनके हवाले कर दिया गया और अडानी को भारत के सार्वजनिक बैंकों की ओर से दिए गए असुरक्षित कर्ज के पैसे ये संपत्तियां खरीदी गईं.

मोदी की विदेश यात्राओं में अक्सर उके साथ जाने वाले अडानी को बीजेपी सरकार के उच्चस्तरीय हस्तक्षेप से बहुत फायदा हुआ, इनमें से कुछ सौदों में मोदी ने खुद पहलकदमी ली, ख़ासकर बड़े विदेशी अधिग्रहणों का रास्ता आसान बनाने में.

हाल ही में अडानी ने इजराइल के साथ भारत की तेज़ी से बढ़ती मिलिटरी सिक्युरिटी पार्टनरशिप में भी सौदा अपने नाम किया. इजराइली प्राधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ मोदी के क़रीबी रिश्ते की वजह से अडानी ने इजराइल के हाईफ़ा पोर्ट का अधिग्रहण किया. इससे पहले अडानी ग्रुप ने ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में बहुत विशाल और सर्वाधिक प्रदूषणकारी कारमाइकल कोयला खदान को विकसित करने का ठेका हासिल किया था.

अडानी ग्रुप के भ्रष्ट तौर तरीके क्रोनी कैपिटलिज़्म (याराना पूंजीवाद) पर रोशनी डालते हैं, जोकि मोदी सरकार की ख़ास पहचान है. साल 2001 से 2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए अपने कार्यकाल में मोदी ने आर्थिक विकास के जिस 'गुजरात मॉडल' का सब्जबाग दिखाया था, वही अब राष्ट्रीय स्तर पर लागू हो रहा है. गुजरात मॉडल में अनिवार्य रूप से सरकारी नीति और सरकारी नौकरशाही को निजी कार्पोरेशनों के मुनाफ़े के हित के पूरी तरह मातहत कर दिया गया. जो भी उद्योगपति और बिज़नेसमैन मोदी के क़रीबी थे उन्हें सरकारी संपत्ति की बिक्री और अन्य निवेशक परस्त नीतियों का पहले फ़ायदा मिला. इस दौरान मज़दूरों के प्रदर्शनों को बर्बरता के साथ कुचला गया.

एशिया टाइम्स में उपसला यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर अशोक स्वाईं ने जैसा लिखा है, अडानी की हैरतअंगेज़ निजी अमीरी बहुत विलक्षण है और मोदी और बीजेपी सरकार के साथ उनके रिश्ते से नाभिनालबद्ध है. स्वाईं लिखते हैं, 'जब सितम्बर 2013 में मोदी बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बने उससे पहले अडानी की कुल दौलत 1.9 अरब डॉलर हुआ करती थी. अगस्त 2022 तक अडानी की दौलत 137 अरब डॉलर हो गई, जबकि इस बीच कोविड के कारण 23 करोड़ भारतीय ग़रीबी में चले गए. इस बारे में एक रिपोर्ट लिखने के लिए किसी को हिंडनबर्ग रिसर्च की क्या ज़रूरत है?'

अभी अडानी के शेयर रसातल की ओर जा ही रहे थे कि 29 जनवरी को अडानी ग्रुप ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट में लगाए गए आपराधिक कार्पोरेट धोखाधड़ी के आरोपों पर 413 पेज का 'उत्तर' जारी किया. हैरानी नहीं हुई कि इसमें गौतम अडानी को राष्ट्रीय झंडे में लपेट कर दिखाते हुए कहा गया कि रिपोर्ट में लगाए गए आरोप 'भारत पर सुनियोजित हमला' है.

इसके जवाब में हिंडनबर्ग रिसर्च ने कहा कि 413 पेज में सिर्फ 30 में उन मुद्दों पर चलताऊ बात की गई जो रिपोर्ट में उठाए गए थे और अडानी ग्रुप 88 सवालों में 62 सवालों का जवाब देने में विफल रहा. हिंडनबर्ग रिसर्च ने यहां तक कहा कि 'भारत के भविष्य को अडानी ग्रुप पीछे धकेल रहा है. वो खुद को भारतीय झंडे की आड़ में बचा रहा है जबकि दूसरी तरफ राष्ट्र को बहुत सुनियोजित तरीके से लूट रहा है.'

हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट पर शुरू में मोदी सरकार ने मुर्दा ख़ामोशी अख़्तियार किए रखा. लेकिन भारतीय और अमेरिकी शेयर बाज़ार में अडानी ग्रुप को लेकर मची भगदड़ ने वित्त मंत्रालय को बयान जारी करने पर मजबूर किया, जिसमें कहा गया कि 'नियामक संस्थाएं अपना काम करेंगी' और जोर दिया गया कि 'अर्थव्यवस्था की बुनियाद और इसकी छवि पर कोई असर नहीं पड़ा है.'

हालांकि यह भी अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को भरोसा दिलाने में नाकाम रहा. अडानी ग्रुप की कंपनियों के शेयरों की क़ीमतों के औंधे मुंह गिरने के बाद, सबसे बड़े अमेरिकी बैंक सिटीग्रुप ने एक बयान जारी कर कहा कि नए कर्ज़ के लिए वो अब न तो अडानी ग्रुप के शेयर और ना ही बांड, गिरवी के तौर पर स्वीकार करेगा. इसी तरह के फैसलों की घोषणा स्विस बैंक क्रेडिट सुईस और ब्रिटिश कर्ज़दाता स्टैंडर्ड चार्डर्ड ने भी की.

हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट आने के बाद से छह फ़रवरी तक अडानी ग्रुप की कंपनियों के कुल 218 अरब डॉलर की बाज़ार क़ीमत में 110 अरब डॉलर की कमी आ चुकी थी. इसके बाद सोमवार को जब बाज़ार खुला तो अडानी ग्रुप की कंपनयों के शेयर की क़ीमतों में गिरावट तभी रुकी जब भारत के शेयर बाज़ार और नियामक संस्थाओं ने अडानी की कंपनियों के लिए लोवर सर्किट (जिसके बाद शेयर खरीद बिक्री बंद हो जाती है) पांच प्रतिशत और अडानी ट्रांसमिशन कंपनी के लिए 10 प्रतिशत कर दिया. बावजूद, सभी कंपनियों के शेयर लोवर सर्किट तक पहुंचने के बाद ही रुके.

हाल के दिनों में अडानी ग्रुप के शेयर की क़ीमतों में थोड़ा सुधरा हुआ. इस बात तमाम संकेत हैं कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और एलआईसी जैसी सरकारी कंपनियों ने इनमें ताज़ा पैसा झोंका. एलआईसी और एसबीआई पहले से ही अडानी ग्रुप में बड़े निवेशक हैं.

सार्वजनिक रूप से भले ही सरकार शांत दिखने की कोशिश कर रही है, लेकिन ये साफ़ है कि वो अडानी ग्रुप की संभावित गिरावट के आर्थिक और राजनीतिक नतीजों को लेकर चिंतित है.

मोदी सरकार और भारतीय कार्पोरेट मीडिया लगातार विश्व में भारत के सुनहरे आर्थिक विकास का ढोल पीट रहे हैं. लेकिन वास्तविकता बिल्कुल उलट है.

एक फ़रवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किए गए 2023-24 के बजट में सरकार ने बंदरगाहों, सड़कों, पुलों और अन्य ढांचों के निर्माण या सुधार के लिए 167 अरब डॉलर की विशाल राशि आवंटित की है, जोकि बड़े कारपोरेट घराने को फायदा पहुंचाने के लिए ही किया गया है. एक तरफ़ भारत की मौजूदा आधारभूत संरचना चिंताजनक रूप से अपर्याप्त है, लेकिन बुनियादी ढांचे में इतनी विशाल राशि खर्च करने का प्रमुख कारण अर्थव्यवस्था में जान फूंकना है क्योंकि सालों से निजी निवेश गिरता जा रहा है. ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत की कंपनियां कर्ज़ से दबी हुई हैं और वे अडानी ग्रुप की तरह सरकारी दरियादिली से लाभान्वित नहीं हो सकतीं, जो निवेश करने की बजाय अपने ही शेयर खरीदने और अन्य वित्तीय तिकड़मों को ज्यादा मुफीद समझता है.

अडानी के साथ मोदी के करीबी रिश्ते के बारे में किसी भी खुलासे को लेकर सरकार कितनी सजग है, ये इस बात से पता चलता है कि लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी के उस भाषण का अधिकांश हिस्सा संसदीय कार्यवाही से निकाल देने का आदेश दिया जिसमें राहुल ने 2014 के पहले मोदी के साथ गौतम अडानी के रिश्ते और अडानी ग्रुप और सरकार के रिश्ते के बारे में सवाल खड़े किए थे.

मोदी ने भी पलटवार करते हुए कई घोटालों का ज़िक्र किया जो दिखाता है कि 2004-14 के बीच कांग्रेस पार्टी की अगुवाई वाली सरकार, विभिन्न भारतीय औद्योगिक घरानों के साथ कई भ्रष्ट सौदेबाज़ी में आकंठ डूबी हुई थी. लेकिन स्वाभाविक रूप से जो मोदी नहीं कह सके और ना ही कहेंगे, वो ये कि उनके शासन के दौरान सरकार और उद्योगपतियों के बीच भ्रष्टाचार की साठ गांठ चरम पर पहुंच गई है; कि ये भारतीय पूंजीवाद के डीएनए में मौजूद है; और जबसे 1991 में भारतीय शासक वर्ग ने साम्राज्यवाद के नेतृत्व वाले वैश्विक पूंजीवाद के साथ खुद को पूरी तरह नाभिनालबद्ध करने के लिए, औपचारिक रूप से सरकार नियंत्रित पूंजीवादी विकास की नीति का परित्याग किया है,  ये साठ गांठ गुणात्मक रूप से बढ़ी है.

अडानी और मोदी दोनों ही गुजरात से आते हैं. उनके बीच क़रीबी रिश्ते 2003 से ही हैं, उस घटना के कुछ ही दिन बाद से, जब मोदी, मुख्यमंत्री के बतौर फ़रवरी 2002 में गुजरात में मुस्लिम विरोधी नरसंहार को भड़काने या सरकारी तंत्र को कुछ भी करने के आदेश दिए जाने की अपनी भूमिका के कारण सुर्खियों में आए. ये समूहिक हत्याएं हिंदू आतंकवादी गिरोहों ने कीं और इनके बीजेपी और इससे जुड़े संगठनों से संबंध थे, जिसमें कम से कम 2000 बेगुनाह लोगों की दिल दहला देने वाली मौतें हुईं, जिमें अधिकांश मुस्लिम थे. लाखों ग़रीब मुस्लिम बेघर हो गए और रिफ्यूजी कैंपों में शरण लेने को मजबूर हो गए जो आज भी मौजूद हैं.

इसके बाद फरवरी 2003 में नई दिल्ली में कॉनफ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन इंडस्ट्रीज़ (सीआईआई) ने एक कार्यक्रम आयोजित किया था, जहां मोदी मुख्य अतिथि थे. इस कार्यक्रम में दो जाने माने उद्योगपति राहुल बजाज और जमशेद गोदरेज ने गुजरात में क़ानून व्यवस्था के हालात को लेकर मंच पर ही मोदी से बहुत आक्रामक तरीके से जिरह किया.

इसने अडानी और कई गुजारती उद्योगपतियों को बहुत नाराज़ कर दिया. उन्होंने सीआईआई से अपने संबंध तोड़ लिए क्योंकि उसने गुजरात को बदनाम करने के लिए मंच मुहैया कराया और उन्होंने मुख्यमंत्री मोदी के नेतृत्व में अभूतपूर्व बिज़नेस फ्रेंडली राज्य के तौर पर गुजरात की ब्रांडिंग करने के लिए एक अलग संस्था बनाई 'रीसर्जेंट ग्रुप ऑफ़ गुजरात' (गुजरात का उभरता ग्रुप). उन्होंने 'वाइब्रेंट गुजरात' के नाम से एक द्वीवार्षिक बिज़नेस समिट की शुरुआत की, जिसने मोदी को एक ऐसे स्वेच्छाचारी लीडर के रूप में पेश किया जो सरकारी नौकरशाही के विरोध, आंदोलनों या मज़दूों के विरोध प्रदर्शनों की परवाह किए बिना कार्पोरेशनों के मुनाफ़े के लिए काम करेंगे.

जल्द ही इस कार्यक्रम ने भारतीय और वैश्विक निवेशकों को आकर्षित किया, मसलन, यूनाइटेड नेशन्स इंडस्ट्रियल डेवलेपमेंट ऑर्गेनाइजेशन और फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन चैंबर्स ऑफ़ कामर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की). सीआईआई ने 2003 के कार्यक्रम में हुई घटना के लिए मोदी के लिए माफ़ीनामा जारी किया. ये सभी इस कार्यक्रम में प्रायोजक थे.

निवेशक परस्त नीतियों को बेदर्दी से लागू करते हुए मोदी जल्द ही रतन टाटा जैसे भारतीय उद्योगपतियों के लाडले बन गए. अगर पहले का समय होता तो रतन टाटा ने मोदी जैसे हिंदू श्रेष्ठतावादी ठग को दरकिनार कर दिया होता. इसके बावजूद मोदी के साथ अडानी ने अपना क़रीबी रिश्ता बनाए रखा.

साल 2014 में भारत के बड़े उद्योगपतियों ने सत्ता के लिए संभावित हिंदू श्रेष्ठातावादी दबंग व्यक्ति और उसकी बीजेपी को आगे किया ताकि भारत के मज़दूरों और मेहनतकशों के ख़िलाफ़ वर्ग युद्ध को तेज़ किया जा सके और वैश्विक मंच पर अपनी शक्ति को बढ़ाने की महत्वाकांक्षा को आक्रामक तरीके से आगे बढ़ाया जा सके.

भारतीय अरबपतियों में अडानी के चढ़ाव ने अभूतपूर्व रफ़्तार हासिल की और पिछले साल वे बहुत कम समय के लिए ही सही दुनिया के दूसरे सबसे बड़े अमीर व्यक्ति बन गए. फ़ोर्ब्स की ताज़ा लिस्ट में वे अब दुनिया के 18वें अमीर व्यक्ति रह गए हैं और उनकी कुल अनुमानित संपत्ति घट कर 60 अरब डॉलर हो गई है.

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