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निगरानी गिरोहों और पुलिसिया अंधाधुन हत्याएं, भारत के सबसे बडी आबादी वाले राज्य में बीजेपी के फासीवादी शासन के चरित्र की गवाह

यह हिंदी अनुवाद “Spate of vigilante and police killings highlights fascistic character of BJP’s rule over India’s most populous state” का है, जो मूलतः अंग्रेज़ी में 21 अप्रैल 2023 को प्रकाशित हुआ था.

हाल के सालों में उत्तर भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश में हिंदू सांप्रदायिक निगरानी गिरोहों और पुलिस की गैर न्यायिक अंधाधुन हत्याएं, हिंसक कट्टर हिंदुत्ववादी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार के हत्यारे शासन को फिर से उभार दिया है.

आदित्यनाथ, जो खुलेआम अपने मुस्लिम विरोधी नफ़रत को ज़ाहिर करते रहते हैं, राज्य पर मार्च 2017 से ही शासन कर रहे हैं. एक तरफ उन्होंने “गोरक्षा“ और “लव जिहाद“ से लड़ने के नाम पर मुस्लिमों को धमकाने और हमला बोलने के लिए अपने कट्टर हिंदुत्ववादी समर्थकों को खुली छूट दे रखी है. दूसरी तरफ़ उन्होंने उन लोगों के ख़िलाफ़, जिन्हें वो अपराधी कहते हैं और जिनमें ज़्यादातर मुस्लिम हैं, एक आतंक का माहौल बनाने के लिए पुलिस, न्यायपालिका और विधायिका समेत राज्य के सभी अंगों का इस्तेमाल किया है.

प्रयागराज में अतीक़ अहमद जहां रहते थे, उस इलाक़े को पुलिस ने बैरिकेड कर रखा था. अतीक अहमद एक भारतीय जनप्रतिनिधि थे, जिनपर अपहरण के आरोप थे. ये तस्वीर उस घटना के तुरंत बाद की है जब अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ़ अहमद को एक नाटकीय घटनाक्रम में लाईव टीवी के सामने गोली मार दी गई थी. (एपी फ़ोटो/ राजेश कुमार सिंह) [AP Photo/(AP Photo/Rajesh Kumar Singh)]

पिछले शनिवार को अतीक़ अहमद, जो एक अमीर और ऊंची रसूख रखने वाले बिज़नेसमैन और भारत की संसद के पूर्व सदस्य थे, और उनके भाई अशरफ़ अहमद उर्फ़ ख़ालिद आज़िम को निगरानी गिरोहों के तीन लोगों ने गोली मार दी. ये तब हुआ जब दोनों भाईयों को यूपी पुलिस की भारी मौजूदगी में कोर्ट निर्देशित अनिवार्य मेडिकल चेकअप के लिए ले जाया जा रहा था.

तीनों हत्यारे, बिगड़ैल नौजवान थे जिनकी उम्र 18 से 23 साल के बीच थी. उन्होंने अतीक़ और अशरफ़ पर बिल्कुल क़रीब से 20 गोलियां चलाईं, जबकि पुलिस मूकदर्शक बनी रही. हत्यारे पत्रकार बनकर पीड़ितों के क़रीब पहुंचे थे और ऐसा लगता था कि वो सुपारी किलर थे जिन्हें पर्याप्त हथियार और पैसा मुहैया कराया गया था. हत्या के तुरंत बाद उन्होंने “जय श्रीराम” के नारे लगाए. गौरतलब है कि ये हिंदू कट्टपंथियों का प्रमुख नारा है.

योगी के वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने दावा किया है कि हत्याएं “दैवीय इंसाफ़” थीं. उन्होंने मीडिया से कहा, “सरकार क़ानून व्यवस्था बनाए रखने की कोशिश कर रही है और अपराध को लेकर ज़ीरो टालरेंस में विश्वास रखती है.”

ये बयान और ये तथ्य कि अतीक़ और अशरफ़ की भारी पुलिस बंदोबस्त के बीच हत्या कर दी गई, बताते हैं कि ये राज्य प्रायोजित हत्या थी.

आदित्यनाथ बीजेपी के निरंकुश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के क़रीबी हैं. मोदी ने व्यक्तिगत तौर पर आदित्यनाथ को यूपी का मुख्यमंत्री बनाया और 2021 में उनके शासन की तारीफ़ करते हुए कहा था, “एक समय था जब राज्य में केवल गुंडों का राज होता था. लेकिन अब सभी लुटेरों, माफ़िया लीडर सलाखों के पीछे हैं.” और “आज योगीजी की सरकार ने राज्य के विकास में बड़ी भूमिका निभाई है.”

अतीक अहमद 2004 में समाजवादी पार्टी, जोकि एक जाति आधारित बुर्जुआ पार्टी है और जिसने यूपी की राजनीति में लंबे समय तक मुख्य भूमिका निभाई थी, के टिकट से सांसद चुने गए. उससे पहले 1989 से ही वो यूपी विधानसभा में लगातार पांच बार विधायक बने. उनके भाई अशरफ़ अहमद भी यूपी के पूर्व विधायक थे.

दोनों अहमद बंधुओं की निगरानी गिरोहों द्वारा हत्या के दो दिन पहले, यूपी पुलिस ने अतीक अहमद के 19 साल के बेटे असद और उसके सहयोगी ग़ुलाम (40 वर्ष) की हत्या कर दी थी. 

इनकी हत्याओं के साथ ही यूपी पुलिस अब तक 10 लोगों की हत्या कर चुकी है. उन्होंने 25 फ़रवरी को उमेश पाल की हत्या के लिए सार्वजनिक तौर पर इन्हें ज़िम्मेदार ठहराया था. उमेश पाल, 2005 में बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के विधायक राजू पाल की हत्या के गवाह और खुद वकील भी थे.

उमेश पाल की उनके घर के पास हत्या कर दी गई थी इसके बाद पुलिस ने आरोप लगाए थे. अब लगता है कि ये आरोप असल में मौत की सज़ा का फरमान था. पुलिस ने दावा किया कि दस लोगों ने राजू पाल हत्याकांड में कोर्ट में गवाही देने से रोकने के लिए उमेश पाल की हत्या की साज़िश रची थी.

सच्चाई है कि आदित्यनाथ के आदेश पर यूपी पुलिस ऑन स्पॉट न्याय कर रही है और हिंदू दक्षिणपंथियों और बीजेपी से जुड़े लोगों के फायदे के लिए विरोधी पार्टियों से जुड़े भ्रष्ट बाहुबलियों के नेटवर्क को निशाना बना रही है.

पिछले कई दशकों में यूपी पुलिस ने अतीक़ और अशरफ़ के ख़िलाफ़ 100 से अधिक आपराधिक मुकदमे दर्ज़ किए. लेकिन पिछले मार्च में ही उन्हें 2007 में उमेश पाल के अपहरण में सज़ा हुई. उन्हें उम्र कैद की सज़ा हुई, जोकि भारत में न्यूनतम 14 साल से लेकर अधिकतम ताउम्र हो सकती है.

हालांकि ये अपहरण के मामले में सज़ा भी सवालों के घेरे में है. सीबीआई के एक वरिष्ट अधिकारी अमित कुमार ने कोर्ट को दिए गए अपने लंबे बयान में कहा कि उमेश पाल का अपहरण हुआ था, इस बारे में उन्हें कोई सबूत नहीं मिले. जब राजू पाल हत्याकांड का मामला यूपी पुलिस से सीबीआई को दिया गया तो ये सीबीआई अफ़सर 2016 से 2019 के बीच इसके मुख्य जांचकर्ता थे.

अपनी हत्या के कुछ ही समय पहले अतीक़ अहमद ने भारत के सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था. अपनी अपील में उन्होंने कहा था कि योगी आदित्यनाथ और उनके कई मंत्रियों ने खुलेआम ऐलान किया था कि वो यूपी में माफ़िया राज को “मिट्टी में मिला देंगे”, इसलिए उन्हें और उनके परिवार को सुरक्षा मुहैया कराई जाए. 

सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को सुनने से इनकार कर दिया था और इसकी बजाय कहा था कि वो हाईकोर्ट में दरियाफ़्त करें. सुप्रीम कोर्ट ने भरोसा जताया था कि आदित्यनाथ सरकार उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करेगी. भारत की सर्वोच्च अदालत ने मोदी सरकार की कई सांप्रदायिक उकसावेबाज़ियों और तानाशाही भरी कार्रवाईयों पर मुहर लगाया है. अब अपनी करतूतों पर पर्दा डालने के लिए उसने उस याचिका पर सुनवाई करने का फैसला किया है जिसमें भारी पुलिस के बीच दोनों भाईयों की हत्या की जांच की मांग की गई है.

साल 2022 में चुनाव के बाद मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह में भारतीय प्रधानमंत्री मोदी, योगी आदित्यनाथ के साथ बात करते हुए.(एपी फ़ोटो/ राजेश कुमार सिंह) [AP Photo/(AP Photo/Rajesh Kumar Singh)]

भारत या कार्पोरेट मीडिया या तो आदित्यनाथ की तारीफ़ के पुल बांधता है या यूपी में “क़ानून व्यवस्था” बहाली के बारे में उनके झूठ को नमक मिर्च लगा कर प्रचारित करता है, या उनके फ़ासीवादी चरित्र को ढंकने छुपाने का काम करता है. उसने अतीक़ अहमद को “ख़तरनाक़ डकैत” और “माफ़िया डॉन” के तौर पर बदनाम किया, ताकि निगरानी गिरोह द्वारा की गई उनकी हत्या महज एक तार्किक परिणति के रूप में दिखाने का काम किया जा सके. असल में, अतीक अहमद भारत के राजनीतिक तंत्र से पैदा हुआ एक ऐलानिया भ्रष्टाचारी और गैंगस्टर से अधिक कुछ नहीं था. 

साल 2010 में सीबीआई द्वारा दर्ज की गई एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत के मौजूदा गृह मंत्री अमित शाह गुजरात में सालों तक पुलिस के साथ मिलकर एक उगाही गिराहो चलाते थे. गौरतलब है कि अमित शाह, जो मोदी के दाहिने हाथ हैं और उनके जैसे कुछ और लोग 2002 के मुस्लिम विरोधी गुजरात नरसंहार को भड़काने और उसमें मदद करने के लिए ज़िम्मेदार थे.

आदित्यनाथ शासित बीजेपी राज्य में, बिना मुकदमा चलाए “अपराधियों” को गोली मार देने के लिए पुलिस का इस्तेमाल एक आम बात हो गई है. 14 अप्रैल को मुख्यमंत्री ने छाती ठोंक कर कहा कि यूपी पुलिस ने उनके छह साल के शासन में 183 आरोपियों का एनकाउंटर किया. उन्होंने ये भी दावा 23,000 “अपराधियों” को गिरफ़्तार किया गया है, जिनमें अधिकांश पुलिस के साथ “एनकाउंटर” में गोली लगने से गंभीर रूप से घायल होने पर पकड़ा गया.

ये फासीवादी “क़ानून व्यवस्था” अभियान असल में बीजेपी के राजनीतिक विपक्षी और राज्य के अधिकांश गरीब मुस्लिम अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ राज्य के अपराध को जायज ठहराने के लिए चलाया जा रहा है.

इज़राइल की यहूदीवादी सरकार से सीख लेते हुए आदित्यनाथ, मोदी सरकार के पूर्ण समर्थन से, यूपी में मुसलमानों के घरों और दुकानों पर बुलडोज़र चला रही है. इसराइली यहूदीवादी सरकार रोज़ाना ही फ़लस्तीनियों के घर पर बुलडोज़र चलाती है.

राष्ट्रीय स्तर पर मोदी सरकार की तरह ही यूपी सरकार भी संवेदनशील कहानियों पर काम करने वाले पत्रकारों के पीछे हाथ धो कर पड़ी है. पत्रकारों पर हमले के ख़िलाफ़ कमेटी द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, 2017 में जब आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने तबसे लेकर और फ़रवरी 2022 तक पत्रकारों के उत्पीड़न वाली यूपी में 138 घटनाएं हुईं. 46 पत्रकारों पर हमला हुआ, 66 पर विभिन्न धाराओं में मुकदमे दर्ज किए गए और 12 पत्रकार मारे गए.

आदित्यनाथ मुसलमानों के ख़िलाफ़ उन्हें आतंकवादी बताते हुए नफ़रती भाषण देने के लिए कुख्यात हैं. उनके मनमाने शासन को भारत की अदालतों का भी मूक समर्थन है.

इसने हिंदू निगरानी गिरोहों को नियमित रूप से खुलेआम मुसमानों को डराने और पीटने की खुली छूट दे रखी है ख़ासकर जब हिंदू लड़कियां मुसलमान लड़कों से प्रेम कर बैठती हैं, ऐसे मामलों में हिंदू कट्टरपंथी “लव जिहाद” कह कर इसकी आलोचना करते हैं.

23.9 करोड़ की आबादी वाला यूपी राज्य भारत के सबसे ग़रीब प्रदेशों में से एक है. इसकी जीडीपी महज 26 अरब डॉलर है जोकि अमेरिका के एक छोटे से कनेक्टिकट राज्य के बराबर है. इस राज्य की आबादी में मुस्लिम 20 प्रतिशत हैं और बेहिसाब ग़रीब हैं, हालांकि लंबे समय तक वे ऐसे प्रमुख अल्पसंख्यक रहे हैं जिसने राज्य के सांस्कृतिक वैभव में बेशुमार योगदान किया है.

भारत सरकार द्वारा तय की गई खुद की ग़रीबी रेखा के अनुसार, राज्य की 40 फ़ीसदी आबादी ग़रीब है, जोकि बिहार और झारखंड के बाद यूपी को भारत का तीसरा सबसे ग़रीब राज्य बनाता है. क़रीब 45 प्रतिशत आबादी कुपोषण का शिकार है.

इन सबके बावजूद, अंबानी और बिड़ला जैसे भारत के प्रमुख पूंजीपतियों में राज्य के “विकास” में निवेश करने की होड़ मची है. जैसे उन्होंने मोदी को प्रधानमंत्री के तौर पर हाथों हाथ लिया, इसी तरह वे अपने मुनाफ़े की गारंटी के तौर पर आदित्यनाथ के हिंसक शासन की सराहना करते हैं.

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