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Perspective

यूक्रेन के जवाबी हमले साथ ही सीधी दखलंदाज़ी के और क़रीब पहुंचा नेटो

यह हिंदी अनुवाद अंग्रेजी के मूल लेख 'As Ukrainian counteroffensive begins, NATO moves closer to direct intervention' का है, जो मूलतः 9 जून 2023 को प्रकाशित हुआ था .

फोटो कैप्शनः जुलाई 2022 में मैड्रिड, स्पेन में नेटो सम्मेलन. (एपी फ़ोटो/जोनाथन अर्न्सट) [AP Photo/Jonathan Ernst]

यूक्रेन के जवाबी हमले साथ ही सीधी दखलंदाज़ी के और क़रीब पहुंचा नेटो

रूस द्वारा कब्ज़ाए इलाक़े के ख़िलाफ़ इस हफ़्ते यूक्रेन ने बहुत दिनों की तैयारी के बाद जवाबी हमला बोला है. उसने मज़बूती से पैर जमाए रूसी ठिकानों के ख़िलाफ़ बख़्तरबंद गाड़ियों का पूरा कॉलम झोंक दिया जिसमें नेटो से मिले अत्याधुनिक टैंक भी शामिल हैं. 

रूसी अधिकारियों की ओर से मुहैया कराई गई सूचनाओं के मुताबिक, शुरुआती जवाबी हमले में यूक्रेनी सेना को भारी सैन्य क्षति पहुंची है. इस दावे का यूक्रेन की सरकार ने खंडन नहीं किया है. 

रूसी रक्षा मंत्रालय ने यूक्रेन के इन टैंकों के एक कॉलम का फुटेज जारी किया है जिससे पता चलता है कि बिना हवाई सपोर्ट के खुले मैदान में आगे बढ़ने का उन्हें भारी नुकसान हुआ है. रूसी सरकार के अनुसार, फ़ुटेज में नष्ट हुए जो टैंक दिखाई दे रहे हैं उसमें जर्मनी का लियोपार्ड 2 बैटल टैंक भी है. 

गुरुवार को रूसी रक्षा मंत्री सेर्गेई शोइगू ने कहा कि यूक्रेन की फौजों ने ज़ैपोरिज्झिया के पास हमला बोला लेकिन उन्हें पीछे धकेल दिया गया. इसमें यूक्रेन को 30 टैंक, 11 बख़्तरबंद गाड़ियों और 350 सैनिकों का नुकसान हुआ. उन्होंने कहा कि 24 घंटों में यूक्रेन के 1000 सैनिक मारे गए. 

उसी दिन ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने लिखा कि 'अमेरिकी अधिकारियों ने पुष्टि की है कि आगे बढ़ रही यूक्रेनी फ़ौजों को शुरुआती लड़ाई में नुकसान पहुंचा है', इससे रूसी दावों की सच्चाई पुख़्ता होती है.

महीनों से इस होने वाले जवाबी हमले को अमेरिकी मीडिया में ‘टर्निंग पॉइंट’ की तरह प्रचारित किया जा रहा था. ’टाइम्स’ के ब्रेट स्टीफेंस ने उम्मीद लगा रखी थी कि ये हमला रूस के 'निश्चित हार के साथ उसे कुचल कर रख' देने वाला होगा जबकि डेविड इग्नेशियस ने ’वॉशिंगटन पोस्ट’ में लिखा था कि ये 'युद्ध की धारा मोड़ देगा' और यूक्रेन के लिए 'एक नई सुबह' की भविष्यवाणी की थी.  

अमेरिका -नेटो शक्तियां मान कर चल रही थीं कि जवाबी हमला रूसी सरकार के लिए शर्मनाक हार लेकर आएगा, ऐसे में विलनियस, लिथुआनिया में 11-12 जुलाई को नेटो बैठक आयोजित करने का ये भी एक मकसद था.

असल में विलनियस की मीटिंग की कल्पना ’विजेताओं की बैठक’ के रूप में की गई थी, जिसमें युद्ध के मैदान में यूक्रेन की सफलता, रूस को एक के बाद एक दी गई चेतावनियों का आधार बनेगी. इन चेतावनियों में रूस को 2022 में कब्ज़ा किए गए यूक्रेन के सारे भूभाग को खाली करने के अलावा क्रीमिया को भी छोड़ने की चेतावनी भी शामिल थी. 

ये मांगें उन तैनात नेटो फ़ौजों की ओर से की गई थीं, जो रूस की सीमा के पार अपने हथियार लेकर खड़ी हैं (हाल ही में फिनलैंड नेटो में शामिल हुआ है जिसकी विशाल सीमा रूस से जुड़ी हुई है), जिन्हें अन्य मज़बूत ठिकानों से मदद मिलने की धमकी भी शामिल थी ताकि विजेताओं की मर्ज़ी वाली शांति थोपी जा सके.

भारी झटके खाने और यहां तक कि जवाबी हमले के बिखर जाने के बाद क्या विलनियस बैठक आयोजित की जानी चाहिए? ऐसे समय में इस बात की संभावना अधिक है कि युद्ध में अमेरिका-नेटो के हस्तक्षेप को और व्यापाक पैमाने पर बढ़ाने का ये कहीं एक मौका न बन जाए.  

जिस मीटिंग को ’विजेताओं की बैठक’ माना जा रहा था अब वो ऐसी हताश सरकारों की बैठक में तब्दील हो सकती है जो युद्ध के नतीजे पटलने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए बेताब बैठी हैं.

यूक्रेन को झटका लगने से इस बात का ख़तरा बढ़ गया है कि नेटो शक्तियां बदले में ये घोषणा करें कि वे यूक्रेन के ऊपर नो फ़्लाई ज़ोन लागू करेंगी, जिसमें नेटो के लड़ाकू विमान रूसी विमानों पर हमला कर सकते हैं और इसके साथ ही नेटो के सदस्य देश यूक्रेन में अपनी सेना तैनात करने की भी घोषणा कर सकते हैं. 

ये वही पृष्ठभूमि है जिसके तहत नेटो के पूर्व सेक्रेटरी जनरल एंडर्स रासमसेन ने कहा कि अगर अगली बैठक में नेटो यूक्रेन के साथ किसी तरह का औपचारिक सैन्य गठबंधन नहीं बना पाता है तो नेटो के कुछ सदस्य अपनी फ़ौजों की तैनाती की घोषणा कर देंगे.

अगर नेटो यूक्रेन के लिए किसी स्पष्ट रास्ते पर सहमति नहीं बना सका, तो इसकी पूरी संभावना है कि कुछ देश अपने स्तर पर कार्रवाई का फैसला ले सकते हैं. हम जानते हैं कि पोलैंड यूक्रेन की ठोस मदद कर रहा है. मैं इस संभावना से इनकार नहीं करता है कि पोलैंड और मजबूती से इसमें शामिल होगा और इसके बाद बाल्टिक देश भी इसका अनुसरण करेंगे और इसमें ज़मीन पर सेना तैनात करने का भी फैसला हो सकता है. 

उन्होंने आगे कहाः

मैं समझता हूं कि अगर विलनियस में यूक्रेन के लिए कुछ नहीं निकलता है तो पोलिश युद्ध में शामिल होने और सहमत लोगों का गठबंधन बनाने की गंभीर कोशिश करेंगे.

बाइडन प्रशासन ने पहले ही ये कहते हुए इस तरह की किसी कार्रवाई को खारिज कर दिया कि इससे तृतीय विश्वयुद्ध शुरू हो सकता है और परमाणु ‘महायुद्ध’ का ख़तरा पैदा हो जाएगा. 

लेकिन नेटो के लिए, रूस से किसी मायने में कम नहीं, यह युद्ध वजूद की लड़ाई जैसा होता जा रहा है. बाइ़डन प्रशासन की वैश्विक रणनीति की ये केंद्रीय बात हो चुकी है कि चीन से निपटने के लिए रूस की सैन्य हार बहुत ज़रूरी है. 

जबसे युद्ध शुरू हुआ है नेटो सदस्य देशों ने उन हदों को पार किया है जिन्हें उन्होंने खुद बार बार बनाया था. ‘इकोनॉमिस्ट’ का ताज़ा संस्करण यूक्रेन के जवाबी हमले को समर्पित है और इसके एक लेख में विस्तार से समझाया गया है कि इस युद्ध में अमेरिका-नेटो के व्यापक हस्तक्षेप पर किस कदर विचार चल रहा है. इकोनॉमिस्ट लिखता हैः

अमेरिका के जनरलों का विश्वास बढ़ रहा है कि रूस के लिए ‘रणनीतिक हार’ को संभव बनाया जा सकता है. समय के साथ परमाणु टकराव को लेकर उनका डर कम हो गया है. लगातार पारंपरिक युद्ध वाली सामाग्री सप्लाई करने की उनकी ‘ब्वॉइल्ड फ़्राग रणनीति’ ने इस ख़तरे को काफी कुछ कम कर दिया है. सीमा के पास बेलगोरोद या क्रेमलिन पर छोटे ड्रोन हमले के मार्फत रूस को उकसा कर यूक्रेन ने भी उसकी खोखली धमकियों का अंदाज़ा लगा लिया है....

ये लक्ष्य ख़ासकर अमेरिकी सेना के योजनाकारों को लुभावना लग रहा है क्योंकि वो लंबे समय से एक साथ दो युद्ध लड़ने का सपना देख रहे थे: यूरोप में रूस के साथ और एशिया में चीन के साथ. अगर रूस की ओर से ख़तरे को काफी हद तक कम कर दिया जाए, भले ही कुछ सालों के लिए, तो चीन से मुकाबला करने के लिए उसके पास अधिक संसाधन होगा, जोकि इस समय अमेरिका की सबसे बड़ी सैन्य चिंता बन चुकी है. 

अमेरिका रूस की सैन्य हार के लिए जितना ही बेताब हो रहा है, वो उतना ही हड़बड़ी वाली कार्रवाईयों को अंजाम दे रहा है.

अभी तक नेटो की ओर से बढ़ती उकसावे वाली कार्रवाईयों को लेकर रूसी सरकार ने कोई कड़ी प्रतिक्रिया नहीं दी है क्योंकि वो इस टकराव के शांतिपूर्ण समाधान की उम्मीद कर रहा है.

लेकिन नेटो द्वारा जैसे जैसे हर बार ‘लाल रेखा’ को पार किया जाता है, पुतिन सरकार पर रूसी फौज के अंदर से जवाबी कार्रवाई का दबाव बढ़ता जाता है.  

नेटो शक्तियां एक के बाद एक ऐसी कार्रवाईयों में शामिल हैं जिससे व्यापक ज़मीनी युद्ध ही नहीं बल्कि परमाणु युद्ध का ख़तरा भी बढ़ गया है. वे चाहे मैदान-ए-जंग में हारें या जीतें, वो ऐसे रास्ते पर जाने के लिए प्रतिबद्ध हैं जिसका पूरी मानवता के लिए विनाशकारी नतीजा होगा. 

बुनियादी तौर पर यह युद्ध दो मोर्चों पर लड़ा जा रहा है. ये युद्ध केवल पूर्व सोवियत संघ के सबसे बड़े घटक के ख़िलाफ़ ही नहीं लड़ा जा रहा है, जिसे नेटो शक्तियां फौजी स्तर पर घुटने के बल लाना चाहती हैं और उस पर दबदबा कायम करना चाहती हैं, बल्कि अपने देश में ये मज़दूर वर्ग के ख़िलाफ़ भी है. समाजवाद के लिए संघर्ष के एक महत्वपूर्ण बिंदु के रूप में साम्राज्यवादी युद्ध के ख़िलाफ़ संघर्ष में हर देश में मज़दूरों का एकजुट होना ज़रूरी हो गया है.

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