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न्यूज़क्लिक के संपादक और मैनेजर पर जुल्म ढाहने के लिए मोदी सरकार कर रही आतंकवाद निरोधी क़ानूनों का इस्तेमाल

फासीवादी सरकार के एक और कदम के रूप में भारत की नरेंद्र मोदी नीत सरकार, वामपंथी समाचार वेबसाइट न्यूज़क्लिक को धमकाने और चुप कराने के लिए बुनियादी मानवाधिकारों को भी कुचल रही है. वेबसाइट से जुड़े दर्जनों लोगों के घरों और वेबसाइट के कार्यालयों पर मंगलवार को पुलिसिया छापों के बाद, पुलिस ने न्यूज़क्लिक के संस्थापक और संपादक प्रबीर पुरकायस्थ और एचआर मैनेजर हेड अमित चक्रबर्ती को आतंकवाद के जाली आरोपों में गिरफ़्तार कर लिया.

इस समय जेल में बंद पुरकायस्थ और चक्रबर्ती पर हिटलरशाही गैरक़ानूनी गतिविधि निरोधी क़ानून (यूएपीए) के तहत आरोप लगाए गए हैं. यह क़ानून सरकार को अधिकार देता है कि वो किसी व्यक्ति को बिना अदलाती सुनवाई और/या उनके खिलाफ़ बिना किसी ठोस सबूत के महज मनगढ़ंत आरोपों के आधार पर सालों तक जेल में बंद रख सके. 

जबसे 2014 में मोदी की हिंदू श्रेष्ठतावादी भारतीय जनता पार्टी की सरकार सत्ता में आई है उसने यूएपीए का धड़ल्ले से इस्तेमाल किया है, जो सरकार को संवैधानिक प्रक्रिया को बाइपास करने की आज़ादी देता है और सरकार के विरोधियों को दबाने के लिए थोक के भाव भारत के राजद्रोह क़ानूनों का इस्तेमाल करता है.

ताज्जुब नहीं है कि, भारतीय अदालतें, जिन्होंने मोदी सरकार के इससे भी भोंड़े मानवाधिकार हनन वाले कारनामों पर बार बार मुहर लगाई है, उन्होंने ही पुरकायस्थ और चक्रबर्ती पर यूएपीए लगाने की इजाज़त दी और कम से कम सात दिनों के लिए पुलिस हिरासत में भेजने का आदेश दिया.  

प्रशासन ने आरोप लगाया है कि 'न्यूज़क्लिक को चीन से फ़ंड मिल रहा है', यह जानबूझकर उकसावे वाला दावा है, क्योंकि भारत सरकार ने चीन को अपना मुख्य रणनीतिक ख़तरा मान लिया है और चीन को घेरने के लिए अमेरिका के साथ एक स्वाभाविक सैन्य गठबंधन का हिस्सा बन चुका है. 2020 से ही बीजिंग और नई दिल्ली, सीमा विवाद को लेकर आमने सामने हैं और दोनों देशों ने मोर्चे पर हज़ारों सैनिक, टैंक और युद्धक विमान तैनात कर दिए हैं. 

भारत सरकार ने, गृह मंत्रालय के मातहत आने वाली दिल्ली पुलिस और वित्त मंत्रालय के प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के मार्फत वेबसाइट पर 'चीनी प्रोपेगैंडा' फैलाने और भारत की 'क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता को भंग करने की साज़िश' रचने का आरोप लगाया है. 

न्यूज़क्लिक धुर दक्षिणपंथी मोदी सरकार के निशाने पर है क्योंकि ये उन चंद प्रमुख वेबसाइटों में से है जो मोदी सरकार और उसके लगातार सांप्रदायिकता उकसावेबाज़ी की कड़ी आलोचक हैं. न्यूज़क्लिक ने मोदी और उनके करीबी अरबपति दोस्त गौतम अडानी के बीच गठजोड़ को भी उजागर किया है.

तीन अक्टूबर, मंगलवार को तड़के सैकड़ों पुलिसकर्मियों ने पूरे भारत में 'अपराधियों को पकड़ने की शैली' में कई पत्रकारों, इतिहासकारों और शोधकर्ताओं के घरों और दफ़्तरों पर छापे मारे और पूछताछ की. इन लोगों को इसलिए निशाना बनाया गया क्योंकि उन्होंने न्यूज़क्लिक के लिए लेख लिखे थे या किसी रूप में उससे जुड़े थे.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, दिल्ली में 88 जगहों और अन्य राज्यों में सात जगहों पर छापेमारी की गई. 

नई दिल्ली में छापेमारी की कार्रवाई, आर्थिक अपराध मामले देखने वाली दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल और ईडी के द्वारा की गई. ईडी को मनी लॉन्ड्रिंग समेत वित्तीय अपराधों की जांच के लिए एक पुलिस एजेंसी के रूप में स्थापित किया गया है.

कथित तौर पर पुलिस ने हिरासत में लिए गए लोगों के साथ औसतन आठ घंटे तक पूछताछ की और उनके लैपटॉप, मोबाइल फ़ोन और हार्ड डिस्क समेत अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को ज़ब्त कर लिया.  

छापेमारी के पीछे राजनीतिक मंशा को ज़ाहिर करते हुए पुलिस ने जिन लोगों से पूछताछ की उनसे जानना चाहा कि क्या उन्होंने 2020-21 के किसान विद्रोह, फ़रवरी 2020 में दिल्ली में बीजेपी के द्वारा भड़काए गए मुसलमानों पर हमले या कोविड-19 महामारी में सरकार की विनाशकारी कार्रवाईयों को कवर किया था.

जिन लोगों से पूछताछ की गई उनमें पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ भी शामिल थीं. भारत के सर्वोच्च न्यायालय के उकसावे पर सीतलवाड़ पहले से ही, 2002 के मुस्लिम विरोधी गुजरात जनसंहार में तत्कालीन मोदी नीत गुजरात सरकार और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की भूमिका को उजागर करने की कोशिशों के लिए, मनगढ़ंत सबूतों के आधार पर आपराधिक मामलों का सामना कर रही हैं.

प्रशासन ने न्यूज़क्लिक के कार्यालयों को सील कर दिया है. वेबसाइट, जो अभी भी चल रही है, उसने मंगलवार को हुए छापों के बाद एक बयान में पुलिस पर 'क़ानूनी प्रक्रियाओं को दरकिनार' करने के आरोप लगाए. बयान में कहा गया है, 'हमें एफ़आईआर की कॉपी नहीं दी गई या जिस आधार पर आरोप लगाए गए उसके बारे में विशेष कुछ भी नहीं बताया गया. न्यूज़क्लिक के कार्यालयों और कर्मचारियों के घरों से इलेक्ट्रानिक उपकरणों को ज़ब्त कर लिया गया और किसी क़ानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया, जैसे सीज़र मेमो, ज़ब्त किए गए डेटा का हैश वैल्यू या यहां तक कि डेटा की कॉपी भी नहीं दी गई. हमें रिपोर्टिंग जारी रखने से रोकने की ज़बरदस्ती कोशिश में न्यूज़क्लिक के कार्यालय को भी सील कर दिया गया.' 

सरकार विदेशी फ़ंड पाने के लिए मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों पर 2021 से ही न्यूज़क्लिक के पीछे पड़ी हुई है. और दो साल की तथाकथित जांच के बाद भी, न तो दिल्ली पुलिस और ना ही ईडी अदालत में एक आधिकारिक शिकायत तक कर पाने में सक्षम हुई है, जबकि वे न्यूज़क्लिक के रिकॉर्ड्स की छानबीन कर चुके हैं. 

न्यूज़क्लिक पर हमले की निंदा करने के लिए न्यूयॉर्क टाइम्स बिल्डिंग के बाहर कार्यकर्ताओं और पत्रकारों का प्रदर्शन. [Photo: Radio Free Amanda/Twitter or X] [Photo: Radio Free Amanda/Twitter or X]

न्यूज़क्लिक पर 'चीनी प्रोपेगैंडा फैलाने' का आरोप, न्यूयॉर्क टाइम्स में पांच अगस्त को छपे एक फर्जी और निशाने पर लेने वाले चीन विरोधी लेख के बाद लगा, जिसमें 'चीनी हितों को प्रसारित करने वाले वित्तीय नेटवर्कों' का कथित तौर पर 'खुलासा' करने का दाावा किया गया था. टाइम्स के अनुसार, 'इस तरह के 'चीनी हितों के प्रसार' वाले प्रोपेगैंडा में चीन के खिलाफ़ अमेरिकी साम्राज्यवाद की चौतरफा रणनीतिक आक्रामकता और युद्ध की तैयारी की आलोचना शामिल है.'

मजे की बात है कि टाइम्स के लेख में एक अमेरिकी आईटी एक्सपर्ट और बिज़नेसमैन नेविले रॉय सिंघम का ज़िक्र है, जो 'धुर वामपंथी उद्देश्यों के लिए एक सामाजवादी दानदाता के रूप में जाने जाते हैं और चीनी सरकार के साथ मिलकर काम करते हैं.' इस लेख के अनुसार, सिंघम ने न्यूज़क्लिक को आर्थिक मदद दी, जिसने 'अपनी कवरेज में चीनी सरकार के हितों को जगह दी.' 

अमेरिका के कथित प्रतिष्ठित अख़बार में अमेरिकी ख़ुफिया एजेंसी निर्देशित इस घिनौने 'खुलासे' ने मोदी सरकार के हाथ में न्यूज़क्लिक पर हमला तेज़ करने का हथियार दे दिया और इसके दो सबसे वरिष्ठ लोगों पर यूएपीए के तहत आरोप थोप दिया गया.

पुलिस, न्यूज़क्लिक संपादक पुरकायस्थ पर एक और बदनाम यूएपीए मामला बनाने की कोशिश कर रही है, जिसे भीमा कोरेगांव केस के रूप में जाना जाता है. इसमें सरकार विरोधी लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के एक समूह, जिनपर बीजेपी और पुलिस ने 'अरबन नक्सल' का लेबल लगा दिया है, सांप्रदायिक हिंसा भड़काने और प्रतिबंधित कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (माओवादी) के लिए काम करने के आरोप लगाए गए हैं. अदालती दस्तावेजों में कथित तौर पर पुलिस ने न्यूज़क्लिक के संपादक और भीमा कोरेगांव (या एलगार परिषद) केस में आरोपी नागरिक अधिकार कार्यकर्ता गौतम नौलखा से दोस्ती पर सवाल उठाए हैं. इसमें ये भी दावा किया गया है कि नौलखा न्यूज़क्लिक में शेयरहोल्डर हैं और न्यूज़क्लिक के मार्फ़त उन्हें धन मिला था.

'पुलिसिया स्टेट वाली' शैली का सहारा लेने के लिए मोदी सरकार और प्रेस पर मोदी के हमले में मदद करने में घटिया भूमिका निभाने वाले न्यूयॉर्क टाइम्स की चौतरफ़ा तीखी आलोचना हो रही है. न्यूज़क्लिक के दमन और टाइम्स की भूमिका के ख़िलाफ़ मंगलवार को न्यूयॉर्क टाइम्स के मैनहट्टन कार्यालय के बाहर प्रदर्शनकारियों ने विरोध प्रदर्शन किया. 

इसके अलावा नई दिल्ली और दक्षिण भारत के हैदराबाद में सैकड़ों पत्रकारों और कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया. 

प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया, डिजीपब न्यूज़ इंडिया फ़ाउंडेशन और इंडियन वुमेंस प्रेस क्लब समेत 15 भारतीय प्रेस संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश को चिट्ठी लिख कर अपील की है कि वो संवैधानिक रूप से प्रदत्त अधिकारों की रक्षा करने के लिए हस्तक्षेप करें. उन्होंने लिखा, 'पत्रकारों को कड़ी आपराधिक कार्रवाई का निशाना बनाना, क्योंकि सरकार उनके राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मामलों के कवरेज से ख़ुश नहीं है, ये प्रेस की आवाज़ दबाने की कोशिश है, ये वही तत्व है जिसे आपने आज़ादी के लिए ख़तरा बताया था.'

अपने पूरे नौ सालों के कार्यकाल में मोदी सरकार ने अपनी करतूतों की आलोचना करने वाले पत्रकारों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं और यहां तक कि विदेशी समाचार संस्थाओं को चुप कराने के लिए दमनकारी तरीकों का इस्तेमाल किया है.

सबसे महत्वपूर्ण घटना इसी साल फ़रवरी में हुई, जब बीबीसी पर इनकम टैक्स अधिकारियों ने सघन छापेमारी की. बीबीसी तब निशाने पर आया जब उसने फ़रवरी 2002 में, कम से कम 2000 निर्दोष मुस्लिमों के कत्लेआम को भड़काने और मदद करने में तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी की केंद्रीय भूमिका को लेकर एक डॉक्युमेंट्री प्रसारित की. 

इसी तरह जुलाई 2021 में इसी इंडियन टैक्स अधिकारियों ने टीवी चैनल भारत समाचार और हिंदी अख़बार दैनिक भास्कर के दफ़्तरों पर टैक्स चोरी के आरोप में छापेमारी की. इन मीडिया संस्थानों ने कोविड-19 माहामारी के दौरान सरकार की आपराधिक निष्कृयता के कारण भयावह हालात की पोल खोली और इसराइली पेगासस जासूसी सॉफ़्टवेयर से कार्यकर्ताओं, राजनीतिज्ञों और कार्यकर्ताओं पर सरकार द्वारा की जा रही लगातार जासूसी की ओर ध्यान आकर्षित किया, उसके बाद से ये संस्थान सरकार के रडार पर आ गए थे.

यहां तक कि मुख्यधारा कि समाचार पत्रिका और वेबसाइट आउटलुक को इसी हफ़्ते ये स्वीकार करने पर मजबूर होना पड़ा कि, 'पिछले दशक के दौरान असंख्य भारतीय पत्राकरों को जांच एजेंसियों के द्वारा निशाना बनाया गया और कई को जेल में बंद कर दिया गया. इन पत्रकारों के ख़िलाफ़ कथित आतंकवादी लिंक या गैरक़ानूनी फ़ंडिंग और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के आरोप लगाए गए, जबकि ये पत्रकार अपने विस्तृत रिपोर्ताज के लिए जाने जाते थे, जोकि आम तौर पर सरकार के बहुत पक्ष में नहीं लिखे गए होते थे.'

प्रेस पर मोदी सरकार का हमला ख़ासकर कश्मीर में बहुत तीखा था. वहां के पत्रकार नियमित रूप से गिरफ़्तार किए जाते हैं और ऐसा कुछ भी लिखने के लिए उनपर आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाता है जो मोदी सरकार की कहानी की पोल खोलता हो. अक्टूबर 2020 में पुलिस ने बहुत पुराने कश्मीर टाइम्स के श्रीनगर के दफ़्तर को सील कर दिया. कम से कम पांच कश्मीर पत्रकार इस समय अनिश्चित काल के लिए यूएपीए के तहत जेल के अंदर हैं- आसिफ़ सुल्तान, फ़हद शाह, सज्जाद गुल, मानन गुलज़ार डार और इरफ़ान मेहराज. 

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