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भारतीय सुरक्षा बलों ने एक किसान को गोली मारी, किसान प्रदर्शन का तीसरा हफ़्ता

3 March, 2024 को अंग्रेजी में प्रकाशित Indian security forces shoot one farmer dead as protest nears three-week mark लेख का हिंदी अनुवाद है.

भारत में हज़ारों किसानों के प्रदर्शन का तीसरा सप्ताह समाप्त हो रहा है और सरकार के बर्बर दमन की लहर में एक किसान मारा गया जबकि क़रीब 200 किसान घायल हो गए हैं. यह दमन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिंदू बर्चस्ववादी भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने थोपा है, जिसमें उत्तर भारत की कई राज्य सरकारों ने सक्रिय मदद की.

13 फ़रवरी को हज़ारों किसानों ने, ख़ासतौर के पंजाब के, “दिल्ली चलो” मार्च का आह्वान किया था. उनकी मांगों में एमएसपी की क़ानूनी गारंटी और कृषि कर्ज माफ़ी शामिल है. इस प्रदर्शन की अगुवाई दो किसान यूनियनें कर रही हैं- किसान मज़दूर मोर्चा (केएमएम) और समयुक्त किसान मोर्चा (अराजनैतिक).

भारतीय और विदेशी पूंजी के एक प्रतिबद्ध राजनीतिक प्रतिनिधि के रूप में मोदी सरकार ने इसके जवाब में बर्बर दमन की कार्रवाई की और किसानों को पंजाब हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर पंजाब की तरफ़ बैठने पर मजबूर कर दिया. यह बॉर्डर दिल्ली से 200 किलोमीटर दूर है. बी.जे. पार्टी की सरकार ने हज़ारों पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों को तैनात कर, कंक्रीट के बड़े बड़े ब्लॉक और कंटीले तारों से कई स्तरों वाले बैरिकेड खड़े कर, इंटरनेट और मोबाइल सेवाओं पर प्रतिबंध लगाकर और किसान प्रदर्शन से जुड़े एक्स (पूर्व में ट्विटर) के अकाउंट को बंद करने के आदेश जारी कर और ड्रोन से उन पर आंसू गैस के गोले गिराकर एक तरह से किसानों के ख़िलाफ़ युद्ध की घोषणा कर दी है.

14 फ़रवरी 2024 को प्रदर्शनकारी किसान दिल्ली से लगभग 200 किमी दूर, पंजाब और हरियाणा के शंभू बॉर्डर के पास इकट्ठा थे. उस दिन, प्रदर्शनकारी किसान लगातार दूसरे दिन पुलिस से भिड़ गए. हजारों की संख्या में लोगों ने अपनी फसल के लिए एमएसपी की गारंटी लागू करने की मांग को लेकर राजधानी नई दिल्ली तक मार्च करने की कोशिश की. (एपी फोटो/राजेश सच्चर) [AP Photo/Rajesh Sachar]

किसान प्रदर्शन को लेकर मोदी सरकार की ये हताशा वाली कार्रवाईयां इस डर से पैदा हुई हैं कि यह प्रदर्शन सरकार की निवेश समर्थक नीतियों और वॉशिंगटन के साथ मिलकर चीन विरोधी गठजोड़ बनाने के ख़िलाफ़ एक व्यापक सामाजिक विरोध का केंद्र बिंदु बन सकता है. यह डर और बड़ा हो गया है क्योंकि मोदी और उनकी बी.जे. पार्टी अगले अप्रैल महीने में होने वाले लोकसभा चुनावों में लगातार तीसरी बार कार्यकाल पाना चाह रही है. मई 2014 से ही सत्ता में रही मोदी सरकार भारतीय मेहनतकश आबादी को किए गए अपने झूठे चुनावी वायदों को पूरा करने में विफल रही है, जिसमें 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का भी वायदा भी था. हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था और बड़ी हुई है लेकिन आबादी का एक बड़ा हिस्सा ग़रीबी और भयंकर आर्थिक असुरक्षा के दलदल में धंसी रही क्योंकि आमदनी और अमीरी में दिखने वाली वृद्धि चंद पूंजीपति संभ्रांतों और उच्च मध्य वर्ग की झोली में चली गई.

किसान यूनियनें 'दिल्ली चलो' मार्च के जारी रखने की अपनी अगली योजना पर 29 फ़रवरी को फैसला करने वाली थीं. हालांकि उस दिन एक संक्षिप्त बयान जारी कर यूनियनों ने एलान किया कि वो सुरक्षा बलों की गोली से मारे गए युवा किसान शुभकरण सिंह की मौत का शोक मना रहे हैं और तीन मार्च तक अपनी भविष्य की योजनाओं के बारे में घोषणा करेंगे. शुभकरण का अंतिम संस्कार उनकी मौत के एक सप्ताह बाद उसी दिन उनके बल्लोह गांव में किया गया. इससे पहले यूनियनें अड़ी रहीं कि किसान की मौत के लिए ज़िम्मेदार लोगों के ख़िलाफ़ प्रशासन जबतक मामला दर्ज नहीं करता तबतक अंतिम संस्कार नहीं होगा.

लेकिन यूनियनों द्वारा अपने अगले कदम की घोषणा में देरी सिर्फ शुभकरण की मौत का मातम मनाना ही नहीं हैं. सरकार ने किसानों की मुख्य मांगों को खारिज कर दिया है और संकेत दिया है कि अगर वे दिल्ली की ओर मार्च करते हैं तो उन्हें रोकने के लिए राज्य बड़े पैमाने पर हिंसा का इस्तेमाल करने के तैयार है, इन हालात में किसान यूनियनें असमंजस में हैं और आगे क्या कदम उठाया जाए, इस पर उनमें मतभेद है.

21 फ़रवरी को सिर में रबर की गोली लगना शुभकरण की मौत का कारण था. द वायर से बातचीत में उनके चाचा बूटा सिंह ने हरियाणा राज्य सरकार पर किसानों को दिल्ली जाने से रोक कर अराजकता फैलाने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, “शुभ ज़िंदा होता अगर किसानों को शांतिपूर्वक मार्च करने दिया जाता.” बूटा सिंह के अनुसार, शुभकरण का परिवार कर्ज में बुरी तरह फंसा हुआ है और उनके पास 2.5 एकड़ खेती की ज़मीन है. उन्होंने कहा, “अपने बूढ़े होते माता पिता और दो बहनों का ख्याल रखने के लिए शुभ ही एकमात्र हमारी उम्मीद था.”

मंगलवार, 27 फ़रवरी को संयुक्त किसान मोर्चा ने 'डब्ल्यूटीओ छोड़ो दिवस' मनाया और मांग की कि भारत के कृषि ङेत्र को वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाइजेशन के क़ानूनों का निशाना नहीं बनाया जाए. संयुक्त किसान मोर्चा के अनुसार, इस प्रदर्शन में किसानों ने राज्य और राष्ट्रीय राजमार्गों पर बिना ट्रैफ़िक जाम किए अपने ट्रैक्टर किनारे खड़े कर दिए थे. यह प्रदर्शन पूरे भारत के 400 ज़िलों में हुआ. एसकेएम नेता दर्शनपाल ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “किसानों को यह अहसास हो गया है कि डब्ल्यूटीओ के साथ भारत के समझौते के कारण कृषि क्षेत्र को ख़तरा है.”

आम आदमी पार्टी की पंजाब रज्य सरकार किसानों के बर्बर दमन में हरियाणा की बी.जे. पार्टी की सरकार के साथ गठजोड़ कर रही है. उसने उन पुलिस कर्मियों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करने से मना कर दिया जिन पर प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि उनकी गोली से शुभकरण की मौत हुई. यह आम आदमी पार्टी की सरकार के निवेश समर्थक चरित्र की पोल खोलती है, जबकि वो दिखावा करती है कि किसानों के साथ उसकी सहानुभूति है.

युवा किसान की हत्या को लेकर उपजे आक्रोश को शांत करने के लिए आप सरकार ने 10 लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने और शुभकरण के परिवार के सदस्य को नौकरी देने की घोषणा की. हालांकि किसान यूनियन नेताओं ने शुरू में इस अनुग्रह राशि को ये कहते हुए ख़ारिज कर दिया कि राज्य सरकार ने उन सुरक्षा बलों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज करने से इनकार कर दिया, जो हत्या में शामिल थे.

पुलिसिया बर्बरता में कम से कम 9 किसान बुरी तरह घायल हुए हैं और कुछ को कई जगह फ्रैक्चर आए हैं. जबसे प्रदर्शन शुरू हुआ है, घायलों की संख्या बढ़कर 180 हो गयी है. पटियाला ज़िला सिविल सर्जन रमिंदर कौर ने द वायर को बताया कि अधिकांश चोटें ड्रोन से आंसू गैस गिराए जाने या रबर की गोलियों से आई हैं. उन्होंने कहा कि इसके अलावा तीन अन्य लोगों की मौत की भी ख़बरें हैं. प्रदर्शन स्थल पर दिल का दौरा पड़ने से दो किसानों की मौत हुई और एक अन्य किसीन की मौत के पीछे गोली लगने का संदेह है.

किसानों के ख़िलाफ़ बर्बर दमन की झकल दिखाते हुए हरियाणा पुलिस ने एक संगरूर के रहने वाले एक अन्य 32 साल के किसान प्रीतपाल सिंह को उठा लिया और उनकी बुरी तरह पिटाई कर दी. उन्हें बोरी मैं डालकर दम घोंटने की कोशिश की गई. इस समय हरियाणा के रोहतक में पीजीआई अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है. हड्डियां टूटने के अलावा उन्हें कई गंभीर चोटें हैं. न्यूज़लॉंड्री वेबसाइट से बात करते हुए प्रीतपाल की पत्नी अमनदीप कौर ने कहा, “पिटाई से उनका चेहरा बुरी तरह बिगड़ गया है. उनके दांत टूट गए हैं. दो दिन बाद भी उनकी नाक से खून बह रहा है. उनके सिर में भी गंभीर चोटें आई हैं.” क्रूर पुलिसिया हिंसा बरपा कर मोदी और भारतीय सत्ताधारी वर्ग केवल किसानों को ही नहीं बल्कि भारत के दूसरे हिस्से में पूरे मज़दूर वर्ग को भी साफ़ संदेश देना चाहते हैं कि बी.जे. पार्टी की सरकार अपने निवेश समर्थक नीतियों के किसी भी विदोध को बर्दाश्त नहीं करेगी.

21 फ़रवरी को हुए भिड़ंत के बाद, जिसमें शुभकरण सिंह की मौत हुई, बी.जे. पार्टी की हरियाणा राज्य सरकार ने यूनियन नेताओं को नेशनल सिक्यूरिटी एक्ट (एनएसए) 1980 लगाने की धमकी दी. एनएसए के तहत राज्य या केंद्र सरकार को अधिकार है कि वो किसी भी व्यक्ति को एक साल या इससे अधिक समय तक हिरासत में ले सकती है अगर उसके पास ये संदेह करने का कारण है कि वो राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने वाली कार्रवाई में संलिप्त हो सकता है. लेकिन तीखी आलोचनाओं और शोक मना रहे किसानों में इस चेतावनी के ख़िलाफ़ गुस्से को देखते हुए सरकारी अधिकारियों को पीछे हटना पड़ा और अपनी धमकी को वापस लेना पड़ा. उन्होंने उन 16 किसान नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी रिहा कर दिया जिन्हें हिरासत में लिया था.

इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए हरियाणा सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्वीकार किया कि एनएसए को लागू न करने की वजह यह थी कि यह 'अनुत्पादक साबित होता और केवल किसानों ही नहीं बल्कि इससे समाज के अन्य वर्गों में भी आक्रोश पैदा होता.'

किसानों को प्रदर्शन बंद करने का लालच देने के लिए, सरकार ने अपने क्रूर दमन के साथ कुछ मामूली रियायतें जोड़ दीं.

किसान नेताओं और सरकार के मंत्रियों के बीच 18 फ़रवरी को चौथे दौर की बातचीत के दौरान बी.जे. पार्टी की केंद्र सरकार ने 'कांट्रैक्ट आधारित' वायदा करने की पेशकश की, जिसके तहत विभिन्न सरकारी एजेंसिया पांच फसलों की एमएसपी पर ख़रीद करेंगी- दालों में अरहर, तुअर और उड़द और मक्का और कपास. ये जानते हुए कि प्रदर्शनकारी किसान इस तरह के “वायदों” को खारिज कर देंगे, जोकि उनकी मांगें पूरी नहीं करता और संयुक्त किसान मोर्चा ने इसे “सीधे तौर पर ख़ारिज” कर दिया, जिस पर सरकार जल्द ही पीछे हट गई. न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी करने की बजाय बी.जे. पार्टी से आने वाले कृषि मंत्री ने कहा कि पांच फसलों की खरीद “अनुबंध के आधार” पर की जाएगी. इस पर केएमएम संयोजक सरवन सिंह पंढेर ने कहा, “सरकार का असली मंशा जगज़ाहिर हो गई.”

किसानों ने कहा कि सरकार द्वारा नियुक्त स्वामिनाथन आयोग की सिफ़ारिशों के मुताबिक एमएसपी को पूरी तरह लागू करने से कम किसी भी चीज को स्वीकार नहीं करेंगे. कई सालों के सलाह मशविरे के बाद आयोग ने 2006 में सुझाव दिया कि एमएसपी में सभी तरह की लागत को शामिल करना चाहिए और इसमें खेती के किराए, चाहे उसका मालिकाना जोतने वाले का ही क्यों न हो, को भी शामिल करना चाहिए. इस तथ्य को देखते हुए कि बी.जे. पार्टी सरकार ने 2020-2021 में पहले दौर के 'दिल्ली चलो' के दौरान दिए गए अपने कई बड़े वायदों को पूरा करने में विफल रही, इसलिए किसान इस बार बीजेपी द्वारा किए जाने वायदों को संदेह से देख रहे हैं.

दशकों से भारत की सरकारें, चाहे वो बी.जे. पार्टी की रही हों या कांग्रेस पार्टी की, या फिर विभिन्न जाति और जातीय राष्ट्रीयताओं वाली पार्टियों की, इन्होंने कृषि क्षेत्र को व्यावसायिक बनाने के लिए काम किया है, जबकि छोटे किसानों को दिए जाने वाले समर्थन में कटौती की, वो चाहे उर्वरकों पर सब्सिडी हो या अन्य लागत.

चूंकि किसान यूनियनों के नेता कह रहे हैं कि वो ट्रेड यूनियनों और अन्य किसानों को लामबंद करके प्रदर्शन को तेज कर रहे हैं, ये कार्रवाईयां इस दिवालिया नज़रिए पर आधारित हैं कि सरकार पर दबाव डाला जा सकता है. असल में मोदी सरकार किसानों को कोई भी गंभीर रियायत नहीं देगी, क्योंकि ऐसा करके उसे अपनी निवेश समर्थक नीति से अलग होना पड़ेगा और इससे व्यापक सामाजिक विरोध जोर पकड़ेगा, ख़ासकर मज़दूर वर्ग की ओर से.

कांग्रेस और स्टालिनवादी कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) समेत विपक्षी राजनीतिक पार्टियां किसानों का समर्थन करने का दिखावा कर रही हैं ताकि इस प्रदर्शन का इस्तेमाल कर इंडियन नेशनल डेवपलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस (इंडिया) गठबंधन के पक्ष में माहौल बनाया जा सके. परिवार वादी कांग्रेस पार्टी, जो हाल तक भारतीय सत्ताधारी वर्ग की चहेती पार्टी हुआ करती थी, उसकी अगुवाई में इंडिया गठबंधन पूंजीपति वर्ग को मोदी की बीजेपी के बरक्श एक दक्षिणपंथी सरकार का विकल्प देने का वादा करती है. जोकि निवेश समर्थक सुधारों और भारत-अमेरिकी सैन्य-रक्षा गठबंधन के मामले में बीजेपी से कम प्रतिबद्ध नहीं है.

2020-2021 में साल भर तक चले किसान प्रदर्शन के दौरान सीपीएम किसानों के लिए समर्थन दिखा रही थी, जबकि मज़दूर वर्ग को किनारे लगाने की वो चालें चल रही है. सबसे बढ़कर तो स्टालिनवादी, मज़दूर वर्ग को एक स्वतंत्र ताक़त के रूप में हस्तक्षेप करने से रोकना चाहते हैं, जो मोदी शासन और पूरे भारतीय शासक वर्ग के ख़िलाफ़, समाजवादी नीतियों के प्रति प्रतिबद्ध मज़दूरों की सरकार के लिए, एक जन आंदोलन में किसानों, सभी ग्रामीण मेहनकशों और खेतिहर मज़दूरों को इकट्ठा कर संघर्ष करना चाह रहे हैं. ख़ास तौर पर एसकेएम द्वारा बुलाए गए 16 फ़रवरी को ग्रामीण बंद के दौरान ये दिखा भी जिसमें सीपीएम से संबद्ध सेंट्र ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू) के नेतृत्व वाली केंद्रीय ट्रेड यूनियनों का संयुक्त प्लेटफ़ॉर्म बी शामिल था. मज़दूर वर्ग को इंडिया गठबंधन की छतरी के नीचे लाने के स्टालिनवादी नज़रिये का ही मुजाहिरा करते हुए सीटू अध्यक्ष के हेमंता ने कहा कि 'इस बंद का मकसद 2024 के चुनावों में बी.जे. पार्टी को हराना है.'

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