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श्रीलंका में ग़रीबी और गैरबराबरी की खाई में बेतहाशा वृद्धि, विश्व बैंक की रिपोर्ट

यह हिंदी अनुवाद अंग्रेजी के मूल लेख का है, World Bank report shows drastic increases in Sri Lanka’s poverty and inequality जो मूलतः 7 अप्रैल 2024 को प्रकाशित हुआ था I

पिछले सप्ताह श्रीलंका पर वर्ल्ड बैंक यानी विश्व बैंक की रिपोर्ट आई जिसमें खुलासा किया गया कि पिछले चार सालों में ग़रीबी में बेतहाशा वृद्धि हुई है- यह 2019 में 11 प्रतिशत से बढ़कर 2024 में लगभग 26 प्रतिशत हो गई है. इसका मतलब है कि श्रीलंका की एक चौथाई से अधिक आबादी ग़रीबी में जीवन यापन कर रही है.

श्रीलंका में, कोलंबो के पास एक झुग्गी में पिता और पुत्र भोजन साझा करते हुए. (एपी फ़ोटो/इरांगा जयवदेना) [AP Photo/Eranga Jayawardena]

दो अप्रैल को जारी किया गया वर्ल्ड बैंक का अपडेटः ब्रिजेज़ टू रिकवरी रिपोर्ट में इस बात पर संक्षिप्त चर्चा की गई है कि अभूतपूर्व आर्थिक संकट, जिसने 2022 में पूरे देश को अपनी आगोश में ले लिया था, उसने किस तरह जनता पर असर डाला है. हालांकि इसमें जोर देकर कहा गया है कि, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) द्वारा निर्देशित और विक्रमसिंघे सरकार द्वारा लागू किया जा रहा खर्चों में निर्मम कटौती का प्रोग्राम (ऑस्टेरिटी) “अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने“ के लिए ज़रूरी है.

श्रीलंका की लंबे समय से चली आ रहीं आर्थिक दिक्कतों और उच्च विदेशी कर्ज़ की समस्या को, मौजूदा कोविड-19 महामारी और यूक्रेन में रूस के ख़िलाफ़ अमेरिकी-नेटो युद्ध ने और बढ़ा दिया था.

राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे और उनकी सरकार द्वारा इस संकट के बोझ को मेहनतश आबादी पर थोपने की कोशिश से अप्रैल-जुलाई 2022 में प्रदर्शनों, धरने और हड़तालों का सिलसिला शुरू हो गया जिसमें लाखों मज़दूर और ग्रामीण और शहरी ग़रीबों ने हिस्सा लिया था. इस जनआंदोलन का सामना होते ही सरकार धाराशाई हो गयी और राजपक्षे देश से भाग गए और अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया.

इस जनउभार को ट्रेड यूनियनों और फ़र्ज़ी वामपंथी फ़्रंटलाइन सोशलिस्ट पार्टी द्वारा धोखा दिया गया. उन्होंने एक अंतरिम पूंजीवादी सरकार के गठन का आह्वान किया और रनिल विक्रमसिंघे को राष्ट्रपति पद तक पहुंचने का रास्ता साफ़ किया और आईएमएफ़ के खर्च कटौती वाले उपायों का शिकंजा और कसने दिया.

वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट में कहा गया हैः ”ऊंची महंगाई दर और मज़दूरी, आमदनी और रोज़गार में कमी और विदेशों से मज़दूरों द्वारा भेजे जाने वाले धन में गिरावट आने से परिवार और ग़रीब हो गए हैं.”

रिपोर्ट के अनुसार, श्रीलंका के 60 प्रतिशत परिवारों की आमदनी गिर गई है, जिसमें अधिकांश के सामने खाद्य सुरक्षा, कुपोषण और विकास के बाधित होने का संकट खड़ा हो गया है. हालांकि व्यापक पैमाने पर इस सामाजिक तबाही और ग़रीबी, आईएमएफ़ के बर्बर सामाजिक हमले का सीधा नतीजा है.

रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि श्रीलंका में अति लघु, लघु और मझोले उद्यमों की बड़े पैमाने पर तालाबंदी ने श्रम बाज़ार पर असर डाला है. साल 2023 की तीसरी तिमाही के दौरान शहरी क्षेत्र में श्रम बल हिस्सेदारी 2019 के 52.3 प्रतिशत से गिर कर 45.2 प्रतिशत हो गई. 2023 की दूसरी और तीसरी तिमाही के बीच युवाओं में बेरोज़गारी, ख़ासकर 25-29 साल के उम्र के नौजवानों में बेरोज़गारी 17.7 प्रतिशत बढ़ गई.

रिपोर्ट के अनुसार, “राजस्व के नए उपायों के लागू किए जाने से जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में हिस्सेदारी के तौर पर अनुमानित राजस्व बढ़ गया और यह 2022 में जीडीपी के 8.4 प्रतिशत के मुकाबले बढ़कर 2023 में 11 प्रतिशत हो गया.“

ये “राजस्व उपाय“, जिसे राष्ट्रपति विक्रमसिंघे और उनकी सरकार द्वारा निर्मम तरीके से लागू किया जा रहा है और लगभग हर वस्तु और सेवाओं पर 18 प्रतिशत वैट (वैल्यू एडेड टैक्स) थोपने; नए आयात कर और विशेष शुल्क लागू करने; और मज़दूरों पर इनकम टैक्स बढ़ा देने से ज़रूरी सामानों के दाम बढ़ गए. सरकारी सब्सिडी में कटौती ने बिजली, ईंधन और पानी को महंगा कर दिया और उर्वरकों के दामों में भारी वृद्धि कर दी.

सरकार, सार्वजनिक संपत्तियों के निजीकरण, व्यावसायीकरण या बंद करने और लाखों नौकरियों को ख़त्म करने की प्रक्रिया में है. श्रीलंका का पहले से ही ख़स्ताहाल स्वास्थ्य एवं शिक्षा तंत्र, सरकार की फ़ंड कटौती के चलते और संकट में घिर गया है.

वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक: “17.5 प्रतिशत परिवारों का कहना है कि बढ़ती महंगाई से निपटने के लिए उन्होंने शिक्षा पर होने वाले खर्च को सीमित कर दिया है, जिसमें किताब कलम और यूनिफ़ार्म भी शामिल हैं और फ़ंड की कमी के चलते मार्च 2022 से ही अधिकांश परिवारों ने अपने इलाज के तौर तरीके बदल दिए हैं.“

साल 2022 में श्रीलंका की जीडीपी विकास दर ऋणात्मक रूप से 7.3 प्रतिशत दर्ज की गई थी जबकि वर्ल्ड बैंक ने कहा कि 2023 में यह कम होकर ऋणात्मक 2.3 प्रतिशत हो गई थी और दावा किया है कि अनुमान है कि 2024 में जीडीपी विकास दर धनात्मक हो जाएगी. हालांकि इस ”सुधार” का मतलब है कि इस साल भी विकास दर में कोई वास्तविक वृद्धि नहीं होगी.

श्रीलंका, नेपाल और मालदीव के वर्ल्ड बैंक के कंट्री डायरेक्टर फ़ारिस हदादा-ज़ेरवोस ने दो अप्रैल को घोषणा की कि श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था ”रिकवरी के रास्ते पर है”. हालांकि दूसरी तरफ़ उन्होंने दावा किया कि ”ग़रीब और खस्ता हालात वाले लोगों पर आर्थिक संकट के असर को कम करने की लगातार कोशिशों” के लिए ज़रूरी है कि सरकार मेहनतकश जनता पर सामाजिक हमले को जारी रखे.

उन्होंने कहा कि, 'व्यापक आर्थिक स्थिरता में योगदान देने वाले सुधारों को बनाए रखने' और 'निजी निवेश और पूंजी प्रवाह को प्रोत्साहित करने के लिए सुधारों में तेजी लाने' की दो-आयामी रणनीति जारी रखी जानी चाहिए. इन तथाकथित 'आर्थिक सुधारों' का मतलब मेहनतकश लोगों की सामाजिक हालात पर और भी तगड़ा हमला है.

29 मार्च को श्रीलंका के जनगणना और सांख्यिकी विभाग (डीसीएस) ने कहा कि श्रीलंका में प्रति व्यक्ति न्यूनतम प्रतिमाह खर्च 2019 के मुकाबले 144 प्रतिशत बढ़ गया है. इसकी गणना इस आधार पर किया गया कि एक व्यक्ति को हर महीने अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए कितनी आवश्यकता होती है, जोकि 2019 में 6,966 रुपये (23 डॉलर) था. यह लगभग भुखमरी के स्तर की राशि, अब 17,014 रुपये प्रति माह हो गई है.

मौजूदा राशि का आंकलन ये मान कर किया गया है कि एक व्यक्ति अपनी रोज़मर्रे की ज़रूरतों के साथ 560 रुपये में ज़िंदा रह सकता है, जबकि सच्चाई है कि फ़ुटपाथ पर एक टाइम का सबसे सस्ते चावल और करी का दाम 250 रुपये से अधिक है. डीसीएस की तथाकथित ग़रीबी रेखा अन्य ज़रूरतों पर होने वाले खर्चों को शामिल नहीं करती.

श्रीलंका के लिए वर्ल्ड फ़ूड प्रोग्राम की फ़रवरी 2024 की रिपोर्ट कहती है कि “अभी प्रमुख चिंता बनी हुई है क्योंकि 43 प्रतिशत परिवार आजीविका के हिसाब से और 42 प्रतिशत परिवार अभी भी खाने में कटौती करने की रणनीति अपनाते हैं.“ दूसरे शब्दों में श्रीलंका की आधी आबादी अपनी सबसे बुनियादी ज़रूरत -भोजन- के लिए संघर्ष कर रही है.

एक तरफ़ लोगों के न्यूनतम मासिक खर्चे बेतहाशा बढ़ गए हैं, लेकिन सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों की बेसिक सैलरी में वृद्धि करने से भी इनकार कर दिया है. इसकी बजाय उसने जनवरी महीने में 5,000 रुपये का मामूली भत्ता दिया और 5000 रुपये की दूसरी किश्त इसी महीने जारी की है. 27 मार्च को श्रीलंका की कैबिनेट में राष्ट्रीय न्यूनतम मज़दूरी बढ़ाने पर सहमति बनी, जोकि मुख्य रूप से निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को कवर करती है और महज 5000 रुपये बढ़ाकर इसे 17,000 रुपये प्रतिमाह किया गया है.

वर्ल्ड बैंक द्वारा समर्थित आईएमएफ़ प्रोग्राम का मुख्य ज़ोर श्रीलंका के अंतरराष्ट्रीय कर्ज़ो की पुनः अदायगी और ब्याज अदा करने पर और मज़दूर वर्ग और ग़रीबी में फंसी जनता को अधिक से अधिक निचोड़ कर बड़े व्यवसायों और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों का मुनाफ़ा बढ़ाने पर है.

एक तरफ़ राजपक्षे सरकार ने 12 अप्रैल 2022 को डिफ़ॉल्ट घोषित करते हुए विदेशी कर्ज़ों की पुनः अदायगी पर रोक लगा दी, दूसरी तरफ़ राष्ट्रपति के मीडिया विभाग के बयान के अनुसार, विक्रमसिंघे प्रशासन ने आईएमएफ़, एशियन डेवलपमेंट बैंक और वर्ल्ड बैंक समेत बहुपक्षीय वित्तीय एजेंसियों को 1.3 अरब डॉलर की अदायगी की है. विक्रमसिंघे ने पहले स्वीकार किया था कि उनकी सरकार को सालाना कर्ज़ अदायगी के लिए 6 अरब डॉलर की राशि आवंटित करनी पड़ेगी.

विक्रमसिंघे का सत्तारूढ़ गठबंधन और विपक्षी पार्टियां- समाजी जना बालावेगाया और जनता विमुक्ति पेरामुना की अगुवाई वाला नेशनल पीपुल्स पॉवर- आगामी राष्ट्रपति और संसदीय चुनावों से पहले घटिया दांवपेंच में शामिल हैं. ये सभी पार्टियां और ट्रेड यूनियनें आईएमएफ़ के बर्बर सामाजिक हमले को थोपने के लिए प्रतिबद्ध हैं.

मज़दूर वर्ग अपनी नौकरियों, मज़दूरी और सामाजिक हालात को नहीं बचा सकता, अगर वे इन संगठनों से बंधे रहते हैं, जो सबसे ऊपर मुनाफ़े के तंत्र को बचाए रखना चाहते हैं. बढ़ते सरकारी हमलों के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए, मज़दूर वर्ग को समाजवादी नज़रिए के साथ आगे बढ़ना होगा.

इसमें सभी विदेशी कर्ज़ों को अस्वीकार करना और बैंकों, बड़े कार्पोरेशनों और बागानों का निजीकरण करना और उन्हें मज़दूर वर्ग के लोकतांत्रिक नियंत्रण के तहत लाना शामिल है. इस तरह का कोई कार्यक्रम, अंतरराष्ट्रीय समाजवाद के लिए संघर्ष के हिस्से के तौर पर, केवल मज़दूरों और किसानों की सरकार के लिए संघर्ष के माध्यम से ही हासिल किया जा सकता है.

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