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पिछले हफ़्ते दिल्ली और इस्लामाबाद में हुए धमाकों के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ा

यह हिंदी अनुवाद अंग्रेज़ी के मूल लेख Tensions between India and Pakistan surge after last week’s explosions in Delhi and Islamabad का है जो 17 नवंबर 2025 को प्रकाशित हुआ था।

मंगलवार, 11 नवंबर, 2025 को पाकिस्तान में इस्लामाबाद की एक ज़िला अदालत के गेट के बाहर आत्मघाती बम धमाके के बाद घटनास्थल पर एक क्षतिग्रस्त वाहन की जांच करते सुरक्षा अधिकारी। (एपी फ़ोटो/मोहम्मद यूसुफ़) [AP Photo/Mohammad Yousuf]

नई दिल्ली और इस्लामाबाद में पिछले हफ़्ते एक के बाद एक हुए घातक धमाकों के बाद, पिछली मई में चार दिन तक का युद्ध लड़ने वाले भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया है।

इस्लामाबाद में डिस्ट्रिक्ट ज्यूडिशियल कोर्ट काम्प्लेक्स के बाहर 11 नवंबर को हुए आत्मघाती धमाके के लिए पाकिस्तान ने भारत को ज़िम्मेदार ठहराया है, जिसमें 12 लोग मारे गए जबकि दर्जनों घायल हुए हैं।

इस आत्मघाती धमाके के लगभग तुरंत बाद ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने कहा कि यह 'भारतीय टेररिस्ट प्रॉक्सीज़' द्वारा अंजाम दिया गया था और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 'भारतीय सरकार के टेररिज़्म' की निंदा करने का आह्वान किया था। रक्षा मंत्री ख़्वाजा आसिफ़ ने तो बहुत स्पष्ट रूप से कहा। उन्होंने दावा किया कि पाकिस्तान की राजधानी और 11 नवंबर को पांच हथियारबंद लोगों द्वारा दक्षिणी वज़ीरिस्तान में पाकिस्तान आर्मी कैडेट स्कूल पर किए गए 'हमले की साज़िश अफ़ग़ानिस्तान में रची गई थी और इसे भारत के इशारे पर किया गया था।'

इस्लामाबाद में आत्मघाती धमाके के लिए तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान के एक धड़े ने ज़िम्मेदारी ली। यह धमाका हाई सिक्युरिटी ज़ोन में हुआ था।

हाल के महीनों में, इस्लामाबाद ने इन आरोपों को और तेज़ कर दिया है कि भारत और अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार दोनों ही पाकिस्तानी तालिबान की मदद कर रहे हैं। पाकिस्तान तालिबान एक इस्लामी विद्रोही ग्रुप है जो अफ़ग़ान युद्ध की शुरुआत में, पाकिस्तान के कबायली इलाक़ों में तालिबान के गढ़ को ख़त्म करने के लिए इस्लामाबाद और वॉशिंगटन द्वारा चलाए गए 'सब कुछ बर्बाद करने' वाले सैन्य अभियान और सामूहिक सज़ा के ख़िलाफ़ उठ खड़ा हुआ था।

पिछले महीने जब इस्लामाबाद ने अफ़ग़ानिस्तान के अंदर तक हवाई हमले किए, उसके बाद पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच विवादित सीमा पर झड़पें शुरू हो गई थीं। पाकिस्तान का कहना है कि उसने पाकिस्तान तालिबान के ठिकानों को निशाना बनाया था। क़रीब डेढ़ हफ़्ते तक सीमा पर झड़पें हुईं और पाकिस्तानी ड्रोन और लड़ाकू विमानों ने पूरे दक्षिणी और मध्य अफ़ग़ानिस्तान को मिसाइलों से निशाना बनाया। इसके बाद ही क़तर और तुर्की की मदद से दोनों पक्ष एक नाज़ुक युद्ध विराम पर सहमत हुए।

संयोग से पाकिस्तान ने 9 अक्टूबर को अफ़ग़ानिस्तान के अंदर हवाई हमलों का अपना ग़ैर क़ानूनी अभियान उस समय शुरू किया, जब अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्री मौलवी अमीर ख़ान मुत्तकी का नई दिल्ली का एक सप्ताह लंबा दौरा शुरू हो रहा था। वहां वो अपने समकक्ष एस जयशंकर और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल से मिले और 'भारत-अफ़ग़ानिस्तान संयुक्त बयान' पर हस्ताक्षर किया जिसमें व्यापार बढ़ाने, मानवीय और सैन्य-सुरक्षा सहयोग बढ़ाने के फ़्रेमवर्क की रूपरेखा तय की गई थी।

तनाव बढ़ाने के अलावा पाकिस्तान ने इस्लामाबाद बम हमले के मद्देनज़र काबुल के ख़िलाफ़ नई युद्धोन्मादपूर्ण धमकियों का सहारा लिया। रक्षा मंत्री आसिफ़ ने कहा कि 'हमला दिखाता है कि पाकिस्तान 'युद्ध लड़ रहा' है, और जोड़ा कि ऐसे हालात में, काबुल के शासकों के साथ सफल बातचीत की बहुत अधिक उम्मीद रखना बेकार होगा।'

भारत और अफ़ग़ानिस्तान दोनों के साथ पाकिस्तान के संबंध अब अत्यधिक तनावपूर्ण हो गए हैं, और यह ख़तरा बढ़ रहा है कि किसी भी समय सीमा पर नए सिरे से संघर्ष या खुला युद्ध छिड़ जाए।

पिछले मई में ही, दक्षिण एशिया की परमाणु हथियार संपन्न दो शक्तियां खुले युद्ध के कगार पर पहुंच गई थीं, जब भारत ने भारतीय कब्ज़े वाले जम्मू-कश्मीर में हुए एक आतंकी हमले का आरोप लगाते हुए, अंतरराष्ट्रीय क़ानून को ताक पर रख कर पूरे पाकिस्तान में कई हवाई हमले किए, जबकि उसने अपने आरोपों के पक्ष में कोई सबूत नहीं दिए। जल्द ही हालात हाथ से निकलते दिखे, क्योंकि दशकों बाद दोनों पक्षों के बीच लड़ाई विवादित कश्मीर क्षेत्र से बाहर फैल गई और इसमें बड़े पैमाने पर ड्रोन हमले और अत्याधुनिक एयर डिफ़ेंस सिस्टम का इस्तेमाल किया गया।

अत्याधुनिक विमानों के बढ़ते नुकसान और भारत व पाकिस्तान दोनों द्वारा सीमा पर सेना तैनात करने की योजनाओं को अमल में लाने के चलते, दोनों पक्ष लड़ाई के चौथे दिन पीछे हट गए और आनन-फानन में युद्धविराम पर सहमत हो गए। हालाँकि, पहले जैसी तल्ख़ी के बराबर भी, रिश्ता वापस नहीं लौट पाया है।

भारत की हिंदू वर्चस्ववादी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार ने इस्लामाबाद के बातचीत के प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया है और ज़ोर शोर से प्रचार करते हुए एलान किया है कि पाकिस्तान के ख़िलाफ़ उसकी सैन्य कार्रवाई (ऑपरेशन सिंदूर) महज 'स्थगित' है; उसने सिंधु घाटी जल संधि से हटने की घोषणा की है और पाकिस्तान के पानी और बिजली की सप्लाई को बाधित करने की धमकी दी है।

दोनों देशों ने नए हथियार ख़रीदने, गोला-बारूद के भंडार को फिर से भरने और मई की पिछली झड़प के 'सबक' के आधार पर अपनी युद्ध योजनाओं को फिर से तैयार करने के लिए तेज़ गति से अभियान शुरू कर दिया है।

इस बीच, अधिकांश कॉरपोरेट मीडिया के समर्थन के साथ बीजेपी ने यह दावा किया है कि पिछले मई में हुए युद्ध में भारत ने पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को नए सिरे से परिभाषित किया। उनका दावा है कि पाकिस्तान की कई लक्ष्मण रेखाओं को पार करते हुए भारत ने यह दिखा दिया है कि वह इस्लामाबाद के 'परमाणु ब्लैकमेल' से नहीं डरेगा, यानी, भारत-पाकिस्तान युद्ध में सामरिक और अंततः रणनीतिक परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की आशंका से पीछे नहीं हटेगा। तर्क यह है कि भारत ने अब अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए पारंपरिक सेना को तैनात करने की क्षमता हासिल कर ली है।

बीजेपी की गढ़ी कहानी में, भारत की यह संभावित नई ताक़त, 'हिंदू लौहपुरुष' प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बदौलत आई है। हाल ही में संपन्न हुए बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान मोदी और उनकी बीजेपी ने बार बार छाती ठोंक कर कहा कि मई में उन्होंने भारत की जीत की अगुवाई की और ऐसा करते हुए उन्होंने भारत-पाकिस्तान संबंधों को निर्णायक रूप से नई दिल्ली के पक्ष में बदल दिया था।

दिल्ली विस्फोट

सोमवार, 10 नवंबर की शाम को पुरानी दिल्ली में लाल किले के पास एक कार में हुए विस्फोट के बाद की घटनाएं इसी संदर्भ में घटित हुई हैं।

शक्तिशाली विस्फोट में 13 लोग मारे गए और एक दर्जन से अधिक घायल हुए, जबकि आस पास की गाड़ियां और रिक्शे टूटे फूटे मलबे में बदल गए। पास ही रहने वाले ओम प्रकाश ने एपी को बताया कि जब ज़ोर का धमाका हुआ तो वो घर पर ही थे। “अपने बच्चों के साथ में दौड़ कर वहां पहुंचा और वहां कई गाड़ियों में आग लगी देखा, चारो ओर शरीर के टुकड़े बिखरे पड़े थे।“

भारत की राजधानी दिल्ली में ऐतिहासिक लाल क़िले के पास 10 नवंबर, 2025 को हुए एक कार विस्फोट के बाद निरीक्षण करते सुरक्षा अधिकारी। इसमें 13 लोग मारे गए थे। (एपी फ़ोटो/मनीष स्वरूप) [AP Photo/Manish Swarup]

यह धमाका उस कार में हुआ जो एक हाई सिक्युरिटी ज़ोन माने जाने वाले इलाक़े की लाल पत्ती पर रुकी थी और इसने प्रशासन को भी हैरान करके रख दिया है। दिल्ली पुलिस और नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी के अधिकारी अभी भी समझने की कोशिश कर रहे हैं कि आख़िर हुआ क्या था। लेकिन मोदी के दाहिने हाथ, गृह मंत्री अमित शाह, भारत के प्रमुख राजनीतिक तंत्र और मीडिया ने इस धमाके को टेटरिस्ट अटैक बताने में देर नहीं की और इसका इस्तेमाल मुस्लिमों के ख़िलाफ़ नफ़रत भड़काने और भारतीय कब्ज़े वाले कश्मीर में दमन को तेज़ करने के लिए किया।

जल्द ही पुलिस ने घोषणा कर दी कि जिस गाड़ी में धमाका हुआ उसे कश्मीर का एक डॉक्टर चला रहा था और वही संदिग्ध है। उसका नाम उमर उन नबी है, इसके बाद प्रशासन ने उसके पारिवारिक घर पर बुलडोज़र चला दिया।

इसके बाद प्रशासन ने पूरे जम्मू कश्मीर में व्यापक पैमाने पर छापे और गिरफ़्तारियां की, जिसके बाद यहां के मुख्यमंत्री को बीजेपी और भारतीय राजनीतिक अभिजात वर्ग को एहतियात बरतने का संदेश देने पर मजबूर होना पड़ा। उमर अब्दुल्लाह ने कहा, 'हमें एक चीज़ याद रखनी होगी कि जम्मू कश्मीर का हर निवासी टेररिस्ट नहीं है या टेररिस्टों से संबंध नहीं रखता...जब हम जम्मू कश्मीर के हर निवासी और हर कश्मीरी मुस्लिम को एक ही चश्मे से देखते हैं कि उनमें हर कोई टेररिस्ट है तो लोगों को सही दिशा में रखना मुश्किल हो जाता है।'

प्रशासन अब 10 नवंबर के धमाके को, 30 अक्टूबर के डॉ. मुज़म्मिल शकील गनाई की गिरफ़्तारी से जोड़ रहा है, जो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के पास स्थित फ़रीदाबाद में एक कॉलेज में नौकरी करते थे और अस्पताल में पढ़ाते थे। उनके पास से बड़ी मात्रा में विस्फोटक बरामद हुए थे। इस कहानी के अनुसार, डॉ. गनाई की तरह ही कार का ड्राइवर, भारत विरोधी एक कश्मीरी इस्लामी ग्रुप के साथ जुड़ा हुआ था और विस्फोटक को दूसरी जगह ले जा रहा था, इस डर के मारे कि उसे भी ज़ब्त कर लिया जाएगा, इसी दौरान धमाका हुआ।

भारतीय अधिकारी—या यूं कहें कि पाकिस्तानी अधिकारी भी, आतंकवादी हमलों के बारे में जो कुछ भी कहते हैं, उसे सच नहीं मान लेना चाहिए। दोनों ही प्रतिक्रियावादी साज़िशों में पूरी तरह डूबे हुए हैं, जिसमें भारत द्वारा उत्तरी अमेरिका और यूरोप में सिख अलगाववादियों के ख़िलाफ़ हत्या का अभियान चलाना भी शामिल है। नई दिल्ली पाकिस्तान तालिबान या बलूचिस्तान के जनजातीय-राष्ट्रवादी विद्रोहियों से किसी भी तरह के संबंध से इनकार करता है, जोकि पाकिस्तानी सरकार के साथ लड़ रहे हैं; हालांकि भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में अपनी नियुक्त के कुछ दिन पहले ही अजित डोवाल ने पाकिस्तान को बेअसर करने के लिए बलूची अलगाववादियों का इस्तेमाल करने की भारत की क्षमता का बखान किया था।

जिमी कार्टर और रोनाल्ड रीगन के दौर में वॉशिंगटन के इशारे पर पाकिस्तान ने, अफ़ग़ानिस्तान की सोवियत समर्थक सरकार से लड़ने के लिए मुजाहिदीनों को लामबंद किया, ट्रेनिंग और हथियार दिए। बाद में पाकिस्तान की मिलिटरी इंटेलिजेंस संस्था ने कश्मीर में भारत के साथ अपने खुद के रणनीतिक संघर्ष में उन संपर्कों का इस्तेमाल किया, जो सीआईए के साथ मिलीभगत के दौरान उसने जासूसों का एक जाल खड़ा किया था।

कश्मीर का विवाद, भारत-पाकिस्तान के बीच व्यापक रणनीतिक संघर्ष का हिस्सा है और यह 1947 में उपमहाद्वीप के सांप्रदायिक बंटवारे का प्रतिक्रियावादी नतीजा है, जिसके बाद एक मुस्लिम बहुल पाकिस्तान और एक हिंदू बहुल भारत बना। दक्षिण एशिया से जाते जाते ब्रिटिश औपनिवेशिक मालिकों ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग के प्रतिद्वंद्वी गुटों के साथ मिलकर इस बंटवारे को अंजाम दिया था।

भारत और पाकिस्तान, दोनों ने कश्मीरी लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन किया है। 2019 में, हिंदू वर्चस्ववादी दक्षिणपंथ के एक पुराने सपने को पूरा करने और चीन व पाकिस्तान के ख़िलाफ़ भारत की स्थिति मज़बूत करने के लिए, मोदी सरकार ने मुस्लिम बहुल जम्मू-कश्मीर से उसका विशेष स्वायत्त संवैधानिक दर्जा छीन लिया और उसे केंद्र सरकार के अधीन एक केंद्र शासित प्रदेश बना दिया। साथ ही, उसने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण लद्दाख क्षेत्र को एक अलग केंद्र शासित क्षेत्र में बदल दिया ताकि उसे बीजिंग के ख़िलाफ़ सैन्य अभियानों के अग्रिम अड्डे के रूप में इस्तेमाल किया जा सके।

पूरे भारत में, बीजेपी सरकार और उसकी क़रीबी सहयोगी आरएसएस एक नए मुस्लिम विरोधी अभियान में जुटे हुए हैं जिसका फ़ोकस है तथाकथित 'जनसांख्यिकी ख़तरा' और उनका कहना है कि मुस्लिम, 'हिंदू भारतीय राष्ट्र' के लिए ख़तरा हैं। यह भ्रामक सांप्रदायिकतावादी दुष्टता, हिंदू दक्षिणपंथियों के कथित उच्च मुस्लिम जन्म दर और बांग्लादेशी प्रवासियों (जिनमें से कई ने अपना अधिकांश जीवन भारत में ही बिताया है) के ख़िलाफ़ संगठित प्रचार में निहित है।

अभी तक बीजेपी सरकार ने दिल्ली धमाके में पाकिस्तान की संलिप्तता का आरोप नहीं लगाया है, और अपने घरेलू एजेंडा पर ही ध्यान केंद्रित किए हुए है, जिसमें सामाजिक ग़ुस्से को भारत के 20 करोड़ मुसलमानों के ख़िलाफ़ मोड़ना एक अहम तत्व है।

हालांकि, यह जल्द ही बदल जाएगा। कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियां सरकार की इस बात पर आलोचना कर रही हैं कि उसने दिल्ली धमाके को, आधिकारिक रूप से आतंकी हमला घोषित नहीं किया। अपनी पार्टी की ओर से टेलीविज़न बहसों में भाग लेने वाले उनके प्रवक्ता, मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की आलोचना कर रहे हैं क्योंकि उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि भविष्य में किसी भी आतंकी हमले का संबंध पाकिस्तान के साथ पाया गया तो उस स्थिति में सैन्य कार्रवाई होगी।

अमेरिकी साम्राज्यवाद और दोधारी तलवार पर दक्षिण एशिया

अमेरिकी साम्राज्यवाद की हिंसक कार्रवाइयां और महत्वाकांक्षाएं, दक्षिण एशिया में बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव और एक विनाशकारी युद्ध के ख़तरे की मुख्य वजह हैं। रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक, दोनों ही राष्ट्रपतियों के कार्यकाल में, वॉशिंगटन ने भारत को चीन के साथ अपने सैन्य-रणनीतिक टकराव में अग्रिम मोर्चे का एक राष्ट्र बनाने की कोशिश की है। इसमें विश्व परमाणु नियामक व्यवस्था में नई दिल्ली को विशेष दर्जा देना, हाई टेक अमेरिकी हथियारों तक पहुंच आसान करना और चीन के साथ सीमा को लेकर चल रहे तनाव के दौरान तत्काल ख़ुफ़िया जानकारी मुहैया करना शामिल है।

लगातार आक्रामक होते भारत से सामना होते देख, पाकिस्तान ने बीजिंग के साथ अपनी 'सदाबहार' सैन्य-रणनीतिक गठबंधन को और मज़बूत कर दिया है। इसने नई दिल्ली और वॉशिंगटन के बीच तनाव को और बढ़ा दिया है और इसने भारत-पाकिस्तान और अमेरिका-चीन के तनाव को और उलझा दिया है।

अमेरिकी साम्राज्यवादियों की शह ने नई दिल्ली को पाकिस्तान के ख़िलाफ़ और भी ज़्यादा भड़काऊ रुख़ अपनाने के लिए उकसाया है। पिछले मई में पाकिस्तान के साथ हुई सैन्य झड़प दशकों में सबसे बड़ी थी और 2016 के बाद से तीसरी बार भारत ने अपने पश्चिमी पड़ोसी पर, व्यापक युद्ध भड़कने का ख़तरा को मोल लेते हुए, सीमा पार हमला किया।

हालांकि, नई दिल्ली को यह जानकर हैरानी हुई कि हाल के महीनों में वॉशिंगटन ने पाकिस्तान के साथ संबंधों में उल्लेखनीय सुधार लाने के लिए क़दम उठाए हैं, इस उम्मीद में कि इससे वह बीजिंग के साथ अपने संबंधों को कम करेगा। इसके साथ-साथ, अमेरिका ने रूसी तेल के बड़े पैमाने पर आयात और मॉस्को के साथ घनिष्ठ रणनीतिक संबंधों को जारी रखने के लिए भारत को दंडित करने के लिए कई आक्रामक कदम भी उठाए हैं।

मौजूदा समय में, अमेरिका को होने वाले अधिकांश भारतीय निर्यात पर ट्रंप का 50 प्रतिशत रेसिप्रोकल टैरिफ़ लगा हुआ है, जोकि चीनी सामानों पर लगाए गए उसके टैरिफ़ से कहीं ज़्यादा है। इस बीच अमेरिका को होने वाले पाकिस्तानी निर्यात को दक्षिण एशिया में सबसे कम 19 प्रतिशत टैरिफ़ भुगतना पड़ रहा है।

भारतीय अभिजात वर्ग के भीतर आक्रोश को और भड़काने वाली बात यह है कि पाकिस्तान के सैन्य प्रमुख और नए फ़ील्ड मार्शल बने सैयद असीम मुनीर ने ट्रंप के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित कर लिए हैं। जून के बाद से, मुनीर अमेरिका के संभावित तानाशाह राष्ट्रपति ट्रंप से व्हाइट हाउस में दो बार मिल चुके हैं।

ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिकी विदेश नीति में अचानक आए बदलाव, दक्षिण एशिया में तनाव को बढ़ा रहे हैं, जिससे जंग की संभावना बढ़ रही है, चाहे वह जानबूझकर किया गया हो या ग़लत अनुमान के कारण। और उनके इन कामों में है- व्यापार युद्ध से निपटने का प्रयास, सैन्य ख़र्च में भारी वृद्धि और वेनेज़ुएला तथा मध्य पूर्व से लेकर रूस और चीन तक विश्व भर में जंग की तैयारी, ताकि अमेरिकी साम्राज्यवाद को लगातार कमज़ोर होते हुए पतन से बाहर निकाला जा सके.

इस बीच, ट्रंप के समर्थन और पेंटागन के साथ संबंधों में स्पष्ट सुधार से उत्साहित मुनीर और पाकिस्तानी सेना ने पाकिस्तान की नागरिक सरकार पर अपनी पकड़ मज़बूत करने की दिशा में क़दम बढ़ा दिए हैं। पिछले हफ़्ते, इस्लामाबाद आत्मघाती बम धमाके के तुरंत बाद, पाकिस्तान की संसद ने मुनीर के दबाव में आकर कई क़ानून और एक व्यापक संवैधानिक संशोधन पारित कर दिया, जो किसी 'सॉफ़्ट' तख़्तापलट से कम नहीं है।

इन बदलावों के परिणामस्वरूप, सशस्त्र बलों पर नाममात्र का नागरिक नियंत्रण भी ख़त्म हो गया है और मुनीर को सैन्य रक्षा बलों के प्रमुख (सीएमडीएफ़) के नव-निर्मित पद पर पांच साल के लिए नियुक्त कर दिया गया है। पाकिस्तान के संविधान के 27वें संशोधन के तहत, सीएमडीएफ़ को पाकिस्तानी सेना की तीनों शाखाओं और उसके परमाणु शस्त्रागार पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त है। उन्हें आपराधिक अभियोजन से भी आजीवन छूट भी मिल गई है।

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